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Tripura: BJP के लिए रेप के घटनाएं बनीं चुनावी फजीहत, मंत्री के बेटे पर भी आरोप

Tripura Election 2023: नाबालिग से गैंग रेप में छह आरोपियों की गिरफ्तारी के बावजूद बीजेपी सरकार निशाने पर

सागरनील सिन्हा
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Tripura: BJP के लिए रेप के घटनाएं बनीं चुनावी फजीहत, मंत्री पुत्र MLA तक पर आरोप</p></div>
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Tripura: BJP के लिए रेप के घटनाएं बनीं चुनावी फजीहत, मंत्री पुत्र MLA तक पर आरोप

AKANKSHA SINGH

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पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा (Tripura Assembly Election 2023) में सत्तारूढ़ बीजेपी के सामने पहले से ही कई विकट चुनौतियां थीं और अब उनाकोटि जिले के कुमारघाट और खोवाई जिले के कल्याणपुर में हाल में हुए गैंगरेप के मामलों के बाद उसे सियासी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में बलात्कार के तीन और मामले सामने आए हैं, जिससे विपक्ष को राज्य में कानून-व्यवस्था की गिरती स्थिति पर बीजेपी सरकार को घेरने का मौका मिल गया है जबकि राज्य में चुनाव होने में अब सिर्फ तीन महीने बचे हैं.

राज्य के उत्तरी हिस्से में उनाकोटी जिले के कुमारघाट में 19 अक्टूबर को 16 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. पुलिस पहले ही एक महिला सहित 6 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है. गिरफ्तारी के बावजूद यह मामला राज्य में सियासी सरगर्मी बढ़ा रहा है.

सियासी ब्लेमगेम या फिर चुनावी रणनीति ?

राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी CPI(M), कांग्रेस, टीआईपीआरए मोथा और अन्य विपक्षी दल विरोध मार्च कर रहे हैं और सीधे बीजेपी पर हमला कर रहे हैं. उनका मानना है कि सत्ताधारी पार्टी मामले में आरोपी - चंद्रशेखर दास को बचा रही है. आरोपी चंद्रशेखर दास पबिछारा से विधायक भगवान दास और राज्य के अनुसूचित जाति कल्याण, श्रम और पशु संसाधन विकास मंत्री का बेटा है.

CPI(M) और कांग्रेस पार्टी मंत्री चंद्रशेखर दास की गिरफ्तारी और इस्तीफे की मांग कर रही है. इससे सत्तारूढ़ पार्टी भड़क गई है. उनका दावा है कि मंत्री के बेटे के बारे में आरोप "मनगढ़ंत" हैं और विपक्षी दल - CPI(M) और कांग्रेस आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस सामूहिक बलात्कार के मुद्दे को भूना रहे हैं.

बीजेपी दावा करती रही है कि FIR में मंत्री के बेटे का कोई जिक्र नहीं है. मंत्री, सरकार और पार्टी को बदनाम करने के लिए CPI(M) और कांग्रेस दोनों ने उनका नाम घसीटा है. बीजेपी ने यह साबित करने के लिए वारदात के वक्त मंत्री का बेटा कहीं और मौजूद था, CCTV फुटेज भी जारी किया है, लेकिन विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है. कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय बर्मन ने घटना की तारीख पर मंत्री के बेटे के मोबाइल टॉवर की लोकेशन चेक करने की मांग की है.

त्रिपुरा में नाबालिग से रेप को लेकर विरोध तेज

बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच सियासी जुबानी जंग के बीच कुछ समुदाय आधारित संगठनों ने भी इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. निखिल बिष्णुप्रिया मणिपुरी युवा परिषद के बैनर तले बिष्णुप्रिया मणिपुरी समुदाय के लोगों ने 28 अक्टूबर को उनाकोटी जिले के कैलाशहर के अंतर्गत डालूगांव बाजार में एक विशाल विरोध रैली की. इसमें पीड़ित के लिए न्याय की मांग की गई थी.

अगले दिन, मणिपुरी एक्य मंच ने, जिसमें मैतेई मणिपुरी और बिष्णुप्रिया मणिपुरी दोनों समुदाय के लोग शामिल थे. सभी दोषियों की गिरफ्तारी और पीड़ित के लिए न्याय की मांग करते हुए कैलाशहर शहर में एक विरोध मार्च निकाला.

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क्या त्रिपुरा प्रशासन किसी को बचा रहा है?

कल्याणपुर मामले में, जिसमें एक 13 वर्षीय आदिवासी लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. पुलिस पहले ही दो को गिरफ्तार कर चुकी है. इनमें से एक आदित्य दास हैं- जो कि पश्चिम द्वारिकापुर पंचायत में बीजेपी के निर्वाचित पंचायत सदस्य है. पुलिस के मुताबिक, द्वारिकापुर पंचायत के उपप्रमुख सहित दो अन्य सत्तारूढ़ दल से फरार हैं, हालांकि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि पुलिस पर उपप्रमुख को गिरफ्तार नहीं करने का “दबाव” है.

अगरतला के बांकुमारी में रेप के मामले में स्थानीय बीजेपी नेता संजय को 12 साल की बच्ची से रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

कैलाशहर के ईरानी इलाके से एक अलग मामले में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म करने के बाद उसके माता-पिता से शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने अहिद अली नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है.

विपक्ष के आरोप पूरी तरह से खोखले नहीं हैं, लेकिन यह दावा भी अतिशयोक्तिपूर्ण है कि पुलिस मामले में दोषियों को गिरफ्तार करने को लेकर एक दम हाथ पर हाथ धरे बैठी है. पुलिस सत्ता पक्ष के लोगों सहित कुछ अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफल रही है.

चुनावी माहौल में कानून-व्यवस्था का मुद्दा नया नहीं

2018 में पहली बार बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से CPI(M) और कांग्रेस की ओर से राज्य की गिरती कानून व्यवस्था को लेकर आरोप लगते रहे हैं. वे आरोप सिर्फ खोखले नहीं थे. राज्य ने देखा है कि कैसे विपक्ष के उम्मीदवारों को 2018 में शहरी निकायों के उप-चुनावों से लेकर 2019 के ग्रामीण निकाय चुनावों से लेकर 2021 तक के नगर निकाय चुनावों तक लड़ने की अनुमति नहीं दी गई.

ऐसा नहीं है कि चुनावों के दौरान हिंसा इस पूर्वोत्तर राज्य के लिए एक नया मामला है. हालांकि 2000 के दशक के अंत और 2010 के दशक के दौरान जब माकपा के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा सत्ता में था, चुनावी हिंसा में गिरावट आई थी.

त्रिपुरा में बीजेपी में फेरबदल वरदान है या अभिशाप?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चूंकि बीजेपी आलाकमान ने पहले भगवा मुख्यमंत्री बिप्लब देब की जगह पर माणिक साहा को ला दिया है, इसके बाद चुनावी हिंसा में कमी आई है, जैसा कि इस साल चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में देखा गया है.

निस्संदेह, नए मुख्यमंत्री अपने बयानों के माध्यम से राज्य के लोगों को कानून और व्यवस्था के मुद्दों पर सकारात्मक संकेत भेजने में सक्षम हैं, अक्सर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से हिंसा नहीं करने की अपील करते हैं.

हालांकि हाल के बलात्कार के मामलों ने मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ दल की छवि को प्रभावित किया है जो पहले से ही सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे थे. यह बीजेपी के लिए एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि विपक्षी CPI(M) और कांग्रेस बलात्कार के मुद्दों पर जमीनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

क्या त्रिपुरा में वामपंथ को मजबूती मिल रही है ?

जितेंद्र चौधरी के नेतृत्व में वाम दल, जिसने हाल ही में 21 अक्टूबर को अस्तबल मैदान में अपनी राज्यव्यापी बड़ी रैली के माध्यम से अपनी ताकत दिखाई. इन केसों के मुद्दों पर अपने छात्रों, युवा और महिला संगठनों के साथ-साथ जमीन पर काफी सक्रिय है. बीजेपी जानती है कि वह माकपा और राज्य में मजबूती हासिल कर रही कांग्रेस को भी हल्के में नहीं ले सकती. भगवा पार्टी को पहले से ही पहाड़ियों में टीआईपीआरए मोथा से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

पुलिस की जांच जारी है. क्या साहा और बीजेपी, विपक्ष की हवा निकालने के लिए जांच पूरी होने तक भगवान दास को कैबिनेट से हटाने का साहसिक कदम उठाएगी? या मंत्री के इस्तीफे के बिना क्या साहा और बीजेपी राज्य के लोगों को भरोसे में ले पाएगी ?

ऐसा होने के लिए साहा को यह सुनिश्चित करना होगा कि जांच पूरी तरह से निष्पक्ष हो. अभी तो रुककर देखना होगा कि क्या बीजेपी चुनावी युद्ध के मैदान में उतरने से पहले इस कठिन चुनौती से निपट पाती है या नहीं .

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