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ट्रोल्स की ट्रोलिंग, बीजेपी को घेरने का कांग्रेस का दांव

2014 में नरेंद्र मोदी के पास एक मौका था कि वो कांग्रेस का एक विकल्प पैदा करें. लेकिन इसकी जगह अब एक नया सिद्धांत है

अभीक बर्मन
नजरिया
Updated:
बीजेपी को घेरने का कांग्रेस दांव
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बीजेपी को घेरने का कांग्रेस दांव
फोटो:Arnica Kala/The Quint

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शनिवार 7 जुलाई को मुझे अपने एक नजदीकी मित्र से वाट्सऐप पर एक वीडियो मिला. 2.03 मिनट की ये क्लिप 1970 के दशक के क्लासिक,द पियानो बार्स ऑफ द बीटल्स - ‘लेट इट बी’ से शुरू हुई और इसके साथ ही गहरे रंग के बैकग्रांड से एक वर्चुअल प्लाकार्ड उभरकर आया,जिस पर लिखा था- “इस सोशल मीडिया डे पर महिलाओं के पास @narendramodi को कहने के लिए कुछ है”

वीडियो के दाहिनी ओर एक युवती चलती हुई आई जो कि एक स्टैंड और माइक्रोफोन के साथ थी. वो गाना शुरू कर देती है और इसी दौरान उसके साथ और भी महिलाएं शामिल हो जाती हैं. अगले कुछ देर में एक पॉलिटिकल मैसेज आता है, जिसमें जेंडर, मीडिया और समाज में हिंसा की बातें होती हैं. पॉल मैकार्टने के “लेट इट बी” के दोहराव की जगह इसमें कहा जाता है- “ट्रोलिंग मी”

मैं वीडियो क्लिप के प्रभाव को कम नहीं करना चाहता. आगे पढ़ने से पहले इस वीडियो को आप खुद पहले देखें.

लोग इस वीडियो पर कैसे रिएक्ट करते हैं ये जानने के लिए मैंने खुद को जानने वाले कुछ लोगों को इसे फॉरवर्ड किया. हर किसी की प्रतिक्रिया काफी अलग-अलग आई. सारी प्रतिक्रियाओं में जो एक बात कॉमन थी वो था- इंटेलिजेंस का उच्च स्तर.

सेंड बटन पर मेरी उंगली दबने के मिनट भर बाद प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं थीं. कुछ ने जो देखा और महसूस किया उस पर कुछ पंक्तियां लिखने की जहमत उठाई, जबकि कुछ ने ट्रोलिंग के वहशीपने और हिंसा की बात की. तो कुछ ने संस्कारों के सड़ते जाने पर जिस सभ्य अंदाज में तंज किया गया था उसकी सराहना की.

ब्राइटन एंड ससेक्स मेडिकल स्कूल के सोमनाथ मुखोपाध्याय ने कहा कि-

“2014 में नरेंद्र मोदी के पास एक मौका था कि वो कांग्रेस का एक विकल्प पैदा करें. लेकिन इसकी जगह अब एक नया सिद्धांत फल-फूल रहा है. आम लोगों की आजादी से समझौता किया जा रहा है” सोमनाथ मुखोपाध्याय तो 2015 में मोदी का भाषण सुनने के लिए वेंबले भी गए थे.

मुखोपाध्याय ऐसे लोगों में शामिल हैं, जिन्हें बीजेपी अपने पक्ष में देखना चाहती है. देश का वो बौद्धिक वर्ग जिसने बाहर के देशों में अपना एक अलग मुकाम बनाया है, जो सफल है और बाहर रहकर भी अपने देश के साथ जुड़ा रहता है. ऐसे लोगों का किसी राजनीतिक जमात से कोई कनेक्ट नहीं होता. ये वो लोग हैं, जो भारत की तुलना विकसित समाज से करते हैं और अपने देश में सकारात्मक बदलाव की ख्वाहिश रखते हैं.

मुखोपाध्याय जैसे लोगों को मोदी के हक में बदलना और कांग्रेस मुक्त भारत लगभग संभव है. या कह सकते हैं कि ये वही बात है, जिसमें संघ यकीन करता है. लेकिन मौजूदा हालात में जिस तरह से प्रशासन का रवैया नजर आ रहा है, उसकी वजह से ये वर्ग तेजी से दूर जा रहा है.

दिव्या स्पंदना 15वीं लोकसभा की सबसे युवा सांसद थीं. 2014 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी के सोशल मीडिया सेल को हेड करने को कहा, जो कि उनके गुरुद्वारा रकाबगंज रोड के कैंपस में स्थित है.

स्पंदना कहती हैं कि-

“30 जून को सोशल मीडिया डे था और हमने इसके लिए कुछ अलग प्लान करना शुरू किया. हमारी पूरी टीम और उसमें भी ज्यादातर महिलाओं ने एक सप्ताह पहले से बैठकें शुरू कर दी.” आम राय बनी कि विषय हर हाल में ट्रोल होगा, जो कि भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स के लिए सबसे बड़ी नुकसान की चीज है.
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स्पंदना ने सलाह दी कि इसके लिए एक अभियान चलाने की जगह सबकुछ एक गाने की शक्ल में होना चाहिए जो कि बीजेपी के हक में होने वाले ट्रोल पर केंद्रित हो. स्पंदना के मुताबिक- “जब मीटिंग खत्म हुई, तो टीम के ही एक सदस्य रिचिक बनर्जी ने गाने की लाइनें सुनाईं, जिसमें हमें एक शब्द तक बदलने की जरूरत नहीं पड़ी.”

‘लेट इट बी’ ही क्यों और कुछ क्यों नहीं?

रिचिक बनर्जी के मुताबिक-

“असल में ये गाना मेरे पसंदीदा गीतों में है और मैं उसी दिन काम पर जाते हुए इसे सुन रहा था. हम जब चर्चा कर रहे थे, तो लगा कि ये शब्द हमारे मुद्दे से मेल खा रहे हैं. हम चाहते थे कि गाने का अंदाज कूल और सभ्य हो और ये ऐसा ही बनकर तैयार भी हुआ.”

कांग्रेस की टीम ने इस पर कुछ रिसर्च की थी और इसमें कई दिलचस्प तथ्य मिले.

पहला- हाईप्रोफाइल लोगों की सबसे ज्यादा और खतरनाक ट्रोलिंग की जाती है. इसका एक उदाहरण एक्ट्रेस और एक्टिविस्ट नेहा धूपिया का मामला है. मुंबई में मॉनसून के दौरान बदतर हालात पर उन्होंने नेताओं से कहा कि वो सेल्फी लेने और लोगों से योगा कराने की जगह सरकार और प्रशासन पर ध्यान दें. फिर क्या था. उन्हें बड़ी बेदर्दी से ट्रोल किया गया।

दूसरा- बेहद भद्दे किस्म के और गंदी जुबान वाले ट्रोल आम हैं.

तीसरा- मोदी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रोल्स को सबसे ज्यादा फॉलो करते हैं.

इसका नतीजा ये होता है कि ट्रोल करने वाले इसे प्रधानमंत्री की तरफ से सहमति मान लेते हैं और खुद को सुरक्षित भी मान बैठते हैं.

स्पंदना कहती हैं कि- “कम से कम प्रधानमंत्री इन ट्रोल्स को फॉलो करना बंद कर सकते हैं, लेकिन वो नहीं हुआ”

गाने में नजर आ रहे सभी लोग उनकी टीम के हैं. स्पंदना के मुताबिक-“वो सब थोड़ी नर्वस जरूर थीं, उनके लिए ये पहली बार था, जब वो कैमरे का सामना कर रही थीं और ये अकेला रास्ता था जो हम कर सकते थे, क्योंकि हमारे लिए ये संभव नहीं था कि इसके लिए हम प्रोफेशनल्स को हायर करें”

ये वीडियो 30 जून को ऑनलाइन हो गया. स्पंदना ने बताया कि- “शुरू में इस पर लोगों का ध्यान थोड़ा कम गया. मेनस्ट्रीम मीडिया ने या तो इसकी अनदेखी की या काफी कम दिखाया. लेकिन अब ये सुपर हिट है”

लॉन्च होने के एक सप्ताह बाद इसे 30 हजार इंगेजमेंट्स और करीब 5,400 लाइक्स के साथ ट्विटर पर 58,000 लोग देख चुके हैं. फेसबुक पर ये क्लिप पहले ही 14 लाख यूजर्स तक पहुंच चुका है.

जिस बीजेपी को लंबे समय तक बिजनेस समुदाय और पैसे वालों का समर्थन माना जाता था, उनका एक हिस्सा अब पार्टी से दूर जा रहा है. मुंबई के बीनस्टॉक एडवाइजरी के फाउंडर कुश कटाकिया कहते हैं कि- “एक वक्त में सुंदर दिखने वाला सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अब राक्षसी रूप ले चुका है.”

बाकी तमाम भारतीयों की तरह कटाकिया भी इस बात को लेकर सदमे में हैं कि कैसे एक चलन चल पड़ा है जिसमें कुछ दक्षिणपंथी ट्रोल्स गालियां और बेहद गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.

अजीब बात ये है कि मोदी और बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह न सिर्फ उन्हें फॉलो करते हैं, साथ ही ऐसे हैंडल्स की निंदा करने और उन्हें अन-फॉलो करने के बजाए वो इस मुद्दे पर मौन हैं. यहां तक कि तब भी, जब उनकी ही सीनियर पार्टी मेंबर और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक को ये ट्रोल्स निशाना बनाते हैं. दिल्ली के कॉरपोरेट लॉ ग्रुप की मैनेजिंग पार्टनर कृष्णा सर्मा सवाल उठाती हैं कि

“ट्रोल क्यों करते हैं, वे ज्यादातर पुरुष होते हैं, जो खासतौर से सफल महिलाओं को टारगेट करते हैं?”

इनका अनुमान है कि-

“ये बढ़ते बेरोजगारों की कुंठा का नतीजा भी हो सकता है. मुमकिन है कि सफल महिलाओं को टारगेट कर ये अपनी मेल अथॉरिटी को साबित करना चाहते हों. और बीजेपी उन्हें सुविधा के हिसाब से प्लेटफ़ॉर्म मुहैया करा रही है.”

तो ये सारी ट्रोलिंग एक वक्त सोशल मीडिया पर भारत की पोलिटिकल मैसेजिंग का 800 किलो का गोरिल्ला रही बीजेपी को कहां छोड़ती है? मुखोपाध्याय कहते हैं- “ट्रोलिंग, गाली, एक व्यक्ति के अधिकारों पर हमला, डिमॉनेटाइजेशन- इनमें से किसी चीज की जरूरत नहीं थी. लेकिन अब ये सब कुछ हो चुके है.

और मोदी को इनकी कीमत चुकानी होगा”

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Published: 09 Jul 2018,02:18 PM IST

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