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UK Elections: यूनाइटेड किंगडम में लेबर पार्टी ने 14 साल की टोरी (कंजर्वेटिव पार्टी) सरकार की अराजक और खराब शासन को समाप्त करते हुए भारी चुनावी जीत हासिल की है. सर कीर स्टार्मर (Sir Keir Starmer) ऐसे समय में 10 डाउनिंग स्ट्रीट में पीएम के रूप में शिफ्ट होंगे जब यह देश राजनेताओं में अपना विश्वास फिर से बहाल करने के लिए बेताब है.
कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार ने जिस डरावने शासन से यूके को गुजारा, उसे चुनाव से दो दिन पहले टिप्पणीकार और पूर्व फुटबॉलर गैरी नेविल ने संक्षेप में बयां किया था. गैरी नेविल ने कहा, “उन्होंने पार्टी की, उन्होंने चुनावों पर सट्टा लगाया, उन्होंने अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया, उन्होंने हर सार्वजनिक सेवा को तोड़ दिया... मैं कभी भी कुछ भी हल्के में नहीं लूंगा लेकिन मुझे उम्मीद है कि गुरुवार को उनका सफाया हो जाएगा. हमारे पास अब तक के सबसे बुरे लोग और सरकार हैं.''
शानदार जीत के बाद कीर स्टार्मर ने कहा, "हम वापस आ गए हैं". लेकिन प्रधान मंत्री के रूप में, उन्हें 650 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की अपेक्षाओं को पूरा करना होगा जिन्होंने स्पष्ट रूप से आमूलचूल परिवर्तन और स्थिरता के लिए अपना वोट दिया है.
कई भारतीयों के लिए, प्रधान मंत्री के रूप में ऋषि सुनक को ब्रिटेन में देश का "दामाद" यानी पहले देसी प्रधान मंत्री के रूप में देखा जाता था. कई भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने यहां तक कह दिया कि देसी अब ब्रिटेन पर 'शासन' कर रहे हैं.
लेकिन सुनक ने अपने कार्यकाल में क्या किया? एक्स पर लेखक और इतिहासकार सथनाम संघेरा के शब्दों में, “खैर, यह आश्चर्यजनक है कि हमारे पास एक ब्राउन पीएम था. यह कुछ ऐसा था जो मैंने सोचा था कि मैं कभी भी देखने के लिए जीवित नहीं रहूंगा. लेकिन जब उन्हें (सुनक) सुविधाजनक लगा तब उन्होंने नस्लवाद में हाथ डाला, और, राजनीतिक रूप से कहें तो, यह पूरी तरह से गलत साबित हुआ.''
हां, उन्हें एक मौका मिला और उसने उसे गंवा दिया. टोरीज का सफाया हो गया है. हार स्वीकार करते हुए सुनक ने कहा, "ब्रिटिश लोगों ने आज रात एक गंभीर फैसला सुनाया है, सीखने के लिए बहुत कुछ है... और मैं हार की जिम्मेदारी लेता हूं."
जब डेविड कैमरन सत्ता में थे, तो उन्होंने 2010 में नेसडेन मंदिर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान वादा किया था कि ब्रिटेन जल्द ही एक भारतीय प्रधान मंत्री को देखेगा. तब से, एक बदलाव आया है.
2010 में, 61 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीयों ने कहा कि वे लेबर पार्टी का समर्थन करते हैं. लेकिन द गार्जियन के अनुसार एक सर्वे से पता चला कि 2019 तक यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 30 प्रतिशत रह गया था. अधिकांश आर्थिक रूप से सफल भारतीय हिंदुओं ने अपनी निष्ठा कंजर्वेटिव पार्टी के पक्ष में शिफ्ट करना शुरू कर दिया.
कैमरन ने अधिक भारतीय मूल के लोगों को संसदीय उम्मीदवारों और पार्षदों के रूप में भर्ती करना अपना मिशन बना लिया. मैं कंजर्वेटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के पहले लॉन्च की हिस्सा थी. इस समय तक, दूसरी और तीसरी पीढ़ी के ब्रिटिश-भारतीय हिंदू समृद्ध, अच्छी तरह से एकीकृत और कंजर्वेटिव विचारधारा की ओर अधिक झुके हुए थे. भारत में 2014 में मोदी-बीजेपी सरकार उस वक्त सत्ता में आई थी, जब यहां कंजर्वेटिव पार्टी और अधिक दक्षिणपंथी हो रही थी.
भारत की सत्तारूढ़ बीजेपी और लेबर पार्टी के बीच संबंध तब खराब हो गए, जब 2019 में, लंदन में भारतीय उच्चायोग ने लेबर फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के साथ अपना वार्षिक स्वागत समारोह रद्द कर दिया. यह किसी भी सरकार के लिए यानी राजनयिक संबंधों के लिए एक अपरिपक्व कदम था. मोदी की जानी-मानी समर्थक प्रीति पटेल उस समय होम सेक्रेटरी थीं.
अब, 61 वर्षीय कीर स्टार्मर प्रधान मंत्री बनने को तैयार हैं. वो एक मानवाधिकार बैरिस्टर और अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) के पूर्व निदेशक हैं. वह एक व्यावहारिक सरकार देने की संभावना रखते हैं जिसके तहत भारत-ब्रिटेन संबंधों में बदलाव देखने को मिलेगा. सुनक भारत-यूके एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) को लागू करवाने में विफल रहे, वहीं स्टार्मर इसमें नई जान फूंक सकते हैं. उम्मीद है कि कठोर ब्रेक्सिट के नतीजों के बाद ईयू-यूके संबंधों में भी सुधार होगा. टोरी सरकार की रवांडा योजना अब खिड़की से बाहर हो जाएगी.
दिलचस्प बात यह है कि कुछ टोरी नेता हार गए हैं, वेल्स और स्कॉटलैंड में पार्टी का सफाया हो गया है और पूर्व प्रधानमंत्रियों- बोरिस जॉनसन और थेरेसा मे की सीटें लिबरल डेमोक्रेट्स ने ले ली हैं. अब तक की सबसे कम समय तक कुर्सी पर बैठने वाली ब्रिटिश प्रधान मंत्री लिज ट्रस भी अपनी सीट हार गई हैं.
चिंता की बात यह है कि दक्षिणपंथी रिफॉर्म पार्टी के नेता निगेल फराज ने अपनी सीट जीत ली है और वह अपने तीन सहयोगियों के साथ संसद में होंगे. लेकिन संसद में रिफॉर्म पार्टी की तुलना में अधिक निर्दलीय हैं (उनमें से अधिकांश गाजा समर्थक हैं). लिबरल डेमोक्रेट्स ने अनुमान से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है और वे टोरीज से बहुत पीछे नहीं हैं. यह ग्रीन पार्टी के लिए एक बड़ा समय है जिसके अब चार सांसद हैं.
यानी दक्षिणपंथी खत्म नहीं हुए हैं , वामपंथ अभी भी वहीं है. आगे आने वाला समय दिलचस्प है.
(नबनिता सरकार लंदन में स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sircarnabanita है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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