Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019भारत के नौजवान जान जोखिम में डालकर युद्ध क्षेत्रों में काम करने के लिए क्यों तैयार हैं?

भारत के नौजवान जान जोखिम में डालकर युद्ध क्षेत्रों में काम करने के लिए क्यों तैयार हैं?

ईरान-इजरायल संघर्ष ने विदेशों में भारतीयों की नौकरी की संभावनाओं को कैसे प्रभावित किया है?

संजय कपूर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>भारत के युवा जान जोखिम में डालकर युद्ध क्षेत्रों में काम करने के लिए क्यों तैयार हैं?</p></div>
i

भारत के युवा जान जोखिम में डालकर युद्ध क्षेत्रों में काम करने के लिए क्यों तैयार हैं?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

(लोकसभा चुनाव से पहले लेखक ने उत्तर प्रदेश का दौरा किया है. उस दौरे से जुड़े लेख का यह दूसरा भाग है. पहला भाग यहां पढ़ें.)

श्याम उन प्रदर्शनकारियों की भीड़ में शामिल कारसेवकों में से एक थे जिन पर 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने का आरोप लगा था. कभी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कट्टर समर्थक रहे श्याम का अब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों से मोहभंग होता जा रहा है. वो कहते हैं, "मेरा बेटा बेरोजगार है. नौकरी पाने में उसकी कौन मदद करेगा."

हाल ही में उनके बेटे ने पूरे उत्साह के साथ उन्हें बताया था कि वो भी अपने दोस्तों के साथ काम करने के लिए इजरायल जा सकता है. फिलिस्तीनियों की जगह पर मजदूरों की भर्ती के लिए भारत और इजरायल सरकार के बीच समझौता हुआ है. इस काम के लिए केवल हिंदुओं को भेजा जाना था.

"मैंने मना कर दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वह किसी ऐसे क्षेत्र में जाए जहां युद्ध चल रहा हो," श्याम ने कहा.

उनके मुताबिक, फिलिस्तीनियों की जगह राजमिस्त्री और अन्य छोटे-मोटे काम करने के लिए करीब 8000 युवा इजरायल गए हैं.

ईरान-इजरायल संघर्ष ने विदेशों में भारतीयों की नौकरी की संभावनाओं को कैसे प्रभावित किया है?

ये आंकड़े देखने में ज्यादा लगते हैं क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि यूपी से इजरायल भेजे जाने वाले युवाओं का कोटा केवल 3000 के आसपास था. लेकिन नौकरी की संभावनाओं के अभाव में कम संख्या में युवाओं का बाहर जाना भी कितना बड़ा लगता है.

बहरहाल, रोजगार के इस छोटे अवसर पर भी अस्थायी रूप से ताला लग गया, जब ईरान ने दमिश्क में हुए कुद्स कमांडरों की हत्या का बदला लेने के लिए 13 अप्रैल को इजरायल पर हवाई हमला किया था. इस घटना के मद्देनजर विदेश मंत्रालय को भी मजबूरन भारत से ईरान और इजरायल की यात्रा करने वाले लोगों के लिए एडवाइजरी जारी करनी पड़ी थी.

यह उन भारतीयों के लिए एक बड़ा झटका था जो नौकरियों की तलाश में थे- भले ही उन्हें मजदूरों की कमी से जूझ रहे युद्ध ग्रस्त देश ही क्यों ने जाना पड़ता. देश में अग्निवीर योजना शुरू होने के बाद से यह और भी बढ़ गया है. अग्निवीर योजना के तहत सेना में 4 साल की शॉर्ट-टर्म नौकरी का प्रावधान है.

इस योजना के तहत 30 से 40 हजार अग्निवीरों में से केवल 25 प्रतिशत हो ही स्थायी रूप से सेना में नौकरी मिलेगी. यह 2019 (पिछली बार हुई पूरी भर्ती) में सेना में शामिल होने वाले 80,000 युवाओं की तुलना में एक बड़ी गिरावट है.

यही कारण है कि युवा हताश हैं और कहीं और नौकरी की तलाश कर रहे हैं. क्या वो इतने नाराज हैं कि सरकार बदल दें? इस बात का पता तो हमें 4 जून को ही चलेगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

विदेशी सेना में शामिल होने के लिए भारतीयों की बेताबी का क्या कारण है?

इजरायल से पहले, कई भारतीय युवा अपनी इच्छा से युद्ध में मदद करने के लिए रूस और यूक्रेन गए थे. एक रूसी अधिकारी ने लेखक को बताया था कि उनकी सेना में कैसे शामिल हो सकते हैं ये जानने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय लोग मॉस्को स्थित उनके कार्यालयों में पहुंचे थे.

लेखक ने चौंकते हुए अधिकारी से पूछा था, "भारतीयों को रूसियों के लिए क्यों लड़ना चाहिए?" अधिकारी ने संक्षिप्त में जवाब दिया, "पैसे के लिए, क्योंकि हम अच्छा पैसा देते हैं." उनके अनुसार, "यह 2 लाख रुपये प्रति महीने है और वो किस तरह के ऑपरेशन में जुटे हैं, उसके आधार पर अलग से भत्ता मिलता है."

इसके अलावा, कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद भारतीय लोगों को बिजनेस और घर के लिए लोन का भी ऑफर दिया जाता है.

भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''एक युवा या उसका परिवार इस तरह की नौकरी की पेशकश को कैसे नजरअंदाज कर सकता है.''

इसके अलावा, भारतीयों को रूस और यूक्रेन की ओर से लड़ने में वास्तव में कुछ भी गलत नहीं लगता है.

एक सरकारी अधिकारी ने समझाते हुए कहा, "यह संभव है कि जो लोग रूसी सेना में शामिल होना पसंद करते हैं उनमें से कई अग्निवीर बनना चाहते हैं और वे उन लोगों के वंशज भी हो सकते हैं जिन्होंने पहले या दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिशों के साथ लड़ाई लड़ी थी. उन्हें रूसियों, यूक्रेनियों या यहां तक ​​​​कि इजरायलियों के साथ लड़ने में गलत क्यों लगेगा? इनमें से किसी भी देश को भारत का दुश्मन घोषित नहीं किया गया है.”

“जब तक वो पाकिस्तान या तालिबान जैसे भारत के दुश्मन समझे जाने वालों में शामिल नहीं हो जाते, तब तक इसमें कोई दिक्कत नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके माता-पिता भी उन्हें दुश्मन के लिए लड़कर पैसे कमाने की इजाजत नहीं देंगे."

भारतीयों के रूसी सेना के संपर्क में आने के बाद से कुछ लोग वापस लौट आए हैं, लेकिन कई कथित तौर पर अभी भी युद्ध में शामिल हैं.

बात यह है कि कोई भी परिवार मजबूरी में ऐसे खतरनाक विकल्प चुनता है- चाहे अपने बेटे को युद्ध में ही भेजना क्यों न हो- इससे पता चलता है कि एक औसत मध्यम वर्ग के माता-पिता के लिए जीवन कितना कठिन हो गया है. बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए लोन से उनकी दुविधा और बढ़ जाती है.

यह एक क्रूर सच है जिसका सामना अपने बच्चों के लिए बड़े सपने देखने का साहस करने वाले भारत के ग्रामीण और छोटे शहरों में लाखों माता-पिता को करना पड़ता है.

युवा बेरोजगारी देश के भविष्य को कैसे प्रभावित करती है?

सरकार द्वारा बनाए गए फर्जी इकोसिस्टम से भी जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वो बताते हैं कि गंभीर नौकरी की स्थिति न केवल चुनावी नतीजों पर बल्कि देश के बहुप्रतीक्षित जनसांख्यिकीय लाभांश पर भी ग्रहण लगा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत की युवा बेरोजगारी दर तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बेहद अधिक है. 2022 में यह 23.33 फीसदी थी. चिंता की बात यह थी कि ज्यादा पढ़े-लिखे युवा की बेरोजगार रहने की आशंका बढ़ गई थी.

संतोष मेहरोत्रा ​​जैसे अर्थशास्त्रियों ने लगातार चेतावनी दी है कि कैसे, ठोस विनिर्माण और रोजगार रणनीति के अभाव में, युवाओं के पास आगे देखने के लिए कुछ नहीं होगा क्योंकि वो बेरोजगारों की श्रेणी में आ जाएंगे.

इससे भी बुरी बात यह है कि सरकार पेपर लीक पर लगाम लगाने में भी असफल रही है, जिसकी वजह से निराश युवाओं को बेरोजगारी की जंजीरों से मुक्त होने का अवसर नहीं मिलता है.

बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं के दर्जनों पेपर लीक हुए हैं, लेकिन वास्तव में इसे रोकने का कोई ठोस रास्ता नहीं खोजा गया है. कुछ शिक्षाविदों का मानना ​​है कि नौकरशाही का एक वर्ग इन लीक में शामिल हो सकता है क्योंकि उनके पास देने के लिए नौकरियां नहीं हैं.

युवाओं की दयनीय स्थिति सैकड़ों यूट्यूब वीडियो में सामने आती है जो पीड़ा और अभाव की कहानी बताते हैं. उनमें से बहुत से लोग शहरों में इस आशा के साथ रहते हैं कि कभी न कभी भाग्य उन पर मेहरबान होगा और वो परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी के साथ-साथ अपनी पंसद का दूल्हा या दुल्हन पा लेंगे.

यह भी एक फैक्ट है कि शॉर्ट-टर्म अग्निवीर योजना की घोषणा के बाद से सेना में नौकरी की इच्छा रखने वाले कई युवाओं के पास नौकरी बाजार में आकर्षक विकल्प नहीं रह गया है. यह एक तरह की पीड़ा है जिसे श्याम जैसे माता-पिता आसानी से बयां नहीं कर सकते, जो चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हों.

उनकी राय में नौकरियां देने में नाकामी बीजेपी सरकार पर भारी पड़ेगी. निराश श्याम कहते हैं, "अगर यह सरकार हारती है तो यह मेरे जैसे माता-पिता के अभिशाप के कारण होगा."

(लेखक दिल्ली की हार्डन्यूज पत्रिका के संपादक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT