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मैं सोचता हूं कि क्या कभी प्रोफेसर आर्थर लैफर मुंबई आए थे या महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की पसंदीदा भाषा मराठी की कुछ भी जानकारी उन्होंने हासिल की थी? मैं मानता हूं कि मेरे इस असामान्य सवाल का जवाब ना और सिर्फ ना होगा लेकिन इसके साथ ही मैंने आपकी जिज्ञासा को इतना तो बढ़ा ही दिया होगा कि आप ये सवाल करेंगे कि ये व्यक्ति करना क्या चाहता है, क्या वो अपने होश में है?
इसलिए मुझे अपनी बात को विस्तार से बताने दीजिए.
प्रोफेसर आर्थर लैफर एक प्रसिद्ध अमेरिकी सप्लाई चेन अर्थशास्त्री है जो येल, स्टैनफोर्ड, रोनाल्ड रीगन और डोनल्ड ट्रंप के साथ भी काम कर चुके हैं. 1974 की एक शाम वो वाशिंगटन होटल के टू कंटिनेंट्स रेस्तरां में डिक चेनी, डोनल्ड रम्सफेल्ड और जूड वानिस्की के साथ डिनर कर रहे थे. लैफर को अपना ऐतिहासिक भाषण याद नहीं है लेकिन वानिस्की का कहना है कि लैफर ने नैपकिन पर एक टेढ़ा-मेढ़ा घंटाकार वक्र (डिस्टॉर्टेड बेल कर्व) बनाया अपने दर्शकों को ये समझाने के लिए कि राष्ट्रपति जीराल्ड फोर्ड की टैक्स बढ़ोतरी सफल नहीं हो पाएगी. क्योंकि, एक सीमा के बाद कर दरों में वृद्धि होने पर भी राजस्व गिर जाता है.
लैफर की नैपकिन थ्योरी न ही सबसे अलग थी और न ही ये उनकी अपनी थ्योरी थी. इस्लामी विद्वान इब्न खल्दून ने मुकद्दिमाह में 600 साल पहले ये सिद्धांत दिया था. बाद में एडम स्मिथ, जॉन मेनर्ड केयंस और एंड्रीयू मेलन जैसे बड़े विद्वानों ने इसका समर्थन किया था. लेकिन उस शाम ये थ्योरी प्रोफेसर लैफर के नाम हो गई.
कई विद्वानों ने लैफर कर्व का खंडन किया है लेकिन इससे रूढ़ीवादी नेताओं के लिए इसका आकर्षण कम नहीं हुआ है -क्या आपको डोनाल्ड ट्रंप की 21% तक की बड़ी कटौती याद है?
अब तक सब अच्छा है, लेकिन आमची मुंबई और लैफर कर्व के बीच क्या पक रहा है? खैर, अगर प्रोफेसर लैफर अपने सिद्धांत के लिए शानदार उदाहरण ढूंढ रहे थे तो उन्हें ये महानगर के प्रॉपर्टी बाजार में मिल गया है. 26 अगस्त 2020 को मुंबई पर राज करने वालों ने वो किया जो कुछ ही लोक हितकारी भारतीय सरकारें करती हैं यानी उन्होंने कोविड के कारण बेजान रीयल एस्टेट मार्केट में जान फूंकने के लिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर पर स्टांप ड्यूटी को कम कर दिया. 31 दिसंबर 2020 तक के लिए इस दर को बेरहमी से 5% से घटाकर 2% कर दिया गया. इसका असर जादुई था:
राज्य के वित्त मंत्री इसका श्रेय लेने से खुद को नहीं रोक पाए: “इससे हमारी अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौट आई है. चार महीनों में रजिस्ट्रेशन 48% और राजस्व में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 367 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है.’’
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण टीवी पर सभी और अलग-अलग वर्ग के लोगों से उनके साहसिक विचार मांग रही हैं क्योंकि उनके शब्दों में “ये केंद्रीय बजट 100 साल में सबसे अहम बजट होने वाला है.” मैं इससे पूरी तरह से सहमत हूं. कोमा में पड़ी अर्थव्यवस्था को फिर से जगाना बहुत जरूरी है. लेकिन उन्हें जो आइडिया मिल रहे हैं वो ज्यादातर एक जैसे हैं.
संक्षेप में कहें तो प्रिय मंत्री जी, थोड़ा आक्रामक होइए, लेकिन आजमाए हुए, परखे हुए और उबाऊ तरीकों पर ही चलिए.
मैं इससे पूरी तरह असहमत हूं.
ये अलग तरह से सोचने का वक्त है, और शायद प्रोफेसर आर्थर लैफर को ताज कोलाबा के रेड ड्रैगन रेस्तरां में डिनर पर इस उम्मीद में आमंत्रित करने का कि वो नैपकिन पर एक और बेल कर्व बनाएंगे.
अर्थव्यवस्था फिलहाल 8% पर सिमट गई है लेकिन अगले साल ये 10% की रफ्तार से बढ़ेगी, ये वित्त वर्ष 19-20 के मूल्यों को फिर से हासिल कर लेगी. वास्तव में वित्त वर्ष 21-22, वित्त वर्ष 19-20 जैसा ही हो सकता है. इसलिए अगर हम उस वर्ष की वास्तविक संख्या पर काम करते हैं तो हम अगले साल के आंकड़ों को लेकर काफी सटीक हो सकते हैं.
प्रिय वित्त मंत्री सीतारमण जी, ये परंपरागत, हठधर्मी, डर और गतिरोध को दूर करने का समय है. हर संभव कोशिश कीजिए. 'आर्थिक विधर्मी' मत को सुनिए. टैक्स में कटौती कीजिए. हां, मैं प्रभाव को ज्यादा बता रहा हूं लेकिन सिद्धांत ऐसे नहीं हैं जो टूट न सकें. अगर 50% आपके लिए थोड़ा ज्यादा है तो 33 % की कटौती के साथ शुरुआत कीजिए. अगर आप सुरक्षा का दोहरा उपाय करना चाहते हैं तो सिर्फ छह महीनों के लिए इसे आजमाएं (लोन मोराटोरियम की तरह), पूरे साल के लिए नहीं. लेकिन आगे जरूर बढ़ें, कुछ नया करें और खुद को खुश करें.
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Published: 07 Jan 2021,09:09 PM IST