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बहस | योगी के CM बनने पर सवाल उठाना जनमत का अपमान है: सहस्रबुद्धे

लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए किसी धार्मिक नेता को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए क्यों खतरा बताया जा रहा है?

विनय सहस्रबुद्धे
नजरिया
Updated:
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटो: <b>The Quint</b>)
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटो: The Quint)
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योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से नेहरूवादी-सेक्युलर खेमा जिस तरह असहज महसूस कर रहा है, वह हैरान करने वाला है. कई पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार की वैधता को खारिज करने पर आमादा हैं.

उनका गेम प्लान नया नहीं है. जब वे बहुमत में होते हैं और चुनाव के नतीजे उन्हें सूट करते हैं, तब वे उसे लोकतंत्र की जीत बताते हैं और यह कहते नहीं थकते कि जनमत लोगों की आकांक्षा का प्रतीक है. जब नतीजे मन-मुताबिक नहीं होते और वे उनके पर्सनल करियर के खिलाफ जाते हैं, तब वे इस कथित ‘बहुमतवाद’ के खिलाफ आशंकाएं जाहिर करते हैं. सेक्युलर ब्रिगेड का पाखंड इस मामले से एक बार फिर सामने आ गया है. यह पहली बार नहीं हुआ है.

सेक्युलर-प्रोग्रेसिव खेमे का जो चेहरा दिख रहा है, उससे तकलीफ होती है. उसे पता है कि भारत किसी भी सूरत में धार्मिक राष्ट्र नहीं बन सकता, चाहे जो भी हो जाए. भारत में लोकतंत्र की सफलता की बुनियाद आध्यात्मिक लोकतंत्र को लेकर मजबूत कमिटमेंट रहा है.

भारतीय लोकतंत्र ‘एकं सत् विप्र: बहुधा वदंति’ की सोच पर आधारित है, जिसका मतलब यह है कि सच एक है, लेकिन ज्ञानी लोग इसे अलग-अलग ढंग से परिभाषित करते हैं. यह देश कई राजाओं का शासन देख चुका है. इनमें से ज्यादातर यहीं के थे और कुछ बाहर से आए थे. वे यहां आए, उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन यहां के लोगों का धर्म नहीं बदल पाए.

उसकी वजह यह है कि वे जिस धार्मिक सोच को लेकर आए थे, वह इस देश के आध्यात्मिक लोकतंत्र की बुनियाद से मेल नहीं खाता था.

(इंफोग्राफिक: Rhythum Seth/The Quint)

प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक, आज भी दुनिया में 31 ऐसे देश हैं, जहां राष्ट्राध्यक्ष का पद किसी खास धर्म को मानने वालों के लिए आरक्षित है. याद रखिए कि आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री इसलिए नहीं चुना गया, क्योंकि वह एक मठ के महंत हैं. वह गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने गए हैं. योगी स्थापित नेता हैं, जिन्हें लोगों और अपनी पार्टी का समर्थन हासिल है.

लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए किसी धार्मिक नेता को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए क्यों खतरा बताया जा रहा है? चौंकाने वाली बात यह है कि यही सेक्युलर खेमा विरासत की सियासत पर खामोश रहा है. जब कोई इस बारे में सवाल करता है, तो उसका जवाब होता है, ‘तो क्या हुआ? आखिर उ‌न्हें भी तो लोगों ने ही चुना है.’

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लोग अटकलें लगा रहे हैं कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के नकारात्मक नतीजे क्या होंगे. यह उनके साथ तो अन्याय है ही, वोटरों का भी अपमान है. योगी ने कुछ सख्त प्रशासनिक कदम उठाए हैं, उसे लेकर एक बेतुकी बहस शुरू कर दी गई है और उसे कृत्रिम ढंग से हवा दी जा रही है.

दरअसल, ये कदम बीजेपी के संकल्प पत्र के मुताबिक हैं, जिसके आधार पर चुनाव में पार्टी ने वोट मांगे थे. अवैध बूचड़खानों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को इसी तरह देखा जाना चाहिए. कुछ समय तक टुंडे कबाब नहीं मिलने को लेकर बेतुका हो-हल्ला मचाना एक बात है और पार्टी घोषणापत्र में किए गए वादों पर अमल करना दूसरी बात.

(फोटो: रॉयटर्स)

वादे के मुताबिक, योगी सरकार ने 216 अवैध बूचड़खानों को बंद करने का आदेश दिया है. 800 मनचलों को सलाखों के पीछे भेजा गया है. सरकारी कर्मचारी समय पर दफ्तर आ रहे हैं. सरकारी दफ्तरों में पान मसाला और गुटखा बैन कर दिया गया है. लोगों के खुले में शराब पीने पर सख्ती से रोक लगा दी गई है. करप्शन के खिलाफ लड़ाई के लिए योगी ने स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम बनाने का आदेश दिया है, जो लखनऊ-आगरा हाइवे में हुए बड़े घोटाले की जांच करेगी.

क्या चुनाव से पहले किए गए वादों पर अमल के साथ योगी सरकार का कामकाज शुरू करना गलत है? क्या यह हमारे लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है?

कई लोग जानते हैं कि योगी जी के मठ में न सिर्फ कई मुस्लिम श्रमदान करते हैं, बल्कि वे उनका बहुत सम्मान भी करते हैं. दूसरे लोगों ने इस पर हैरानी जताई. शायद वे छत्रपति शिवाजी महाराज को भूल जाते हैं, जिन्होंने मुगलों से लड़ाई लड़ी थी और उनके कई मुस्लिम विश्वासपात्र थे.

प्रधानमंत्री जिस नए भारत की बात करते रहते हैं, वह पाखंड से नफरत करता है. वे जल्दबाजी में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचना चाहते. वे ईमानदार हैं और साफगोई से काम कर रहे हैं. वे संकेतों की सियासत को पीछे छोड़ना चाहते हैं. वे यह सवाल करते हैं, ‘आपने नया क्या पेश किया है?’

वे दशकों पुराने मसलों को सुलझाने के लिए इनोवेटिव तरीके आजमा रहे हैं. वे नतीजे चाहते हैं. भले कोई इसे पसंद करे या नहीं. सेक्युलर ब्रिगेड को यह बात याद रखनी चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो जल्द ही उनकी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी.

आदित्यनाथ योगी के यूपी का मुख्यमंत्री बनने से भारतीय राजनीति में नया सूरज उगा है. हम उम्मीद करते हैं कि यह सूर्य बने-बनाए ढर्रे के अंधेरे को दूर करेगा और इससे परफॉर्मेंस की पॉलिटिक्स पर नई बहस शुरू होगी.

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(विनय सहस्रबुद्धे सांसद और भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं. ट्वटिर पर उनसे @vinay1011 पर जुड़ा जा सकता है. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. )

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Published: 29 Mar 2017,11:34 AM IST

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