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बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस के बाद अब समाजवादी का ‘ब्राह्मण कार्ड'

कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी के बाद अब ब्राह्मण को लुभाने में जुटी समाजवादी पार्टी.

हर्षवर्धन त्रिपाठी
नजरिया
Updated:
सीएम अखिलेश यादव <b>(फोटोः Facebook)</b>
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सीएम अखिलेश यादव (फोटोः Facebook)
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भ्रष्टाचार के आरोपी गायत्री प्रजापति फिर से अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में शामिल हो गए हैं. लेकिन, ये अब खबर नहीं है. क्योंकि इस पर जितना बोला-लिखा जाना था, वो हो चुका.

अब खबर ये है कि गायत्री के साथ प्रतापगढ़ की रानीगंज विधानसभा से चुनकर आए शिवाकांत ओझा भी फिर से कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं. शिवाकांत ओझा इसी सरकार में मंत्री बने और हटाए गए थे. अब फिर से बना दिए गए हैं.

ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने की कोशिश

शिवाकांत ओझा का अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल होना, इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी हफ्ते भर पहले ही बीजेपी के एक कार्यक्रम में ओझा का स्वागत किया गया था. प्रतापगढ़ जिले में बीजेपी के संभावित प्रत्याशियों में शिवाकांत ओझा का भी नाम चल रहा है. शिवाकांत भाजपाई रास्ते से ही राजनीतिक सफलता हासिल करने के बाद समाजवादी हुए थे. अगर आपको इसमें कोई बड़ी खबर नहीं नजर आ रही है. तो उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार के दूसरे कुछ नए मंत्रियों के नाम सुनिए.

मनोज पांडेय को भी कैबिनेट में ले लिया गया है. अखिलेश यादव के बेहद करीबी अभिषेक मिश्रा कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं. ये अखिलेश की कैबिनेट के नए नाम नहीं हैं.

ये दरअसल इस समय हर रोज बदलती उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति में एक नया, काम वाला सूत्र है. इस पर अभी तक भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ही लगे थे. अब इस सूत्र को आखिरी दौर में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने भी थाम लिया है. ये सूत्र उत्तर प्रदेश में इस समय सबसे हिट चुनावी नारा है, और ये नारा है पंडित जी पांवलागी. और अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल विस्तार में 3 ब्राह्मणों को जगह देकर इसी नारे को बुलंद करने की कोशिश की है.

मुलायम सिंह यादव के साथ भी लंबे समय तक जनेश्वर मिश्रा जैसा बड़ा ब्राह्मण नेता रहा है. और जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, तो उनके साथ भी अभिषेक मिश्रा थे. लेकिन, इसके बावजूद समाजवादी पार्टी की छवि ब्राह्मणों को कम ही लुभाती रही. इसकी बड़ी वजह यादवों के वर्चस्व वाली पार्टी में ब्राह्मणों को कम मिलता सम्मान रहा. साथ ही ये भी एक वजह थी कि ब्राह्मण खुद को कांग्रेस से हटने के बाद पिछले 2 दशकों से भारतीय जनता पार्टी को अपनी स्वाभाविक पार्टी मानने लगा.

...जहां फायदा, वहां वोट

अब जब 2007 में मायावती ने सतीश मिश्रा के जरिए समाजिक बदलाव का नया समीकरण स्थापित करके दिखा दिया, तो ये तय हो गया कि उत्तर प्रदेश में अब कोई भी जाति किसी पार्टी की बपौती नहीं रही. इस चुनाव में तो ये बात कुछ ज्यादा ही मजबूती से साबित हो रही है.

करीब 14% ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने-गिराने में अहम भूमिका रखता है. और अब जब ब्राह्मण वोट बीजेपी के खूंटे से बंधने के बजाए हवा में उड़ने लगा, तो हर कोई इस उड़ते वोट को लपक लेना चाहता है. यहां तक कि कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक पुनर्जन्म में ब्राह्मण मत ही संजीवनी बूटी की तरह दिख रहा है.
देवरिया में मीटिंग पॉइंट पर राहुल गांधी लोगों को संबोधित करते हुए. (फोटो: INC)

ब्राह्मण वोट के सहारे पुर्नजन्म चाहती है कांग्रेस

दिल्ली में राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय होने के बाद शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर मैदान में उतार दिया है. यहां तक कि इलाहाबाद में राहुल गांधी की यात्रा के दौरान कई पोस्टर-बैनरों में पंडित राहुल गांधी लिखा हुआ था. शीला दीक्षित लगभग हर सभा में कहती हैं कि वो अब यूपी की हैं और ब्राह्मण हैं. कांग्रेस के लिए एक अच्छी बात ये है कि लगभग हर जिले में बचे हुए बड़े कांग्रेसी नेता ब्राह्मण ही हैं. जिलों के अस्तित्वहीन हो चुके ब्राह्मण कांग्रेसी नेता फिर से चमकने लगे हैं.

बीएसपी को मिली थी ब्राह्मण फॉर्मूले से कामयाबी

मायावती ने ब्राह्मणों के बीजेपी की तरफ रुझान दिखने के चलते मुसलमानों को ज्यादा तरजीह दी. लेकिन, अब जिस तरह से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण हर घंटे के साथ बदल रहे हैं, उसमें ब्राह्मणों को छोड़ देने जैसा संदेश जाने का खतरा बहन जी को भी सताने लगा हैं. इसीलिए विश्वस्त ब्राह्मण नेता सतीश चंद्र मिश्रा फिर से मैदान में हैं.

बहुजन समाजवादी पार्टी प्रमुख मायावती. (फोटो: PTI)
अब सतीश मिश्रा और रामवीर उपाध्याय फिर से पूरे प्रदेश में ब्राह्मणों का सम्मान जगाने में जुट गए हैं. पूरब का जिम्मा सतीश मिश्रा के पास और पश्चिम का जिम्मा रामवीर उपाध्याय के पास. 30 से ज्यादा ब्राह्मण सभाएं सतीश मिश्रा करने जा रहे हैं. सतीश मिश्रा ने गोरखपुर जिले की खजनी विधानसभा से इसकी शुरूआत की है.

सतीश मिश्रा कह रहे हैं कि ब्राह्मण और दलित मिलकर इस बार बीएसपी की सरकार बनाने जा रहे हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि ब्राह्मणों को ज्यादा उन विधानसभा में पकड़ने की कोशिश बीएसपी कर रही है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं. दरअसल इन सीटों पर सभी प्रत्याशी अनुसूचित जाति के होने से और ब्राह्मणों का एकमुश्त मत मिल जाने से बीजेपी ऐसी सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करती रही है. अब बीएसपी इसी चक्र को तोड़ने के लिए ब्राह्मणों को लुभाने में लगी है.

बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह (फाइल फोटो: Reuters)

बीजेपी को है ब्राह्मणों के छिटकने का डर

बीजेपी का हाल ये है कि ब्राह्मण-बनिया की पार्टी का ठप्पा लगा होने के बावजूद उसे भी ब्राह्मण वोटों के छिटकने का डर सता रहा है. मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्रा से लेकर निवर्तमान अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी तक बड़े ब्राह्मण नेता उसके पास हैं. लेकिन, फिर भी तीन चुनाव हारने वाले बीएसपी में सतीश मिश्रा के डिप्टी रहे ब्रजेश पाठक तक को राष्ट्रीय परिषद में शामिल कर लिया है. कुल मिलाकर इस चुनाव में 2 राष्ट्रीय और 2 क्षेत्रीय पार्टियों के बीच 14% ब्राह्मण वोटों के लिए जबरदस्त मारकाट होती दिख रही है.

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Published: 26 Sep 2016,02:51 PM IST

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