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कुछ दिनों में नोटबंदी के बजाय यह बहस शुरू हो जाएगी कि 2017-18 का बजट कैसा होगा और इसमें क्या हो सकता है, जिसे इस साल 1 फरवरी को पेश किया जाएगा. फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने फरीदाबाद में नेशनल एकेडमी ऑफ कस्टम्स, एक्साइज एंड नार्कोटिक्स के एक प्रोग्राम में सोमवार को इसका संकेत भी दे दिया.
जेटली ने कहा, ''पहले टैक्स की दरें बहुत ज्यादा थीं, जिससे टैक्स चोरी को बढ़ावा मिला. हमें टैक्स रेट को कम करना चाहिए.'' उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा लोग टैक्स चुकाने के लिए आगे आएंगे.
यह अच्छी सोच है, जिसकी तारीफ होनी चाहिए. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि वह इस पर अमल करेंगे. देश में जो लोग टैक्स देते हैं, उन पर इसका बोझ बहुत ज्यादा है.
इसी वजह से ईमानदार लोग भी मौका मिलने पर टैक्स चोरी करते हैं. इस मामले में सेल्स टैक्स की मिसाल दी जा सकती है. भारत में ऐसा कौन सा इंसान बचा होगा, जिससे दुकानदार ने कच्ची पर्ची या पक्का बिल बनाने के बारे में नहीं पूछा? कितने लोग पक्के बिल की मांग करते हैं? फिर बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी को लेकर हैरानी क्यों होनी चाहिए?
यह बड़ी प्रॉब्लम है. जेटली इसे समझते हैं, इसके लिए उन्हें दाद दी जानी चाहिए.
इनकम टैक्स का इतिहास आज हर किसी को यही लगता है कि इनकम टैक्स हमेशा से रहा है. यह सच नहीं है. आधुनिक दुनिया में सबसे पहले यह टैक्स ब्रिटेन में 19वीं सदी की शुरुआत में लगाया गया. नेपोलियन से युद्ध के लिए फंड जुटाने की खातिर ब्रिटेन में यह टैक्स लगाया गया था. वॉर खत्म होने के बाद 1816 में इसे वापस ले लिया गया. 35 साल बाद वहां इनकम टैक्स फिर लगाया गया और उसके बाद से यह चला आ रहा है.
टैक्स में कटौती कहां करनी चाहिए, फाइनेंस मिनिस्टर कौन सा टैक्स कम करेंगे, इनकम टैक्स या इनडायरेक्ट टैक्स? इनडायरेक्ट टैक्स की जगह गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लेने वाला है. इसे अगले साल सितंबर तक लागू करना होगा. अगर ऐसा नहीं होता, तो सरकार को पैसे कम पड़ जाएंगे.
जीएसटी रेट (दरअसल इसकी पांच दरें तय हैं) तय हो चुका है. एवरेज जीएसटी रेट 21% के करीब बैठता है. जीएसटी के लागू होने के बाद राज्यों के पास जिन चीजों पर कर वसूलने के अधिकार बचेंगे, उनमें भी उनकी बहुत नहीं चलेगी. इससे आपके टैक्स बिल में 5-8% की बढ़ोतरी हो सकती है. इसके बाद सेस बचते हैं, जिनसे और 2% टैक्स का बोझ पड़ेगा.
अगर आप इनकम टैक्स को छोड़कर इनडायरेक्ट टैक्स, सेस और म्यूनिसिपल चार्जेज को जोड़ते हैं तो यह 25% के करीब बैठता है. इसका मतलब है कि सरकारें आपकी कमाई का इतना हिस्सा ले लेंगी.
इसलिए फाइनेंस मिनिस्टर के सामने बड़ा साधारण-सा सवाल है कि इनकम टैक्स रेट क्या होना चाहिए?
मैं दो दशक से कह रहा हूं कि इसके सिर्फ दो स्लैब- 10% और 25% होने चाहिए.
इससे टैक्स का दायरा बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी. 1998 के बाद का वक्त इसकी गवाही देता है. 1997 में तत्कालीन फाइनेंस मिनिस्टर पी चिदंबरम ने इनकम टैक्स रेट में नाटकीय ढंग से कमी की थी, जिसे मीडिया ने ‘ड्रीम बजट’ बताया था. इस बजट के लिए आज तक चिदंबरम की तारीफ होती है. अब जेटली की बारी है और उम्मीद है कि वह यह मौका नहीं चूकेंगे.
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(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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