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वर्जीनिया का एक इंडियन अमेरिकन ट्रंप समर्थक व्हाइट हाउस के उस सेव अमेरिका मार्च का हिस्सा था जिसकी अपील खुद डोनाल्ड ट्रंप ने की थी. उसका नाम है, विन्सेंट जेवियर पलाथिंगल और वह रिपब्लिकन पार्टी की वर्जीनिया स्टेट सेंट्रल काउंसिल का सदस्य है. तो, 6 जनवरी को इस शख्स ने यूएस कैपिटल में तिरंगा लहराया और कुछ इस तरह अपनी जातीय विविधता, साथ ही अमेरिका के लिए अपना प्यार दर्शाया.
हालांकि विन्सेंट ने उस लोगों की आलोचना की जो कैपिटल बिल्डिंग में घुस गए थे. उसका दावा है कि वह वहां के लॉन्स में ही था और उसने सीढ़ियों तक जाने या कैपिटल बिल्डिंग के अंदर घुसने की कोशिश नहीं की थी.
6 जनवरी को मिनिसोटा, मिशिगन, वर्जीनिया और न्यूजर्सी सहित कई स्टेट्स के इंडियन अमेरिकन ट्रंप समर्थक व्हाइट हाउस और यूएस कैपिटल के बाहर मौजूद थे.
‘साऊथ एशियन रिपब्लिकन कोअलिशन’ (एसएआरसी) के चेयरमैन हेमंत भट्ट ने भी ट्रंप की वह अपील सुनी थी, जिसमें वह लोगों को व्हाइट हाउस ‘सेव अमेरिका मार्च’ का हिस्सा बनने को कह रहे थे. वहां उन्होंने कहा था कि बोल्ड और उग्र लेफ्ट डेमोक्रेट्स ने चुनावी जीत को हमसे चुरा लिया है. ट्रंप ने अपने समर्थकों को कांग्रेस तक मार्च करने को कहा था.
साऊथ जर्सी में फ्लेमिंग्टन के रिपब्लिकन समर्थकों के समूह में भट्ट भी शामिल थे. “अपने समूह में मैं अकेला भारतीय था. मैं एसएआरसी के प्रतिनिधि के तौर पर गया था. हम राष्ट्रपति ट्रंप को सुन नहीं पा रहे थे क्योंकि हम व्हाइट हाउस की उस तरफ नहीं थे. हम कैपिटल से काफी दूर थे.”
भट्ट यूएस कैपिटल की हिंसा को गलत बताते हैं.
हेमंत डोनाल्ड ट्रंप के गुजराती दोस्त कहलाते हैं. वह ट्रंप के भारत दौरे ‘चलो गुजरात’ प्रोग्राम का भी हिस्सा थे.
वह जिक्र करते हैं कि ट्रंप की रैलियां आम तौर पर शांतिपूर्ण रहती हैं और हिंसा दूसरे लोग भड़काते हैं. “हम हजारों-हजार समर्थकों को देखकर हैरान थे. इसमें बहुत से लोग शामिल थे. मुझे नहीं लगता कि ट्रंप समर्थक ऐसा करेंगे.”
ऐसा लगता नहीं कि ट्रंप का जनाधार खत्म होने वाला है. बेशक, इसमें उनके देसी समर्थक भी शामिल हैं.
डैनी गायकवाड़ को भी ट्रंप की व्हाइट हाउस रैली में बुलाया गया था. डैनी फ्लोरिडा में रियल ऐस्टेट डेवलपर हैं और होटल भी चलाते हैं. वह ‘इंडियन वॉयसेज़ फॉर ट्रंप’ के एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य हैं. “चूंकि मैं नेशनल टीम्स में हूं, इसलिए अलग-अलग संगठनों ने मुझे कम से कम 10 बार मैसेज किया. सपोर्ट करने, डीसी में रैली निकालने के लिए ईमेल्स, टेक्स्ट, फोन कॉल्स आए. मैं हाल ही में कोविड-19 से रिकवर हुआ हूं इसलिए मैं नहीं जा सका.”
डैनी 27 साल से रिपब्लिकन हैं. वह कहते हैं कि ट्रंप के देसी समर्थक उनके साथ ही रहने वाले हैं. “अगर कोविड का डर न होता तो पांच गुना ज्यादा लोग आते. मैं खुद फ्लोरिडा से कम से कम 500 भारतीयों को लेकर वहां पहुंचता. हमारी संख्या हजारों में हैं. पर मैं हिंसा और लूटमारी के खिलाफ हूं.” वह कहते हैं.
गायकवाड़ को लगता है कि ट्रंप के समर्थक निराश हैं इसीलिए इससे ज्यादा हिंसा हो सकती है. “यह आखिरी बार नहीं है. यह खत्म होने वाला नहीं है. लोग सचमुच बहुत गुस्से में हैं. शपथ ग्रहण वाले दिन (बाइडेन का शपथ ग्रहण 20 जनवरी को है) सौ फीसदी हमें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. अभी तो बस शुरुआत है. यह छोटी छोटी जगहों पर, एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचेगा, जैसा कि डेमोक्रेट्स ने किया था. यह दौर दुर्भाग्यपूर्ण है और जल्द खत्म होने वाला नहीं है. उन्होंने लंबे समय तक नतीजों का इंतजार किया और अब सभी लोग खफा हैं. 39% लोगों को लगता है कि यह चुनाव फ्रॉड थे.”
पोलिटिको/मॉर्निंग कंसल्ट सर्वे के मुताबिक, 70% रिपब्लिकंस का कहना है कि 2020 के चुनाव मुक्त और निष्पक्ष थे, वे ऐसा नहीं मानते. दूसरी तरफ 90% डेमोक्रेट्स का कहना है कि चुनाव एकदम दुरुस्त थे- मुक्त और ईमानदार थे. रिपब्लिकन लोग ट्रंप पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं. देसी ट्रंप समर्थकों की राजनैतिक भावनाएं उफान पर हैं.
इनमें से एक ने मुझे बताया कि उसे ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने की पूरी उम्मीद थी. लेकिन ‘डेमोक्रेटिक इस्टैबलिशमेंट और मीडिया ने उनसे जीत छीन ली.’ एक इंडियन अमेरिकन ट्रंप समर्थक ने यह भी कहा, “लोकतंत्र में मेरा पूरा भरोसा है, इसीलिए मैंने इस देश को चुना. लेकिन हमारी आवाज को बंद किया जा रहा है. ट्रंप सपोर्टर्स को ट्रैक किया जा रहा है. हम लोग पूरे एक साल रुके रहे. अब हम सामने नहीं आना चाहते और कोई बयान नहीं देना चाहते. अब सब कुछ बेमायने है.”
रिपब्लिकन पार्टी से समर्थन न मिलने की वजह से इंडियन अमेरिकन ट्रंप समर्थकों का दिल टूट गया है. चुनावों में बेईमानी हुई है, इस साजिश के किस्से तैर रहे हैं. इसके अलावा देसी व्हॉट्सएप ग्रुप्स पर ऐसे रैंडम संदेश आ रहे हैं कि ‘80 मिलियन ट्रंप समर्थक’ एक नया राजनैतिक दल बनाएं.
2016 में डोनाल्ड ट्रंप की जीत का अंतर और 2020 के चुनाव अभियान से साफ पता चलता था कि देश बहुत गहराई तक बंटा हुआ है. चुनावों से पहले और चुनाव वाले दिन के एनबीसी पोल में वोटर्स ने संकेत दिया था कि देश के 63% एशियन अमेरिकन वोटर्स ने बाइडेन को वोट दिया था. सिर्फ एक छोटे समूह यानी 31% ने ट्रंप को वोट दिया था.
सितंबर में एशियन अमेरिकन एंड पैसिफिक आइलैंडर्स (एएपीआई) के आंकड़ों से संकेत मिला था कि एशियन अमेरिकन समूहों में से 66% इंडियन अमेरिकन्स के बाइडेन को वोट देने की सबसे ज्यादा उम्मीद है. समय के साथ एएपीआई वोटर्स डेमोक्रेट्स की ओर झुक गए. डेमोक्रेट्स का एएपीआई समुदाय में निवेश का लंबा इतिहास है, जबकि रिपब्लिकन ने पिछले 10 वर्षों में इसमें बढ़ोतरी की है.
2016 में रिपब्लिकन्स ने इंडियन अमेरिकन्स के बीच जगह बनाई जोकि अधिकतर डेमोक्रेट्स समर्थक थे. इसके लिए रिपब्लिकन हिंदू समूहों ने काफी कोशिशें की थीं- चूंकि वे ट्रंप और मोदी के बीच सैद्धांतिक समानताओं का फायदा उठाना चाहते थे.
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को कवर करते हुए मैंने बहुत से इंडियन अमेरिकन्स से बातचीत की थी. अब कैपिटल की घेराबंदी के बाद मुझे उनमें से कई की बातें याद आ रही हैं. तब कइयों ने ऐसी हिंसा की आशंका जताई थी.
इंडियन अमेरिकन समुदाय विभाजित है. देसी रिपब्लिकन समर्थकों को चिंता है कि अगर बाइडेन राष्ट्रपति बने तो टैक्स बढ़ जाएंगे और भारत की सुरक्षा को चीन से खतरा होगा. दक्षिण एशियाई डेमोक्रेट समर्थकों को 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद से ध्रुवीकरण, नस्लवाद और प्रवासियों के खिलाफ आक्रोश बढ़ने का खतरा महसूस होता था.
इंडियन अमेरिकन समुदाय में देसी डेमोक्रेट्स का बड़ा हिस्सा है और पिछले चार साल में ट्रंप के अल्पसंख्यक विरोधी रवैये और कठोर प्रवासी नीतियों के चलते उनकी आशंकाएं बढ़ी थीं. उन्होंने बाइडेन और हैरिस का जोरदार समर्थन किया क्योंकि उन्हें लगता था कि ट्रंप की पार्टी प्रवासियों को पसंद नहीं करती, और पीपुल ऑफ कलर पर ट्रंप जिस तरह शब्दों से हमले करते हैं, उससे वे लोग घबराए हुए थे.
ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी राजनीति में देसी लोगों ने पहले से ज्यादा बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. वे उम्मीदवारों, ऑर्गेनाइजर्स, कैनवेसर्स, फंडर्स और वोटर्स के तौर पर बड़ी संख्या में सक्रिय हुए. उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि इस तरह सत्ता के गलियारों में उनकी भी आवाज सुनी जाएगी. लेकिन ट्रंप ने जिस तरह विभाजनकारी राजनीति का खेल खेला, उसका एक भयावह रूप यूएस कैपिटल में नजर आया.
बाइडेन-हैरिस के देसी समर्थक यूएस कैपिटल की हिंसा की आलोचना कर रहे हैं. वॉशिंगटन से दूर कैलीफोर्निया में रहने वाले देसी लोग भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, खास तौर से जब राजधानी में लोग कानून को इतनी आसानी से अपने हाथों में ले सकते हैं. वे उस देश के लिए फिक्रमंद हैं जिसे वे अब अपना वतन कहते हैं.
(सविता पटेल एक सीनियर जर्नलिस्ट और प्रोड्यूसर हैं. वह फिलहाल सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में रहती हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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