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अब्राहम लिंकन, जॉन एफ कैनेडी और बराक ओबामा...क्या ये बस कुछ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों के नाम हैं? नहीं! ये कुछ सामान्य लोग हैं जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बनकर दुनिया को लोकतंत्र, समानता, समाजवाद और व्यक्तिवाद में भरोसा दिलाया. ये वो लोग थे जो सही बातों के लिए खड़े हुए, अनैतिकता, गरीबी और महामारियों के खिलाफ जंग लड़ी. सामान्य लोगों की तरह. एक शक्तिशाली मुल्क के राष्ट्रपति की तरह सीना ठोकते हुए नहीं.
लेकिन साल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति को उम्मीदवारी मिलती है. ट्रंप ने इन महान लोगों के काम को मिट्टी में मिला दिया.
डोनाल्ड ट्रंप ने अंतिम प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद ऐलान किया कि अगर चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में नहीं होंगे तो वे उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे. ट्रंप ने अपने इस बयान दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र को चुनौती दी है. लोकतंत्र वो सिस्टम है जो आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करने की शक्ति देती है. ट्रंप ने अपने इस बयान से अमेरिका ही नहीं दुनिया के हर उस शख्स को चुनौती दी है.
डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव के दौरान अमेरिका में माइग्रेंट्स यानी दूसरे देशों से आकर अमेरिका में बसने वाले लोगों की अमेरिका में एंट्री पर लिमिट लगाने को कहा है. अगर पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने ये नीति अपनाई होती तो अब्राहम लिंकन से लेकर जॉन एफ कैनेडी और बराक ओबामा कभी अमेरिका के राष्ट्रपति न बन पाते. क्योंकि अब्राहम लिंकन के पिता इंग्लैंड से अमेरिका आकर बसे थे, कैनेडी आईरिश परिवार से आते हैं और बराक ओबामा के पिता ने केन्या छोड़कर अमेरिका को अपना देश बनाया था.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूरे चुनावी अभियान में कई बार प्रेसिडेंशियल कैंडीडेट हिलेरी क्लिंटन समेत कई महिलाओं के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां की हैं. लेकिन ट्रंप से बहुत पहले एक अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विलियम्सन ने 1920 में अमेरिकी महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाया था. अगर तब भी ट्रंप जैसी सोच वाले लोग होते तो शायद अमेरिका में कभी एक महिला राष्ट्रपति पद के इतने करीब नहीं पहुंच पाती.
ट्रंप अक्सर अमेरिका में बंदूक रखने के अधिकारों की पैरवी करते आए हैं. लेकिन अमेरिका के कई प्रोग्रेसिव राष्ट्रपतियों ने बंदूकों के प्रसार को नियंत्रित करने की पैरवी की है. जरा सोचकर देखिए कि क्या एक सभ्य समाज में हर व्यक्ति के पास बंदूक होना जरूरी है?
ट्रंप अब तक कई बार ये बता चुके हैं कि उनकी सबसे बड़ी खासियत ये रही है कि वे सबसे अमीर हैं. जबकि असलियत में ट्रंप की कंपनियां अमेरिकी सरकार के वेलफेयर स्कीम का फायदा उठाकर टैक्स से छूट पा रही हैं.
अगर इसे किनारे भी रख दें तो अगर वे बेहद अमीर भी हैं तो क्या ये उन्हें अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति बनाने के लिए काफी है. नहीं! क्योंकि राष्ट्रपति बनने के लिए सबसे पहली शर्त अमेरिकी संविधान और जनता के प्रति सम्मान होना जरूरी है.
आखिर में हम आपको अलबर्ट आइंसटीन की एक विचार पर छोड़े जाते हैं...अगर ये ट्रंप तक पहुंच जाए तो बहुत ही अच्छा होगा.
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Published: 21 Oct 2016,10:50 PM IST