मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019USA में जातिगत भेदभाव रोकने वाला पहला कानून पास होना अंबेडकेराइट समूहों की जीत

USA में जातिगत भेदभाव रोकने वाला पहला कानून पास होना अंबेडकेराइट समूहों की जीत

समीर खोबरागड़े, राघव कौशिक, हसन खान...USA में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून पेश करवाने के पीछे किन लोगों का हाथ है?

राजन चौधरी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>USA में जातिगत भेदभाव रोकने वाला पहला कानून पास होना अंबेडकेराइट समूहों की जीत</p></div>
i

USA में जातिगत भेदभाव रोकने वाला पहला कानून पास होना अंबेडकेराइट समूहों की जीत

(फोटो- ट्विटर/@cmkshama)

advertisement

सिएटल सिटी काउंसिल (Seattle City Council) की सदस्य क्षमा सावंत (Kshama Sawant) ने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में दक्षिण एशियाई समुदाय के अन्य नेताओं के साथ 24 जनवरी 2023 को जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के लिए देश में पहला ऐसा कानून पेश किया था, जिसका उद्देश्य जाति, रंग, लिंग, धार्मिक पंथ और राष्ट्रीयता के आधार पर जातिगत भेदभाव पर विचार करना था. स्थानीय परिषद द्वारा मतदान करने के बाद 21 फरवरी को सिएटल जातिगत भेदभाव को समाप्त करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया.

यह कदम क्षेत्र के दक्षिण एशियाई डायस्पोरा, विशेष रूप से भारतीय और हिंदू समुदायों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करता है.

यूएस में पास हुए इस कानून की सराहना भारतीय प्रायद्वीप में खूब हो रही है और माना जा रहा है कि यह कानून भारत में आगामी समय में इसी तरह के नए कानूनों को लाने के रास्ते को खोलेगा क्योंकि भारत की जाति व्यवस्था कठोर सामाजिक स्तरीकरण के दुनिया के सबसे पुराने रूपों में से एक है.

भारतीय अमेरिकी सिएटल सिटी काउंसिल की सदस्य क्षमा सावंत ने कहा कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ की लड़ाई सभी प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ की लड़ाई से गहराई से जुड़ी हुई है.

भारतीय-अमेरिकी परिषद की सदस्य क्षमा सावंत द्वारा पेश किए गए अध्यादेश का उद्देश्य शहर में भारतीय दलित श्रमिकों के लिए अधिक सुरक्षा प्रदान करना भी है.

भेदभाव के जवाब में उठा कदम

यह कदम संयुक्त राज्य में जाति-आधारित भेदभाव, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, निर्माण और सेवा उद्योग जैसे क्षेत्रों में बढ़ते भेदभाव के मामले के जवाब में आया है. इसका उद्देश्य वाशिंगटन में रहने वाले दक्षिण एशियाई मूल के 167,000 से अधिक लोगों के साथ, बड़े पैमाने पर ग्रेटर सिएटल क्षेत्र में केंद्रित, इस क्षेत्र के जातिगत भेदभाव को संबोधित करना है.

जब कानून पेश किया गया था तब समीर खोबरागड़े, तकनीकी कार्यकर्ता और दक्षिण एशियाई अमेरिकी समुदाय के सदस्य, राघव कौशिक, तकनीकी कार्यकर्ता और दक्षिण एशियाई अमेरिकी समुदाय के सदस्य, हसन खान, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अन्य लोगों ने इस कदम का पुरजोर समर्थन किया था.

कानून लागू होने के बाद क्या असर पड़ेगा?

इस कानून के लागू होने से व्यवसायों में काम पर रखने, कार्यकाल, पदोन्नति, कार्यस्थल की स्थिति और मजदूरी के संबंध में जाति के आधार पर भेदभाव करने पर अंकुश लगेगा. यह होटल, सार्वजनिक परिवहन, खुदरा प्रतिष्ठानों और रेस्तरां जैसे सार्वजनिक आवासों में भेदभाव पर भी प्रतिबंध लगाएगा. इसके अलावा यह कानून किराए के आवास के पट्टों और संपत्ति की बिक्री में आवास भेदभाव को भी प्रतिबंधित करेगा.

बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति-आधारित भेदभाव के मुद्दे को संबोधित किया गया है. हार्वर्ड, ब्राउन, कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी और ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी सभी ने पहले जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ काम किया है और इसे अपनी गैर-भेदभावपूर्ण नीतियों के तहत शामिल किया है.

इस अध्यादेश की शुरूआत भारतीय-अमेरिकी समुदाय के समर्थन से पूरा किया गया है. अनिल वागड़े, अटलांटा में एक भारतीय आईटी कार्यकर्ता और अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के सदस्य, ने इस मुद्दे को चर्चा के लिए राजनीतिक मंचों पर लाने के संदर्भ में इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है.

वागड़े ने इस कानून की आवश्यकता के उदाहरण के रूप में 2020 के सिस्को मामले का हवाला दिया था, जहां एक दलित कार्यकर्ता को उसकी जाति की पृष्ठभूमि का खुलासा होने के बाद एक ऊंची जाति के व्यक्ति द्वारा परेशान किया गया और एक प्रोजेक्ट से उसे स्थानांतरित कर दिया गया. मानव संसाधन विभाग में शिकायत करने के बावजूद उनकी सुनवाई नहीं की गई. कार्यकर्ता ने तब डिपार्टमेंट फॉर फेयर एम्प्लॉयमेंट एंड हाउसिंग से संपर्क किया, जिसे अब कैलिफोर्निया नागरिक अधिकार विभाग का नाम दिया गया है और वह अपने साथ हुए जाति-आधारित भेदभाव को अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

परिषद विधेयक की खूबियों पर जनता के साथ चर्चा करते हुए इसे पारित कर चुका है. नतीजतन, अध्यादेश की शुरूआत अमेरिका में जाति-आधारित भेदभाव को संबोधित करने और उसका मुकाबला करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में कार्य करती है.

अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा एक जरूरी मुद्दा क्यों है?

औपनिवेशिक शासन से आजादी के लगभग सत्तर साल बाद भी दक्षिण एशिया में जातिवाद का बोलबाला अभी भी कायम रहा है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि जाति की असमान विरासत शिक्षा से लेकर विवाह, आवास और रोजगार तक सामाजिक जीवन के हर पहलू को आकार देती है.

जातिगत भेदभाव अभी भी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका सहित सभी दक्षिण एशियाई समाजों को पीड़ित करता रहा है. आज तक, उत्पीड़ित जातियां कथित सामाजिक और बौद्धिक हीनता के आधार पर इस दंश को झेल रही हैं. यह विशेष रूप से दलितों के लिए सच है, जो उस समुदाय के लिए व्यापक शब्द है जो जाति की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर है और अस्पृश्यता का कलंक वर्षों से झेलता रहा है.

यह बात छिपी नहीं है कि दलितों को व्यापक हिंसा, अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. जातिगत असमानता और भेदभाव की बदसूरत वास्तविकताएं प्रवासी भारतीयों में दक्षिण एशियाई समुदायों के जीवन को भी आकार देती हैं.

वह घटनाएं जिसने अमेरिका में जातिगत भेदभाव को उजागर किया

अमेरिका में, बीते सालों के दो मुकदमों ने दक्षिण एशिया की सीमाओं से बहुत दूर जातिवाद के अस्तित्व की व्यापकता को उजागर किया था. सॉफ्टवेयर कंपनी सिस्को सिस्टम्स के खिलाफ जून 2020 में पहला मुकदमा दायर किया गया था.

कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट फॉर फेयर एम्प्लॉयमेंट एंड हाउसिंग में पीड़ित ने शिकायत की थी कि कंपनी में विशेषाधिकार प्राप्त जाति पृष्ठभूमि (ऊंची जाति) के दो पर्यवेक्षकों द्वारा उसके (दलित जाति के एक कर्मचारी) खिलाफ जातिगत भेदभाव की गतिविधियां की गई और उसके एक प्रोजेक्ट से हटा भी दिया गया था.

दूसरा मामला, मई 2021 में हिंदू ट्रस्ट बीएपीएस (बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था) के खिलाफ दायर किया गया था, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है, जिसे 2009 से 501 (सी) (3) संगठन का दर्जा प्राप्त है. यह मामला दलितों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों द्वारा उजागर किया गया था, जो दावा करते हैं कि उन्हें धार्मिक कार्यकर्ताओं के रूप में R1 वीजा के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था और न्यू जर्सी में एक हिंदू मंदिर पर जबरन निर्माण कार्य के लिए मजबूर किया गया था. दोनों मुकदमे अमेरिका में जातिगत भेदभाव और शोषण की प्रथाओं को प्रकाश में लाते हैं.

(राजन चौधरी पेशे से पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं. द क्विंट उनके विचारों का समर्थन नहीं करता है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT