मेंबर्स के लिए
lock close icon

खत्म हुआ ‘ट्रिपल तलाक’, लेने होंगे कई और बड़े फैसले

अगर लक्ष्य महिलाओं को सशक्त करना है, उन्हें हक देना है तो कई सिविल कोड लेकर आने पड़ेंगे

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:


(फोटो: iSTOCK)
i
(फोटो: iSTOCK)
null

advertisement

करीब सवा सौ साल पहले रुखमबाई ने ब्रिटिश इंडिया के कोर्ट में कहा था कि वो अपने पति के साथ रहने की बजाय जेल जाना पसंद करेंगी. रुखमबाई की 11 साल की उम्र में ऐसे आदमी से शादी हो गई थी, जो उनके पसंद का नहीं था. रुखमबाई के विरोध में शायद यह बात छिपी थी कि शादी के लिए दुल्हन की रजामंदी भी उतना ही जरूरी है.

रुखमबाई की बातें सही थीं, लेकिन इसे मानने में देश को और 68 साल लग गए. 1955 में बने हिंदू मैरि‍ज एक्ट ने माना कि शादी के लिए लड़का-लड़की दोनों की सहमति जरूरी है. सात दशक से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी अब उन सारी बातों- शादी, तलाक, विरासत- को रेगुलेट करने वाले किस तरह के कानून हों, इस पर फिर से चर्चा तेज होने वाली है. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद तो ऐसा होना तय है. बहस इस बात पर होनी है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड कैसे बने.

(फोटो: iSTOCK)

अंबेडकर जल्द चाहते थे मसले का निपटारा

इस पर सबसे पहले चर्चा संविधान सभा में हुई थी. बीआर अंबेडकर चाहते थे कि इस मसले का निपटारा तत्काल हो जाए. चूंकि इस मसले पर बहस देश के बंटवारे की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद हो रही थी, इसीलिए यह तय हुआ कि यूनि‍फॉर्म सिविल कोड के मसले को संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया जाए. मतलब यह कि सरकार भविष्य में ऐसा माहौल बनाए कि सारे धर्म के लोगों के लिए शादी, तलाक और विरासत से जुड़े कानून संविधान सम्मत हों.

ये भी पढ़ें- एक बार में तीन तलाक खत्म, ये दो तरीके रहेंगे जारी

वैसे अंबेडकर का मानना था कि सारे समुदायों में प्रचलित पर्सनल कानूनों को धर्म से अलग किया जाए. उनके मुताबिक, जरूरत पड़ती है, तो इन कानूनों को सख्ती से लागू कराया जाए. लेकिन अंबेडकर की बातें उस समय नहीं मानी गईं. लिहाजा बरसों की विवेचना और खींचतान के बाद हम अब भी वहीं खड़े हैं, जहां सालों पहले थे. और पर्सनल लॉ की विसंगतियां फिर भी बनी हुई हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सिविल कोड धर्म, जात-पात से परे हो

यूनिफॉर्म सिविल कोड कैसा हो? हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि इस मसले को किसी खास धर्म से जोड़कर देखना सही नहीं है. न ही इसका मतलब सिर्फ 'ट्रिपल तलाक' की प्रथा खत्म कर देना है.

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है ऐसा कानून बनाना, जिसके बाद महिलाएं घर में और उसके बाहर अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें, अपने आप को बराबरी का स्टेक होल्डर समझें. इस सबकी शुरुआत होगी शादी, तलाक और विरासत में किसका कितना हक हो, इन मसलों पर ऐसे कानून बनें, जो आधुनिक हों और आधी आबादी की उम्मीदों पर खरा उतरें.

क्या गोवा मॉडल फिट बैठता है?

(फोटो: PINTREST) गोवा में शादी रचाता एक विदेशी जोड़ा

ऐसा हो, इसके लिए हमारे पास कौन-कौन से विकल्प हैं?

क्या गोवा मॉडल एक विकल्प हो सकता है?

गोवा में सारे समुदायों को एक ही कोड मानना होता है. वहां शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी है, साथ ही लड़का और लड़की को विरासत में मिली संपत्ति पर बराबर का हक मिलता है. लेकिन क्या इस मॉडल को पूरे देश में लागू किया जा सकता है? शायद नहीं. मेरे खयाल से इसकी न तो जरूरत है, न ही इस तरह का कदम संभव है.

हमारे देश में 'अनेकता में एकता' तो सेलि‍ब्रेट करने की लंबी परंपरा रही है, अनेकता को खत्म करने की नहीं.

ये भी पढ़ें- शाह बानो से शायरा बानो तक: मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई की कहानी

यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं?

यही न कि खाप पंचायतों के फरमान किसी को तंग न करें, कोई महिला इसीलिए सताई न जाए कि उसके पति को तीन बार तलाक कहकर अपना पल्ला झाड़ने का हक हो, लड़के और लड़कियों में विरासत पर बराबर का हक हो, तलाकशुदा महिलाओं को एलिमनी का हक हो और भ्रूण हत्या जैसा घिनौना काम न हो.

अगर इन सबको पाने के लिए मल्टिपल सिविल कोड बनाने की जरूरत है, तो वही हो. हमें यह ध्यान रखना होगा कि सभी समुदायों की परंपराओं की अपनी अच्छाइयां हैं और ढेर सारी खामियां हैं. हमारी कोशिश खामियों को दूर करने की होनी चाहिए, अपना निर्णय थोपने वाला एप्रोच नहीं होना चाहिए. अगर हम सही एप्रोच अपनाते हैं, तो अपना लक्ष्य आसानी से पूरा होगा और ट्रिपल तलाक जैसी खामी को दूर कर पाएंगे.

ध्यान रहे कि छाती पीटकर यह कहने से किसी का भला नहीं होगा कि हमारे संप्रदाय की परंपरा ही सर्वोत्तम है. इसके उलट, हम अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 18 Oct 2016,08:15 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT