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पिछले आठ सालों में बीजेपी के फलने फूलने के साथ, देश की अल्पसंख्यक राजनीति समुदाय केंद्रित राजनीति की तरफ ठेल दी गई, जिसका एक कारण डर था, तो दूसरा पहचान का संकट. अब यह अल्पसंख्यकों के बीच भी बहस का मुद्दा है कि क्या मुसलमानों के पास अपनी खुद की सेक्युलर नेशनलिस्ट पार्टी होनी चाहिए या उन्हें दूसरी मेनस्ट्रीम सेक्युलर और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चलते रहना चाहिए. इस बहस के बीच अलग-अलग पृष्ठभूमियों वाली कई छोटी पार्टियां इस राजनैतिक शून्य को भरने की कोशिश कर रही हैं और उन्हें विकट चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है.
हाल के बिहार चुनावों में प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए), जिसमें 8 पार्टनर हैं, और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा किंगमेकर साबित हुए हैं जिन्हें 10 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं.
महाराष्ट्र और असम के चुनावों में भी यही हुआ था, जहां अल्पसंख्यक समुदाय एक सुरक्षित और अनुकूल विकल्प की तलाश कर रहा था. अब जब पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक राजनीति का उदय हो रहा है तो हम देख सकते हैं कि वहां के आगामी चुनावों पर किन तीन फैक्टर्स का असर हो सकता है.
पहला, ओवैसी की एआईएमआईएम कुछ विधानसभा क्षेत्रों, जैसे मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर जिलों में अल्पसंख्यकों के वोटों को काट सकती है. इसका असर होगा और कोलकाता और हावड़ा के उर्दू भाषी क्षेत्रों में यह अहम फैक्टर होगा. लेकिन यह बिहार जितनी आसान जीत नहीं होगा, क्योंकि बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में उनके पास मजबूत संगठन नहीं है.
दूसरा बड़ा फैक्टर पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की शख्सियत है जोकि बशीरहाट, हुगली और हावड़ा में खासे लोकप्रिय हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी पार्टी बनाने के बाद घोषणा की थी कि वह दक्षिण बंगाल के मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र की 44 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. हाल ही में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी उनके घर भी पहुंचे थे. उन्हें उम्मीद थी कि पीरजादा कांग्रेस से हाथ मिला लेंगे ताकि वे मिलकर टीएमसी को टक्कर दे सकें.
तीसरा फैक्टर टीएमसी, कांग्रेस और सीपीआईएम के बीच वोटों की शेयरिंग या वोट कटना है.
आम तौर पर टीएमसी और लेफ्ट इन क्षेत्रों में अधिक बड़ी भूमिका निभाएंगे. अब इन सभी सीटों के अलावा, 90 से 100 सीटें, जहां अल्पसंख्यकों के वोट विभाजित हो सकते हैं, 30 प्रतिशत से अधिक हैं.
2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 10.16 प्रतिशत था. अगर हम 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर के बीच तुलना करें तो यह पाएंगे कि उसके वोट शेयर में जबरदस्त इजाफा हुआ है. 2014 में उसका वोट शेयर 16.8 प्रतिशत था, और 2019 में 40.25 प्रतिशत. अगर हम इस जीत का विश्लेषण करें तो हमें तीन मुख्य क्षेत्रों में हिंदुत्व राजनीति का उदय देखने को मिलता है. ये तीन क्षेत्र हैं, जंगल महल, उत्तर बंगाल और नबद्वीप के आस-पास के इलाके.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दौरों ने भी बांकुड़ा और मिदनापुर क्षेत्रों में लोगों की राय को प्रभावित किया है. उनकी रणनीति यह है कि इन सीमा क्षेत्रों में 100 से 120 सीटें हासिल की जाएं. बाकी, अगर मध्य और दक्षिण बंगाल में वोट काटने वाली रणनीति काम कर गई तो 40 से 50 सीटें और हासिल की जा सकती हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में मुसलमान वोटरों ने ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार को पूरा समर्थन दिया लेकिन अब वे निराश हैं और राज्य में विकल्प तलाश रहे हैं.
मुसलमानों का वोट कांग्रेस या सीपीआईएम की तरफ लौटेगा, ये असंभव लगता है. चूंकि ये दोनों विचारधाराएं जन साधारण के लिए उपयुक्त नहीं थीं. ममता बनर्जी ने ये घोषणा की है कि उनकी पार्टी अल्पसंख्यकों को किए गए 90 प्रतिशत वादों को पूरा करेगी.
कुछ सालों के दौरान सरकार न तो मदरसा सर्विस कमीशन के लिए रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया को पूरा कर पाई और न ही युवा मुसलमानों को नौकरियां दे पाई.
इसके अलावा सरकार में अल्पसंख्यक समुदाय के 10 प्रतिशत आरक्षण से जुड़े कई मसले भी हैं. पर्याप्त रोजगार न दे पाने के कारण मुस्लिम समुदाय सरकार से नाराज भी है क्योंकि उन्हें लगता है कि ममता सरकार ने उन्हें बंगाल में दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए सहारे के तौर पर इस्तेमाल किया है.
फिर, टीएमसी के पास कोई लोकप्रिय मुस्लिम चेहरा नहीं है जोकि समुदाय का प्रतिनिधित्व करे और अल्पसंख्यकों की तल्खी को कम करे. मुस्लिमों के बीच सिद्दीकुल्ला चौधरी और तोहा सिद्दीकी की लोकप्रियता भी कम हो रही है. चूंकि वे अल्पसंख्यकों से जुड़े मसलों में खास दखल नहीं रखते.
(महबूब सहाना यूनिवर्सिटी ऑफ मेनचेस्टर, युनाइटेड किंगडम में स्कूल ऑफ एनवायरमेंट, एजुकेशन एंड डेवलपमेंट में रिसर्च एसोसिएट हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विट न इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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Published: 03 Dec 2020,11:02 PM IST