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कलकत्ता हाईकोर्ट ने 5 लाख मुस्लिम OBC सर्टिफिकेट रद्द किए, चुनाव में ममता बनर्जी को फायदा?

Lok Sabha Election 2024: ममता बनर्जी ने इसे हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत चतुराई से "बीजेपी के आदेश" के रूप में ब्रांड करके चुनावी रूप से बढ़त हासिल कर ली है.

एसएनएम अबदी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>ममता बनर्जी </p></div>
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ममता बनर्जी

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट

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Lok Sabha Election 2024: कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने अपने एक फैसले से 5 लाख लोगों को मिले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के दर्जे को रद्द कर दिया. 2012 से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार और उसकी पहले की वाम मोर्चा की सरकार ने ये OBC सर्टिफिकेट बांटे थे और यह ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोगों को जारी किए गए थे. यह अजीब है कि हाईकोर्ट के इस फैसले से तुरंत होने वाले असर पर कोई बात नहीं कर रहा है.

एक तरफ ममता बनर्जी ने खुली घोषणा की है कि वह जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा के इस आदेश को "स्वीकार" नहीं करेंगी और इसे रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगी. वहीं पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने फैसले का स्वागत करने में कोई समय नहीं गंवाया और ममता बनर्जी की “SC-ST और ओबीसी के आरक्षण छीनने और मुसलमानों के वोट के लिए इसे देने” की नीति को खत्म करने के लिए जजों की तारीफ की.”

बीजेपी और टीएमसी के नेता एक-दूसरे पर हमलावर हैं, उन्हें कोर्ट में पेश करके अवमानना का केस चलाने की मांग की जा रही है. ऐसे में कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से पिछले सप्ताह पारित इस आदेश से 1 जून को होने वाले मतदान के आखिरी चरण में टीएमसी को अप्रत्याशित लाभ होगा. सूबे में आखिरी चरण की 9 सीटों पर होने जा रहे इस असर पर कोई बात नहीं कर रहा है.

ममता बनर्जी कैसे चुनावी फायदा उठा सकती हैं?

बिना किसी संदेह के, ममता बनर्जी ने इसे हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत चतुराई से "बीजेपी के आदेश" के रूप में ब्रांड करके चुनावी रूप से बढ़त हासिल कर ली है. शनिवार को, ममता के स्टैंड की बदौलत, मुस्लिम समुदाय टीएमसी उम्मीदवारों के लिए जोरदार मतदान करेंगे. अगर चुनाव के बीच में ऐसा आदेश पारित नहीं किया गया होता तो टीएमसी उम्मीदवारों के लिए मुस्लिम समुदाय जितना मतदान नहीं करता वे उससे कहीं अधिक संख्या में मतदान करेंगे.

वैसे भी, उत्तर और दक्षिण कोलकाता, डायमंड हार्बर, जादवपुर, दम दम, बारासात, बशीरहाट, जॉयनगर और मथुरापुर निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत बहुत अधिक है. अब, वे मुसलमान भी जो कांग्रेस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा के उम्मीदवारों की ओर झुक रहे थे, वे ममता के उम्मीदवारों के लिए सामूहिक रूप से मतदान करेंगे क्योंकि उन्होंने इस समुदाय के लिए मोर्चा संभाल लिया है.

इससे बंगाल में टीएमसी की जीत की ओवरऑल संभावनाएं और बढ़ गई हैं. यह एक ऐसा राज्य है जहां मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत होने के बावजूद बीजेपी जीतने के लिए बेताब है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि हाईकोर्ट के विवादास्पद आदेश के बाद जो तृणमूल उम्मीदवार बड़े अंतर से जीतेंगे, उनमें अभिषेक बनर्जी भी हैं. अभिषेक ममता के उत्तराधिकारी हैं और पार्टी में दूसरे नंबर के नेता हैं. वह कोलकाता की डायमंड हार्बर संसदीय सीट से उम्मीदवार हैं, जहां 38 प्रतिशत मुस्लिम, विजेता का फैसला करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. अभिषेक बनर्जी उस फैसले की तीखी आलोचना कर रहे हैं, जिसकी मोदी और शाह अपने चुनावी भाषणों में ममता की मुस्लिम "तुष्टिकरण" नीति को झटका देने के रूप में पेश कर रहे हैं.

इस आदेश से 77 जाति समूहों के ओबीसी दर्जे को खत्म किया गया है जिनमें से 75 मुस्लिम समूदाय हैं. इस आदेश की कमजोरियों को कानून के जानकार फैजान मुस्तफा ने शानदार ढंग से उजागर किया है. मुस्तफा बताते हैं कि ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने के लिए दो जजों ने जो चार आधार दिए हैं, उनमें से एक यह है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने कार्यकारी आदेशों के माध्यम से मुस्लिम जातियों को ओबीसी का दर्जा देने के लिए चुना, न कि विधायी प्रक्रिया से.

लेकिन यह तर्क सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी मामले में दिए फैसले के विपरीत है, जिसमें कहा गया था कि आरक्षण वास्तव में कार्यकारी आदेश से दिया जा सकता है. इसके अलावा, संविधान ने भारत के राष्ट्रपति को राज्यपाल के परामर्श से अनुच्छेद 341 और 342 के तहत किसी भी जाति या जनजाति को एससी या एसटी के भीतर शामिल करने का अधिकार दिया है, जिसका अर्थ है कि विधायी मार्ग के अलावा आरक्षण के अन्य रास्ते भी हैं.
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फैजान मुस्तफा ने कलकत्ता हाईकोर्ट के जजों के उस विवादास्पद तर्क का भी खंडन किया कि मुस्लिम जातियों को धर्म के आधार पर पिछड़े वर्गों में शामिल किया गया था. फैजान मुस्तफा का तर्क है कि उन्हें उनके धर्म के कारण नहीं बल्कि उनके पिछड़ेपन के कारण आरक्षण दिया गया था. इस बात की वकालत करते हुए कि मुसलमानों को उनके गैर-मुस्लिम समकक्षों के समान विशेषाधिकार प्राप्त हों, वह सही ढंग से पूछते हैं कि "तुष्टीकरण" टैग केवल स्पष्ट रूप से पिछड़ी मुस्लिम जातियों या पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षण के मामलों में ही क्यों लगाया जाता है, जबकि पाटीदार, गुज्जर, जाट, मराठा और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण की घोषणा करते वक्त ऐसा नहीं किया जाता.

कलकत्ता हाई कोर्ट के सुर्खियों में आने का यही एकमात्र कारण नहीं है

यदि ममता ने सार्वजनिक रूप से पिछले सप्ताह के आदेश को "कलंकित" कहा है, तो जेहन में यही सवाल आता है कि क्या उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में हाल ही में जो हो रहा है, उसके कारण यह टिप्पणी की है.

जस्टिस राजशेखर मंथा, जिन्होंने जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती के साथ यह फैसला सुनाया, पिछले साल से बार एसोसिएशन के कुछ सदस्यों की नजर में हैं, क्योंकि उन्होंने पश्चिम बंगाल पुलिस को कोई भी FIR दर्ज न करने के लिए लिखित आदेश जारी करके बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी को पूर्ण संरक्षण दिया था.

अभी हाल ही में, जस्टिस अभिजीत गांगुली ने समय से पहले रिटायरमेंट ले ली और जज की कुर्सी से अभिषेक और ममता पर लगातार निशाना साधने के बाद तमलुक सीट से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं.

और मामले को बदतर बनाने के लिए, पिछले सप्ताह के आदेश से कुछ दिन पहले, रिटायर्ड जज चित्त रंजन दास ने अपने फेयरवेल में खुलासा किया कि, "मैं आरएसएस का सदस्य था और हूं."

इस तिकड़ी ने खुद को महिमा से नहीं ढका है. यह देखते हुए, ज्यादातर मुसलमानों को जारी किए गए पांच लाख ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द करने के आदेश से विवाद पैदा होना तय था.

(एसएनएम आब्दी एक प्रतिष्ठित पत्रकार और आउटलुक के पूर्व उप संपादक हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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