advertisement
पहले तो मोदी सरकार लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पलायन को ठीक से मैनेज नहीं कर पाई. अब वो पूरे मामले को गोल-मोल करने की कोशिश भी कर रही है. गृह मंत्री अमित शाह अपने कई टीवी इंटरव्यू में सरकार की नाकामियों पर नई कहानियां ही सुनाते नजर आए. उन्होंने दावा किया कि शुरुआत में प्रवासी मजदूरों के पलायन पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद सरकार ने पूरी तैयारी और प्लानिंग के साथ उन्हें एक मई से उनके घर जाने की मंजूरी दी.
अमित शाह का कहना है कि उनकी सरकार प्रवासी मजदूरों को लेकर काफी संवेदनशील रही है. लॉकडाउन के पहले महीने में जब मजदूर अपने घर जाने लिए निकल रहे थे. उस समय सरकार की सबसे बड़ी चिंता उन्हें संक्रमण से बचाने की थी. इस दौरान सरकार उनके गृह राज्यों में तैयारी कर रही थी. वहां अस्पतालों को ठीक कर रही थी, मजदूरों के लिए क्वॉरंटीन सेंटर और डॉक्टर्स की टीम बना रही थी. इसके बाद एक मई के बाद से मजदूरों को घर जाने की इजाजत दी गई.
गृह मंत्री शाह के विश्वास से भरे इन दावों के ठीक उलट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अलग ही कहानी बयां की. उन्होंने 31 मई को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन ने सरकार को भी आश्चर्य में डाल दिया था.
ठीक इसी तरह की बात सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई स्टेटस रिपोर्ट में भी की गई. इस रिपोर्ट पर केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला के हस्ताक्षर हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को उसके नियंत्रण वाले अलग-अलग संसाधनों की मदद से अचानक से बड़ी संख्या में सड़कों पर आए लोगों को खाना उपलब्ध कराना था. इसके लिए सरकार ने जेलों की किचन, मिड-डे मील वेंडर्स, आईआरसीटीसी आदि को तैयार किया था. इसके अलावा एनजीओ और कई धार्मिक संस्थाओं की भी मदद ली गई, लेकिन सरकार को जरा भी अंदाजा नहीं था कि इतने बड़े पैमाने पर पलायन देखने को मिलेगा.
सरकार की इन तैयारियों से भी कई सवाल उठते हैं. जैसे, उसे बिल्कुल नहीं मालूम था कि 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रवासी मजदूर, फैक्ट्री मालिक और कंपनियों का इसे लेकर कैसा रुख होगा. इतना ही नहीं, महामारी से लड़ने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए मंत्रियों के समूह में श्रम मंत्री को शामिल नहीं किया गया. मंत्रियों के इस समूह में हेल्थ, एविएशन, शिपिंग, गृह और विदेश मंत्री शामिल थे.
यहां तक कि महामारी से डील करने के लिए 29 मार्च को केंद्र सरकार की ओर से 11 समूहों का गठन किया गया. इसमें नौ समूहों को केंद्र सरकार के सचिव और दो समूहों को नीति आयोग के अफसर देख रहे थे. इनमें से किसी का भी सीधा फोकस प्रवासी मजदूरों के पलायन से डील करने का नहीं था. इसमें भी सिर्फ एक ग्रुप को आर्थिक और कल्याणकारी उपायों के लिए काम पर लगाया गया था. श्रम सचिव को इसका सदस्य बनाया गया था. इन सभी कमेटियों को अपनी सिफारिशें सौंपने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया गया था.
दरअसल, गृह मंत्रालय की स्टेटस रिपोर्ट प्रवासी मजदूरों के उल्टे पलायन (काम की तलाश में दूसरे राज्य गए लोगों का वापस गृह राज्य लौटना) को लेकर हैरानी जताती है. इसमें कहा गया कि मजदूरों का सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं के तहत ठीक से ध्यान रखा गया. इसमें ये भी दावा किया गया कि जहां भी मजदूर काम कर रहे थे, वहां उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को ख्याल रखा जा रहा था. साथ ही गांवों में मजदूरों के परिवारों का भी ख्याल रखा जा रहा था.
पलायन रोकने में नाकाम रहे गृह मंत्रालय ने अपनी गलती छिपाने के लिए लॉकडाउन से जुड़ी फेक न्यूज के वायरल होने का आरोप लगाया. अगर इस फेक न्यूज का मतलब वो खबरें थी जिनमें 21 दिनों से ज्यादा लॉकडाउन के बढ़ने की अटकलें थीं, तो आगे जाकर ये सही ही साबित हुईं.
शाह ने दावा किया है कि मजदूरों को इसलिए रोका जा गया ताकि संक्रमण बढ़ने की स्थिति के लिए उनके गृह राज्यों में स्वास्थ्य क्षमताओं को बढ़ाया जा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में गृह सचिव की रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार ने मजदूरों के पलायन पर रोक लगा रखी थी, ताकि ग्रामीण आबादी को महामारी से बचाया जा सके, जो कि तब तक कोरोना से मुक्त थे.
गृह सचिव ने कहा, ''अगर प्रवासी मजदूरों को आगे बढ़ने दिया जाता है, गांव पहुंचने दिया जाता है, और वहां की आबादी से घुल मिल जाने दिया जाता है तो इस बात का गंभीर खतरा है कि ग्रामीण भारत में कोरोना का संक्रण फैल जाएगा. इसलिए ये पलायन न सिर्फ उन मजदूरों के लिए खतरनाक है जो पैदल चल पड़े हैं बल्कि वो जिन गांवों की ओर निकले हैं, उनके लिए भी खतरा है.''
स्टेटस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सरकार की नीतियां बार-बार बदलती रहीं. पहले कुछ राज्यों को अपने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की इजाजत दी गई, लेकिन फिर इस पर प्रतिबंध लगा दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, सीमा पर जुट रहे मजदूरों को हटाने के लिए कुछ राज्यों ने बसों का इंतजाम किया, लेकिन अंत में सरकार ने प्रवासी मजदूरों के आगे बढ़ने पर रोक लगा दी.
इस संकट पर ढोंग करने का खेल भी खूब चल रहा है. हमारे पास पहले से ही सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण सामने है. कोर्ट अब खुद को प्रवासी मजदूरों का हितैषी बता रहा है. शहरों से मजदूरों के पलायन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पांच जनहित याचिकाओं और अपीलों को खारिज करने के बाद कोर्ट देश को यकीन दिलाना चाहता है कि उसने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आधा दर्जन से ज्यादा उच्च न्यायलयों के आदेश के बाद आया है, जिसमें उन्होंने राज्य सरकारों को मजदूरों का ठीक से खयाल न रखने के लिए फटकार लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट प्रवासी मजदूरों के संकट के निपटान के लिए सिर्फ F ग्रेड का हकदार है. अमित शाह नीतियां विफल होने बाद अपनी दलीलें दे रहे हैं, लेकिन क्या मोदी सरकार को मजदूरों के मुद्दे पर इससे ज्यादा नंबर दिए जा सकते हैं?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 05 Jun 2020,11:12 AM IST