advertisement
कुछ महीने पहले तक बीजेपी एक पार्टी के रूप में उतनी ही एकजुट दिख रही थी, जितनी कोई पार्टी दिखती है. इक्का-दुक्का विरोध की आवाजें उठती रहती थीं, लेकिन वो बस दीवार में पड़ी बारीक दरारों जैसी थीं. इसकी शुरुआत यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण शौरी, कीर्ति आजाद जैसे बीजेपी के सीनियर नेताओं की तरफ से हुई थी. ज्यादातर लोगों ने इसे पुराने नेताओं का विद्रोह कहकर खारिज कर दिया, जिसका कोई राजनीतिक मतलब नहीं था.
हालांकि जुलाई के बाद हालात बदल गए हैं. उसके बाद एक भी पखवाड़ा ऐसा नहीं गुजरा, जिसमें कोई नई और नुकसान पहुंचाने वाली घटना सामने न आई हो. जूनियर मिनिस्टर एमजे अकबर पर लगे सेक्सुअल हैरासमेंट के आरोपों को छोड़ भी दें, तो हाल में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सीनियर कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी के एक असाधारण बयान दिया है. वह एक वीडियो में कहते दिख रहे हैं कि बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कई बड़े वादे किए थे.
द हिंदू अखबार ने उस वीडियो के हवाले से गडकरी का बयान पब्लिश किया है. इसमें वह कह रहे हैं, ‘'हम जानते थे कि हम कभी सत्ता में नहीं आ सकते. इसलिए हमारे लोगों ने बड़े वादे करने की सलाह दी. अगर हम सत्ता में नहीं आते तो हम उन वादों को पूरा करने के लिए जवाबदेह नहीं होते. अब हमें जब लोग उन वादों की याद दिलाते हैं...तो हम उनकी बात को हंसी में टाल देते हैं.’'
गडकरी वीडियो में जिस प्रोग्राम में यह बात कहते हुए दिख रहे हैं, उसमें एक्टर नाना पाटेकर भी गेस्ट के तौर पर शामिल हुए थे. गडकरी ने बाद में इस पर सफाई दी.
गडकरी ने कहा कि उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव के संदर्भ में यह बात कही थी, लेकिन द इंडियन एक्सप्रेस ने उनके हवाले से लिखा है, '‘एक अन्य सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि पार्टी को जनता के प्रति पारदर्शिता बरतनी चाहिए.'’ उनका इशारा किसकी तरफ है?
पिछले साल आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा था कि संघ ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ नहीं चाहता. द हिंदू ने उनका बयान इस तरह प्रकाशित किया था, ‘'ये (कांग्रेस-मुक्त भारत जैसे शब्द) राजनीतिक नारे हैं. यह आरएसएस की भाषा नहीं है.'’
संघ ने यह भी कहा था कि वह शख्सियत आधारित राजनीति पर विश्वास नहीं करता. द हिंदू के मुताबिक, आरएसएस के सरसंघचालक ने कहा था, '‘एक आदमी राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकता. यह काम समावेशी ढंग से होना चाहिए. इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहयोग जरूरी है.'’ भागवत ने पुणे के बालगंधर्व रंगमंदिर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही थी.
यहां तक कि खुद को मोदी का कट्टर समर्थक बताने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी भी प्रधानमंत्री पर परोक्ष रूप से हमले करते रहते हैं. वह वित्तमंत्री अरुण जेटली और वित्त सचिव हसमुख अढ़िया को निशाना बनाकर यह काम कर रहे हैं.
जमीनी स्तर पर भी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं में भी बीजेपी से नाराजगी है. शायद पार्टी से उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. यह लिस्ट और लंबी हो सकती है. इसमें वीएचपी और बजरंग दल जैसों को शामिल किया जा सकता है, जिन्हें एंडरसन आरएसएस का सहयोगी बताते हैं. शिवसेना जैसे पुराने दोस्तों का भी रोल अहम है.
मोहन भागवत, नितिन गडकरी, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, राफेल, अनिल अंबानी, एमजे अकबर, बजरंग दल, वीएचपी, शिवसेना...ये सब जुड़कर क्या असर डालेंगे? यह कहना मुश्किल है, क्योंकि मोदी हर बार आखिर में कोई कमाल कर जाते हैं. इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उन्हें कितना बड़ा कमाल दिखाना होगा. अगर मोदी वाकई अगले चुनाव में बड़ा करिश्मा कर जाते हैं, तो क्या वह काफी होगा?
अब अगर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ कोई लहर बनती भी है, तो उसका बहुत असर नहीं होगा. ऐसे में विपक्ष के पास एक ही विकल्प बचता है. वह यह है कि बीजेपी जिन 450 सीटों पर 2019 में चुनाव लड़ेगी, विपक्ष उन पर मिलकर एक ऐसा उम्मीदवार खड़ा करे, जिसके जीतने की संभावना सबसे अधिक हो.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)