मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आख‍िर क्यों बढ़ रहा है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव?

आख‍िर क्यों बढ़ रहा है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव?

मयंक मिश्रा लिखते हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों और मुसलमानों में बढ़ रही दूरी हाल की झड़पों की हकीकत बताती है.

Mayank Mishra
नजरिया
Updated:
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों और मुसलमानों में बढ़ रही दूरी हाल की झड़पों की हकीकत बताती है. (फोटो: द क्विंट)
i
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों और मुसलमानों में बढ़ रही दूरी हाल की झड़पों की हकीकत बताती है. (फोटो: द क्विंट)
null

advertisement

जींस और रंगीन जैकेट में शहर के ट्रैफिक में रास्ते बनाती लड़कियों को देखकर एकबारगी लगा कि जैसे मुजफ्फरनगर अपने अंधेरे अतीत को भूलकर आगे बढ़ने लगा है. शहर की सड़कों पर हाल ही में नजर आए ई-रिक्शे ट्रैफिक को और खराब तो कर रहे थे, पर एक आश्वासन भी देते नजर आ रहे थे कि सब ठीक-ठाक है.

पर जरूरी नहीं जो नजर आए, वो सच ही हो. और अगर बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हो, तो यहां जितना नजर आता है, उससे कहीं ज्यादा छिपा हुआ होता है. कई जानें ले लेने वाले और सैंकड़ों को बेघर कर देने वाले मुजफ्फरनगर दंगों को दो साल गुजर चुके हैं, पर शहर को अपने पुराने सुकून की ओर लौटने में अभी वक्त लगेगा.

दंगों से हुए नुकसान के बावजूद नफरत की दास्तान इतनी लंबी है कि उसने इस शहर का सुकून लौटने नहीं दिया है.

9 अप्रैल 2014 को मुजफ्फरनगर दंगे के बाद कैंप में रह रहे किसी परिवार का बच्चा हैंडपंप से पानी भरते हुए. (फोटो: रॉयटर्स)
<p>11 दिसंबर को यहां कुछ भी हो सकता था. एक हिंदू महासभा नेता के बयान के विरोध में हजारों मुसलमान शहर के इंटक कॉलेज के मैदान में इकट्ठा हो गए थे. इतनी बड़ी भीड़ को देखकर हर ओर बस डर का माहौल था. चारों तरफ लगातार शटर गिर रहे थे. दोपहर में ही शहर वीरान हो गया था.</p>
<b> बहुजन समाज पार्टी के एक स्थानीय नेता</b>

हिंदू महासभा के एक स्थानीय नेता कमलेश तिवारी ने 3 दिसंबर को मुसलमान समाज के खिलाफ अपमानजनक बातें कहीं थी, जिसके विरोध में 11 दिसंबर को हजारों मुसलमान इकट्ठे होकर कमलेश के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे.

शामली में दोबारा तनाव

यह अकेला ऐसा मौका नहीं था, जिसने पहले से ही कमजोर हिंदू-मुस्लिम रिश्ते की परीक्षा ली थी. 1 दिसंबर को अपने मुसलमान किराएदार के साथ लापता हुई एक 23 वर्षीय हिंदू महिला का पुलिस द्वारा पता न लगाए जा सकने के विरोध में पिछले शुक्रवार को शामली में एक महापंचायत बुलाई गई. यह घटना आसानी से एक और हिंदू मुस्लिम दंगे में बदल सकती थी.

महिला की गुमशुदगी को लेकर कुछ हिंदूू युवकों ने विरोध प्रदर्शन किया था. महापंचायत के दौरान भी एक स्थानीय साधु ने मुस्लिम समाज के खिलाफ नफरत फैलाने वाला भड़काऊ भाषण भी दिया.

“कानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या के लिए महापंचायत बुलाने की क्या जरूरत थी? गुमशुदगी की वजह कोई प्रेम संबंध या अपहरण भी हो सकता है. इसका दोष किसी समुदाय पर मढ़ने कहां तक सही है?” एक स्थानीय मुसलमान नेता सवाल करते हैं. इन्हें 2013 के दंगों के बाद कई परिवारों के पुनर्वास का श्रेय जाता है.

तनाव के पीछे के सामाजिक-आर्थिक कारण

  • दो साल पहले हिंदू मुस्लिम दंगों में कई मौतें और हजारों घरों को उजड़ते देखने वाला शहर मुजफ्फरनगर आज भी सुलग रहा है.
  • हाल ही में एक मुसलमान किराएदार के साथ एक 23 वर्षीय हिंदू महिला की गुमशुदगी ने पहले से ही कमजोर हिंदू-मुसलिम रिश्ते की फिर परीक्षा ली है.
  • पुराने समय से एक दूसरे के साथी रहे जाटों और मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक टकराव इस तनाव का कारण बन रहा है.
  • जाट वर्ग अभी अपने आर्थिक स्तर में गिरावट और इस क्षेत्र के दबंगों और दबे हुओं के समीकरण में फेरबदल को स्वीकार नहीं कर पा रहा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हवा में तैर रहे हैं बांटने वाले बयान

लेकिन ऐसी तार्किक बातें कहने वाले तेजी से दरकिनार होते जा रहे हैं. एक सामान्य प्रेम संबंध की तरह देखी जा सकने वाली घटना को सांप्रदायिक विभाजनों की तरह देखा जा रहा है. जिन घटनाओं को प्रशासन का ढीला रवैया समझा जाना चाहिए, उसे किसी खास समुदाय की तरफदारी के रूप में देखा जा रहा है.

आखिर कैसे गहरी होती जा रही है धार्मिक अलगाव की खाई? इसका जवाब इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में छुपा हुआ है. इस क्षेत्र में जाट जाति ने अपनी संख्या के परे जाकर आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में प्रभुत्व स्थापित किया है. इसमें उन्हें बड़ी जमीनों और हरित क्रांति का लाभ मिला.

चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने के दौर में इस क्षेत्र में मुस्लिम जाटों के प्रभुत्‍व के अधीन तो थे, पर इस समुदाय पर सहयोगियों की तरह विश्वास किया जाता है. लेकिन अब दोनों जातियों के बीच कुछ भी ठीक नहीं.

राजनीतिक और आर्थिक रूप से मुस्लिमों का बढ़ता प्रभाव दोनों जातियों के बीच के गठजोड़ को तोड़ रहा है. संख्या के लिहाज से मुस्लिम समुदाय हमेशा आगे रहा है. ऐसे में पिछले कुछ सालों में कुशल श्रमिकों की बढ़ी मांग से इस समुदाय को फायदा मिला है.

इस समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का खाका खींचने वाली सच्चर कमेटी इस समुदाय की प्रगति के बारे में काफी कुछ बताती है.

<p>कृषि क्षेत्र में लगे मुस्लिम मजदूरों की संख्या अन्य समुदायों के मजदूरों की अपेक्षा काफी कम है. लेकिन उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र से यह समुदाय अन्य सामाजिक-धार्मिक वर्गों से कहीं अधिक जुड़ा हुआ है. इसके साथ ही निर्माण क्षेत्र में भी यह समुदाय खासा सक्रिय है.</p>
सच्चर कमेटी रिपोर्ट

राजनीतिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़े मुसलमान


यह रिपोर्ट कहती है कि निर्माण क्षेत्र के अतिरिक्त मुस्लिम श्रमिक रिटेल, होलसेल, लैंड ट्रांसपोर्ट, ऑटोमोबाइल रिपेयर, तंबाकू उत्पादन, टैक्सटाइल, और कपड़े व धातु की वस्तुओं के उत्पादन से जुड़े हुए हैं. 

अब हम जानते हैं कि यह वे क्षेत्र हैं, जो उदारवादी युग के बाद समृद्ध हुए हैं. ऐसे में यह मानना गलत नहीं होगा कि मुस्लिमों ने इस उदारवाद का फायदा उठाया है.

मुजफ्फरनगर के पार्ला गांव में वोट देने के लिए इंतजार करते मुस्लिम समुदाय के मतदाता (फोटोः द क्विंट)

एक मुस्लिम नेता कहते हैं, “इस बात से इनकार नहीं है कि हालिया आर्थिक बदलावों से मुसलमानों को फायदा हुआ है. देखने वाली चीज यह भी है कि उनका राजनीतिक रसूख भी बढ़ा है. जाट बहुल क्षेत्रों में अब मुस्लिम विधायक और प्रधान बन रहे हैं.”

साल 2012 के चुनाव में इस क्षेत्र की 77 विधानसभा सीटों में से 26 सीटें मुसलमानों के हिस्से में आई थीं. यह राजनीतिक बढ़त उनकी संख्या की ताकत को साफ-साफ दिखाती है. पंचायत और नगर निगमों के स्थानीय चुनावों में भी मुसलमान अपनी अधिक आबादी की वजह से जीतते आ रहे हैं.

दूसरी ओर, जाट समुदाय को पिछले कुछ समय से नुकसान उठाना पड़ा है. गन्ना क्षेत्र की समस्याओं से ये समुदाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

जिस चीज से जाट समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है, वह है गन्ना उत्पादन में कमी. जाट पारंपरिक रूप से जमीन के मालिक रहे हैं. ऐसे में प्रति हेक्टेयर गन्ने की फसल कम होने से इन्हें भारी नुकसान हो रहा है.

दस साल पहले एक हेक्टेयर में 55 टन गन्ना पैदा होता था. लेकिन दस साल बाद भी इस मात्रा में बढ़ोतरी नहीं हुई है. उत्तर प्रदेश में प्रति हेक्टेयर गन्ना उत्पादन का औसत राष्ट्रीय औसत से 10-12 टन कम है.

हाल के आर्थिक बदलावों ने मुस्लिमों को फायदा पहुंचाया है. लेकिन जाटों के आर्थिक प्रभाव में धीरे-धीरे कमी होती आई है. इस बात की भी संभावना है कि जाट समुदाय ने अब तक जाट-मुस्लिम गठजोड़ को स्वामी-सेवक गठजोड़ की नजर से देखना बंद नहीं किया है.

अब मुसलमान उनकी आर्थिक शक्ति और संभव हुआ तो राजनीतिक शक्ति का भी सामना कर सकते हैं. जाट समुदाय के लिए यह बात हजम करना आसान नहीं है. इस क्षेत्र में बढ़ता तनाव इसी बदलाव का परिणाम है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 06 Jan 2016,10:08 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT