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294 किलोमीटर लंबा श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे अक्सर दो वजहों से खबरों में रहता है. पहला, यह कि इस पर घातक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें सैकड़ों लोग मारे जाते हैं और दूसरा, यहां सुरक्षा बलों पर खतरनाक आतंकी हमले होते हैं. यूं इस हाईवे को कश्मीर की लाइफ लाइन माना जाता है, लेकिन इसकी हालत बहुत बुरी है. यहां भूस्खलन होते हैं, पत्थर गिरते हैं और जमीन धसकने के कई मामले होते हैं जिनके कारण जानलेवा दुर्घटनाएं होती हैं.
2013 से आतंकवादियों ने इस हाईवे को सुरक्षा बलों के काफिलों पर मारक हमलों के लिए चुना है जिसके कारण यात्रियों का सफर और भी जोखिम भरा हो गया है.
पिछले सात सालों में इस हाईवे पर यात्रियों ने दिल दहलाने वाले दृश्य देखे हैं. लहूलुहान सड़क, गोलियां और भयंकर विस्फोट, दर्जनों सुरक्षा कर्मियों की मौत.
हाईवे का 100 किलोमीटर लंबा हिस्सा जवाहर टनल और श्रीनगर बाइपास के बीच से होकर गुजरता है. यह हिस्सा बहुत संवेदनशील है. दक्षिणी कश्मीर के कई जिले इसी सड़क के इर्द-गिर्द पड़ते हैं. पिछले कई सालों से हाईवे का यह हिस्सा आतंकवादियों के लिए जंग का मैदान यानी ‘हंटिंग ग्राउंड’ रहा है. यहां कम से कम 82 सुरक्षाकर्मियों की जानें गई हैं.
जब यह पूछा गया कि इस हाईवे पर इतनी बड़ी संख्या में आतंकी हमले क्यों होते हैं, तो जम्मू और कश्मीर के पूर्व महानिदेशक एसपी वैद्य ने द क्विंट को बताया कि हाईवे पर कई ओपनिंग और एक्जिट प्वाइंट्स हैं. आतंकी सुरक्षाबलों पर हमले के लिए इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं. उनका कहना है, ‘हाईवे के ये ओपनिंग और एग्जिट प्वाइंट्स आतंकवादियों को यह मौका देते हैं कि वे सुरक्षा बलों पर हमला करें और फिर फरार हो जाएं.’
उन्होंने कहा था कि ये हमले कोई नई बात नहीं और उनके दौर में भी इस हाईवे पर कई बार हमले हुए हैं.
फरवरी 2019 में जैश-ए-मोहम्मद के सुसाइड बॉम्बर ने विस्फोटकों से भरी कार को सीआरपीएफ की 55 सीटर बस से टक्कर मार दी थी, जिसमें सीआरपीएफ के कम से कम 40 जवान शहीद हुए थे. ये जवान लेथपोरा, अवंतीपोरा जा रहे थे.
यह हमला श्रीनगर शहर के बाहर पंपोर के पास हुआ था और यह सुरक्षाबलों पर अब तक सबसे प्राणघातक आतंकी हमला है. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात हो गए थे.
2013 से हाईवे पर सैन्य हमलों की संख्या में इजाफा हुआ है और पुलिस का कहना है कि हाईवे पर हमलों के पीछे लश्कर-ए-तैय्यबा के चीफ कमांडर अबू कासिम का दिमाग था.
पुलिस के मुताबुत कासिम ने 2013 में जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ की थी. 24 जून, 2013 को कासिम ने अपने स्क्वॉड के साथ श्रीनगर में हैदरपोर के पास हाईवे पर सेना के काफिले पर बड़ा हमला किया था, जिसमें आठ सैनिक शहीद हुए और 16 घायल हुए.
6 जून, 2015 को लश्कर ने जम्मू में उधमपुर के पास श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे पर बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के काफिले पर जानलेवा हमला किया. उधमपुर जिले में समरोली के निकट हुए इस आतंकवादी हमले में बीएसएफ के दो जवान शहीद हुए और आठ घायल हुए. इस हमले का मास्टरमाइंड उसी साल अक्टूबर में मारा गया.
इसके बाद कासिम की जगह दूसरे विदेशी आतंकी अबू दुजाना ने घाटी में लश्कर-ए-तैय्यबा की कमान संभाली. दुजाना के बारे में कहा जाता है कि वह दर्जन भर सैन्य घेराबंदियों से बच निकला था. पुलिस के रिकॉर्ड्स में वह ‘A++ आतंकी’ था जिस पर साढ़े 12 लाख रुपए का ईनाम था.
2015-16 के दौरान दुजाना ने अनंतनाग-बारामुला हाईवे को सुरक्षा बलों के लिए बहुत असुरक्षित बना दिया था. उसके चलते हाईवे के दोनों तरफ सुरक्षा बढ़ा दी गई थी.
पुलिस वालों का मानना था कि वह कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था जिसमें जून 2016 में पंपोर में अर्धसैनिक बलों के काफिले पर घात लगाकर किया गया हमला शामिल है. इस हमले में सीआरपीएफ के आठ जवान शहीद हुए थे और 20 घायल हुए थे.
26 जून, 2016 को पुराने श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे पर पंपोर के निकट फ्रेस्तबल में आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया जिसमें आठ जवान शहीद हुए और 20 अन्य घायल हो गए.
पुलिस का मानना था कि दुजाना ने इन बड़ों हमलों की योजना बनाई थी. एक पुलिस अधिकार ने बताया, ‘उसने एक बहुमंजिली इमारत पर हमला करने की योजना बनाई थी, जहां इंटरप्रेन्योरशिप डेवपलमेंट इंस्टीट्यूट का दफ्तर था. इसके अलावा वह फिदायिन हमलों को लॉजिस्टिक मदद देता था.’
21 फरवरी, 2016 को आतंकियों ने पहले सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया और फिर श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर ईडीआई की इमारत में जा छिपे. इसमें पांच जवान और एक सिविलियन की मौत हुई. यह मुठभेड़ लगभग 48 घंटे चली और इसमें तीन आतंकी मारे गए. जेकेईडीआई परिसर हाईवे पर स्थित है जहां युवाओं को उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उनके लिए फाइनांस जुटाया जाता है. वहां उसी साल अक्टूबर में एक और मुठभेड़ में सेना का एक और जवान घायल हो गया.
इसके दो महीने बाद, 17 दिसंबर, 2016 को श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे पर पंपोर में सेना के एक काफिले पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें सेना के तीन जवान शहीद हो गए. मोटर साइकिल पर सवार आतंकी छोटे रास्ते से निकले और सेना के काफिले पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे. यह काफिला ट्रैफिक होने के कारण धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था.
हाईवे पर आतंकी हमलों का सिलसिला जारी रहा. 24 जून, 2017 को श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे पर पंथा चौक पर हथियारों से लैस आतंकियों ने सीआरपीएफ की पेट्रोल पार्टी पर हमला किया जिसमें दो जवान शहीद हो गए. लश्कर-ए-तैय्यबा ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी.
अगस्त 2017 में दुजाना को सुरक्षबलों में मार गिराया, लेकिन इसके बाद दूसरे कई आतंकी उसके नक्शे कदम पर चल पड़े. नावेद जट और अबू इस्माइल जैसे लश्कर के दूसरे आतंकियों ने हाईवे पर हमलों का षडयंत्र बुना. 1 सितंबर 2017 को श्रीनगर के निकट पंथा चौक पर लश्कर के आतंकियों ने पुलिस की एक बस पर हमला किया. इसमें एक पुलिस कर्मी शहीद हुआ और सात अन्य घायल हो गए.
इस हमले के बाद 14 सितंबर, 2017 को लश्कर को एक बड़ा झटका लगा, जब नौगांव, श्रीनगर में एक गोलीबारी में संगठन के टॉप कमांडर अबू इस्माइल और उसके करीबी अबू कासिम को मार गिराया गया. अबू दुजाना की मौत के एक महीने बाद इस्माइल मारा गया. इसके बाद से नावेद जट उर्फ हंजला ने कमान संभाली और सुरक्षा बलों पर घातक हमले जारी रखे.
4 दिसंबर, 2017 को दक्षिणी कश्मीर में हाईवे पर काजीगुंड इलाके में लश्कर आतंकियों ने सेना की पेट्रोलिंग पार्टी पर गोलियां बरसाईं जिसमें तीन सैनिक घायल हो गए. बाद में एक घायल सैनिक मौत हो गई.
इन हमलों के बाद नवंबर 2018 को जट को बडगाम में मार गिराया गया. उसकी मौत के बाद लश्कर-ए-तैय्यबा सुरक्षा बलों पर हमले नहीं कर पाया. पाकिस्तान में जन्मा जट फरवरी 2018 में तब सुर्खियों में आया था, जब वह श्रीनगर के श्री महाराज हरि सिंह अस्पताल से पुलिस की हिरासत से भाग निकला था. वहां उसे मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया था.
एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने द क्विंट को बताया था, ‘जट सुरक्षा बलों के लिए बड़ा सिरदर्द था. उसे फंसाने के लिए कई अभियान चलाए गए. उसे मार गिराना, सुरक्षा बलों की बड़ी कामयाबी थी क्योंकि हाईवे पर उसकी अगुवाई में ज्यादातर हमले किए जाने वाले थे.’
2019 के बाद से जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े एक आतंकी संगठन ने ऐसी ही शैली अपनाई और सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले करने शुरू किए.
जैश ने स्थानीय आत्मघाती हमलावरों की भर्तियां की जो मुख्य रूप से हाईवे पर सुरक्षा बलों पर फिदायिन हमले करते थे.
पुलवामा हमला जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए, अब तक सबसे घातक आतंकी हमला माना जाता है और इसे जैश के स्थानीय आतंकी आदिल डार ने अंजाम दिया था.
इसी साल 5 फरवरी को श्रीनगर के लवेपोरा क्षेत्र में हाईवे पर आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी में सीआरपीएफ का एक जवान शहीद हो गया. हालांकि इस शूटआउट में तीन आतंकी भी मारे गए.
इसके तीन महीने बाद 7 अप्रैल को अनंतनाग जिले में बिजबेहरा शहर से सटे पुराने नेशनल हाईवे पर फिर एक बार हमला किया गया. गोरीवान के पास आतंकियों ने पेट्रोलिंग पार्टी पर ग्रेनेड फेंका जिसमें सीआरपीएफ का एक जवान शहीद हो गया और एक बुरी तरह घायल हुआ.
अभी 25 जून को भी बिजबेहरा में पुराने हाईवे पर आतंकी हमला हुआ. इस हमले में सीआरपीएफ के जवान के साथ आठ साल एक बच्चा भी मारा गया.
14 अगस्त को हाईवे से सटे नौगाम बाइपास पर पुलिस पार्टी पर ताबडतोड़ गोलियां बरसाई गईं. इस आतंकी हमले में दो पुलिस वाले शहीद हो गए.
सीआरपीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक जुल्फिकार हसन ने द क्विंट से बातचीत में यह बात मानी कि हाईवे सुरक्षा बलों के बहुत संवेदनशील है. लेकिन यह भी कहा कि इस पर आतंकी हमलों की आशंका नहीं है. “पुलवामा हमले के बाद हाईवे पर बहुत अधिक हमले नहीं हुए. यह एक लंबा हाईवे है और सुरक्षा बल हमेशा सतर्क रहते हैं इसीलिए आतंकी यहां बहुत ही कम हमले करते हैं.”
हसन ने यह भी कहा कि पुलवामा के बाद हमलों की संख्या में कमी आई है और सरकार ने इन हमलों का मुकाबला करने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय किए हैं.
(इरफान अमीन मलिक कश्मीर स्थित पत्रकार हैं और @irfanaminmalik पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्ति विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसकी पुष्टि करता है और न ही इसकी जिम्मेदारी लेता है).
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Published: 22 Aug 2020,02:02 PM IST