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रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इस बयान की भाषा और भाव भंगिमा क्या भारत माता की जय के नाम पर हुड़दंग करने वाली हिंदुत्व बिग्रेड से कुछ अलग है?
बयानों को पढ़ने से तो कोई खास फर्क नहीं दिखता है.
पाकिस्तान नर्क है - क्या भारत जैसी महानशक्ति के रक्षामंत्री को ऐसा बयान देना शोभा देता है, क्या पर्रिकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में खास किस्म के लंपटीकरण को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? पिछले दिनों पर्रिकर के कई अजीबो-गरीब बयान आए हैं?
गोवा के सादगी पसंद, आईआईटी से पढ़े और साइकिल से चलने वाले पर्रिकर की एक इमेज रही है, एक ब्रांड रहा है. इसी वजह से अभी तक मीडिया ने उनके काम की, बोल- चाल की बेबाक समीक्षा शुरू नहीं की है. लेकिन वो दिन दूर नहीं जब पर्रिकर अपने तौर तरीकों के कारण खुद को पब्लिक माइक्रस्कोप में पाएंगे.
पाकिस्तान सरकार की, उनके नेताओं की, आईएसआई की, आलोचना एक बात है. उस देश की सरकार, सरकारी संस्थाएं और ‘नॉन-स्टेट एक्टर्स’ ने जैसे कारनामे किए हैं, उसके लिए आलोचना जायज भी है.
लेकिन एक देश को नर्क कहना, उस देश के सभी नागरिकों को अपमानित करना दूसरी बात है. खास कर तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलाया और गले लगाया हो. यही नहीं, उनके जन्मदिन की बधाई देने बेहद नाटकीय अन्दाज में लाहौर पहुंच गए हों.
अब कश्मीर में जो हो रहा है, उसके बहाने पाकिस्तान को कोसना पर्रिकर को जरूरी लगता है, तो इसके पीछे एक इरादा ये भी है कि कश्मीर में सरकार की बेबसी और दिशाहीनता को कैसे छिपाया जाए. पाकिस्तान एक सम्प्रभु देश है, हमारा पड़ोसी देश है, उस पूरे देश को, और वहां के लोगों को यूं अपमानित करना भारत की गरिमा को गिराता है.
एक बार उन्होंने कहा था कि भारत ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं, पाकिस्तान को सबक सिखा देंगे. ये सबक सिखाना एक तरह से पर्रिकर और उनके दोस्तों का तकियाकलाम हो गया है.
अभिनेत्री राम्या पर देशद्रोह का मुकदमा एबीवीपी का कोई उत्साही कार्यकर्ता भले ही कर सकता है. लेकिन ऐसे माहौल में पर्रिकर, अगर पाकिस्तान नरक है, वाला बयान दोहराते हैं तो वे आग में घी डाल रहे हैं, रक्षामंत्री को इतनी फुरसत नहीं होनी चाहिए.
मगर उनको फुरसत है. वो राष्ट्रवाद, देशभक्ति, तिरंगा, भारत माता, पाकिस्तान और कश्मीर ऐसे मसलों पर एक नए और कर्कश समूहगान में अपनी आवाज जोड़ रहे हैं तो एक साफ मकसद है. यूपी चुनाव के पहले ध्रुवीकरण की कड़ाही में वो अपनी तरफ से छौंक लगा रहे हैं.
गोवा से जब पर्रिकर दिल्ली आए थे तो बड़ी उम्मीद थी कि की दिल्ली में हम नए किस्म की सादगी और सदाचार की नयी राजनीति का दीदार करेंगे. लेकिन पर्रिकर जिस चीज का प्रदर्शन कर रहे हैं वो वैसा है जैसे कि एक नया रंगरूट अपने बॉस को खुश करने के लिए ऊलूल-जुलूल बातें कहें.
अच्छा नहीं लगता ये कहने सोचने और लिखने में कि वो अरुण जेटली, सुरेश प्रभु और सुषमा स्वराज से कम्पीट करने के बजाय, गिरिराज सिंह, निरंजन ज्योति और वी के सिंह जैसों से मुकाबला करके नंबर बढ़ाने में लगे हैं.
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Published: 23 Aug 2016,06:26 PM IST