advertisement
संसद के शीत सत्र में नोटबंदी पर चर्चा होनी ही थी, सो हो रही है. देश के आम लोग बैंकों और एटीएम के आगे नोटों के इंतजार में परेशान खड़े हैं, तो यह भी तय था कि विपक्ष इस मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी को घेरेगा.
सेशन के पहले दिन राज्यसभा में कांग्रेस के सीनियर नेता आनंद शर्मा ने पीएम मोदी पर कई तरह के जुबानी तीर चलाए. उन्होंने तंज भी कसा, 'पीएम कभी हंसते हैं, कभी रोते हैं...कभी हंसते हैं, कभी रोते हैं.'
एक दिन पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इससे भी तीखी बात कही थी. उन्होंने कहा था कि देश में 18-20 लोग लाइनों में मर गए और मोदी जी हंस रहे हैं.
पीएम मोदी पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक करने के नीतिगत निर्णय लेने की वाहवाही अभी पूरी तरह लूट भी नहीं पाए थे कि इस बीच उन्होंने कालेधन के खिलाफ एक और 'सर्जिकल स्ट्राइक' कर दी. सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश-दुनिया में पीएम मोदी की छवि और चमक गई. अगर कालेधन के खिलाफ उनकी रणनीति कामयाब हो जाती है, तो न केवल बीजेपी, बल्कि आरएसएस में उनका कद बेहद-बेहद ऊंचा हो जाएगा.
उनकी हंसी की वजह केवल इतनी ही नहीं हो सकती. अगर नोटबंदी और नोटबदली से कालाधन 10-15 फीसदी भी खत्म हो सका, तो वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले जांबाज पीएम के तौर पार याद किए जाएंगे.
ये तो हुई इमेज, कद और शख्सियत की बात. अब जरा संभावित सियासी फायदे पर गौर करते हैं.
लोगों को लंबी-लंबी लाइनों में लगवाकर भी अगर प्रधानमंत्री आम पब्लिक को यह समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि ये मुहिम अंतत: उनके ही हित के लिए है, तो अगले लोकसभा चुनाव में भी उनकी दावेदारी पक्की हो जाती है. अगले चुनाव और उसके संभावित नतीजे की चर्चा अगर छोड़ भी दें, फिर भी रणनीति की कामयाबी के बाद विपक्षी पार्टियों की बोलती बंद हो जाएगी. ऐसे में मोदी विरोध के नाम पर गोलबंद हो रहे सियासी दलों को गहरा झटका लग सकता है.
बताया जा रहा है कि पीएम मोदी ने एक छोटी टीम के साथ चर्चा करके बेहद गोपनीय तरीके से नोटबंदी का फैसला किया. इसकी भनक पूरी मंत्रिपरिषद को भी नहीं लगी थी. ऐसे में छोटी-छोटी रकम बदलवाने के लिए लाइन में खड़े लोगों को हो रही तकलीफ की जिम्मेदारी सीधे तौर पर देश के मुखिया की ही बनती है.
पीएम के आंसुओं के मायने और भी हैं. दरअसल, उन्होंने नोटबंदी का फैसला लेकर बड़ा सियासी जुआ खेला है. अगर ये पूरी कवायद आने वाले दौर में फ्लॉप साबित होती है, तो वे देश के इतिहास में अदूरदर्शी पीएम के तौर पर याद किए जाएंगे. नाकामी की स्थिति में उनकी साख तेजी से गिरेगी और पार्टी के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी तेजी से उभरेंगे.
पीएम मोदी ये बात अच्छी तरह समझ रहे होंगे कि जब पब्लिक रोती है, तो मौका देखकर शासकों को भी खूब रुलाती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 16 Nov 2016,08:44 PM IST