मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019नमाजियों से डरी हरियाणा सरकार क्या भगवान को भी अपमान से बचाएगी?

नमाजियों से डरी हरियाणा सरकार क्या भगवान को भी अपमान से बचाएगी?

इस देश में सरकारी जमीनों पर कब्जे के कई नायाब तरीके हैं. उन्ही में से एक है मंदिर निर्माण या मूर्ति की स्थापना

अजीत अंजुम
नजरिया
Updated:
क्या अनिल विज को खुले में नमाज पढ़ने वालों से सरकारी जमीन पर कब्जे का खतरा है
i
क्या अनिल विज को खुले में नमाज पढ़ने वालों से सरकारी जमीन पर कब्जे का खतरा है
( फोटो: क्विंट हिंदी )

advertisement

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. कभी-कभी बात दूर तक जानी भी चाहिए. दृष्टि और तस्वीर साफ होती है. बंद सोच को विस्तार मिलता है और एकांगी सच का दूसरा पहलू भी सामने आता है. हरियाणा के गुरुग्राम में सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ने के खिलाफ हिन्दूवादी संगठनों की मुहिम और मोर्चेबंदी पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ‘सरकारी मुहर’ के बाद उनके विवाद-प्रिय मंत्री अनिल विज का ताजा बयान विवाद के कई दूसरे दरवाजे खोलता है. अनिल विज ने कहा है कि जमीन कब्जा करने की नीयत से नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

मतलब ये कि अनिल विज को खुले में नमाज पढ़ने वालों से सरकारी जमीन पर कब्जे का खतरा है. अगर ऐसा है तो क्या सरकार ने इस खतरे से निपटने की जिम्मेदारी गुरुग्राम के भगवा ध्वजधारी हिन्दूवादी संगठनों को दे दी है? सरकारी जमीनों पर ‘धार्मिक कब्जे’  क्या सिर्फ नमाज पढ़ने वाले करते हैं? अगर खुले में नमाज पढ़ने वालों से सरकारी जमीनों को खतरा है तो क्या हरियाणा सरकार हर तरह के ऐसे ‘धार्मिक कब्जे’ के खिलाफ सख्ती दिखाएगी? गुरुग्राम में करीब एक महीने से छोटे -छोटे हिन्दूवादी ग्रुप खुले में नमाज पढ़ने वालों के खिलाफ हंगामा कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री खट्टर और मंत्री अनिल विज के बयानों से साफ हो गया है कि हंगामा करने वाले ‘हिन्दूवादियों’ को सरकार का समर्थन प्राप्त है. तभी तो पुलिस की परवाह किए बगैर छोटे -छोटे झुंडों में जमा हुए लोगों ने कई जगहों पर नमाजियों को रोका और जब कार्रवाई की बात आई तो सरकार के ओहदेदारों की तरफ से ऐसे बयान आ गए.

मुख्यमंत्री खट्टर पहले ही कह चुके हैं कि जिन्हें नमाज पढ़नी हो, वो मस्जिद , ईदगाह या अपने घरों में पढ़ें, सार्वजनिक जगहों पर इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयानों से भी कई सवाल पैदा होते हैं. सवाल ये कि क्या दूसरे धर्मों के लिए यही पैमाने बनाए जाएंगे? क्या दूसरे धार्मिक उत्सवों, कार्यक्रमों, यात्राओं, जुलूसों, अखंड पाठों, कांवड़ियों, जगरातों या जागरणों के लिए भी यही कायदा काम करेगा? क्या एक जैसे नियम सबके लिए लागू होंगे? क्या सावन के महीने में सड़कों पर बोल बम के नारे लगाते हुए, राहगीरों को डराते हुए धार्मिक दस्ता निकलेगा तो उनके लिए ऐसे ही कठोर कदम उठाए जाएंगे?
क्या निशाने पर हैं मुसलमान?फोटो:Twitter

ये लोग तो चुपचाप सिर झुकाकर नमाज पढ़ रहे थे,  इन्हें रोक दिया गया.  कांवड़िओं का झुंड सैकड़ों किमी की सड़कों पर ऐसे चलता है, जैसे अभी -अभी रजिस्ट्री ऑफिस से पूरी सड़क अपने नाम करवाकर आया हो. तो उन्हें भी यही नियम समझाया जाएगा?  आगे -आगे शोर मचाता मोटरसाइकिल दस्ता, पीछे -पीछे जीप दस्ता और डंडे लिए लड़के ऐसे चलते हैं कि कोई गाड़ीवाला जरा छू भी जाए तो मारने पर उतारु हो जाते हैं. क्या इन सबके लिए भी नमाजियों की तरह ही कोई विधान बनेगा? अगर खट्टर सरकार सभी धर्मों के लिए कोई गाइडलाइन या अधिसूचना जारी करती तो बात समझ में आती , लेकिन ऐसा है नहीं. तो क्यों न माना जाए कि इरादे ‘नमाजियों’ के खिलाफ हैं, निशाने पर मुसलमान हैं.

मंत्री अनिल विज को डर है कि पार्कों या सरकारी जमीनों पर नमाज पढ़ते -पढ़ते उन पर कब्जा हो जाएगा. मान भी लें कि मंत्री जी का ये डर वाजिब है तो क्या उन्हें सिर्फ नमाजियों से डर है? क्या सिर्फ नमाज पढ़ने वाले ही सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लेते  हैं? क्या हरियाणा में मंदिरों, आश्रमों और मठों के नाम पर सरकारी जमीनों पर कब्जा नहीं हुआ है? क्या राज्य सरकार ने ऐसी कोई लिस्ट बनाई है कि कितने सौ एकड़ सरकारी जमीनें ऐसे मठों और मंदिरों के कब्जे में हैं, या जिन पर कब्जा करने के लिए मंदिर या आश्रम बना दिया गया? जहां कब्जा नहीं हुआ , वहां की चिंता है , लेकिन जहां कब्जा हो चुका है, उसे मुक्त करना के लिए क्या कर रहे हैं मंत्री और मुख्यमंत्री? जबकि सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश है कि किसी भी सूरत में ऐेसे कब्जाधारियों से सरकारी जमीनों को मुक्त कराया जाए.

इस देश में सरकारी जमीनों पर कब्जे के कई नायाब तरीके हैं(फोटो: Reuters) प्रतीकात्मक तस्वीर

इस देश में सरकारी जमीनों पर कब्जे के कई नायाब तरीके हैं. उन्ही में से एक है मंदिर निर्माण या मूर्ति की स्थापना. जमीन चाहे हाइवे की हो या रेलवे की, राज्य की हो या केन्द्र की, निगम की हो या पंचायत की, कोर्ट की हो या कॉलेज की, मंदिर और मूर्ति के दम पर ऐसी तमाम जमीनों पर कब्जा किया जाता रहा है. सरकारी जमीनों पर हर साल न जाने कितने मंदिर रातों-रात उग आते हैं.

अकेले हनुमानजी की मूर्ति के बूते देश भर में सैकड़ों एकड़ जमीनें सरकार के कब्जे से निकलकर पंडों, पुजारियों या धार्मिक चोले वाले माफिया के हाथ लग जाती है. कई राज्यों में नेताओं, मंत्रियों और बाहुबलियों ने सरकारी जमीनों पर जबरन बजरंग बली की मूर्ति से लेकर साईं बाबा का मंदिर खड़ा कर दिया, प्रशासन देखता रह गया. बाद में उन्हीं मंदिरों के इर्द-गिर्द की सरकारी जमीनों को समेट कर उसमें मकान -दुकान भी बना दिया गया. क्या मजाल कि कोई उसे तोड़कर दिखा दे.

दिल्ली हाईकोर्ट कब्जे से खफा हो कर हनुमान की विशालकाय मूर्ति को एयरलिफ्ट करने तक पर विचार करने लगा था(फोटो:Twitter)

दिल्ली में केन्द्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे करोलबाग में  रिज की जमीन को कब्जा करके हनुमानजी की 108 फीट ऊंची मूर्ति खड़ी कर दी गई. मूर्ति के आसपास की 1170 वर्ग गज जमीन को कब्जा करके कई तरह का कारोबार शुरु हो गया. बजरंग बली की आड़ में महंगी सरकारी जमीन को हड़पने में एक मोटरसाइकिल शो रुम का मालिक भी शामिल था. दिल्ली हाईकोर्ट इस कब्जे से  इतना खफा हुआ था कि हनुमान की विशालकाय मूर्ति को एयरलिफ्ट करने तक पर विचार करने लगा था. हाईकोर्ट ने इस मामले में अधिकारियों की मिलीभगत की तरफ इशारा करते हुए कहा था- ‘ अगर आप अतिक्रमण करके पूजा करेंगे तो आपकी प्रार्थना भी भगवान तक नहीं पहुंचेगी.' ऐसे मंदिरों में लाखों का चढ़ावा चढ़ने लगता है और कारोबार चमक उठता है.

ऐसा ही एक मामला जून 2015 में मध्य प्रदेश के भिंड से सामने आया था, जब ग्वालियर हाईकोर्ट ने सड़के के किनारे खड़े हनुमानजी के नाम से ही सीधे नोटिस भेज दिया था ये कहते हुए कि आपने सड़क की जमीन का अतिक्रमण किया है और बार-बार आदेश के बाद भी जगह खाली नहीं कर रहे हैं. तो क्यों न आपके खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाया जाए? अब ये जानकारी तो नहीं है कि वहां से हनुमानजी हटे या नहीं लेकिन देश भर में हनुमानजी पर ऐसे सैकड़ों मुकदमे चल रहे हैं.  भावनाओं का ख्याल रखने के नाम पर कहें या उसकी आड़ में, सरकारी अमला धार्मिक अतिक्रमण को हटाने से परहेज करता है. इस दौर में कम से कम मंदिरों पर तो बुलडोजर चलाना आसान नहीं.

एक आंकड़े के मुताबिक अकेले यूपी में ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाने वाले करीब 38,000 धार्मिक स्थल मौजूद हैं जिन्हें सड़क, पार्क या किसी और तरह की सार्वजनिक जमीन पर कब्जा करके दशकों के दौरान खड़ा किया गया है. यूपी सरकार के पास ऐसे ‘धर्मिक कब्जों’ की जिलावार जानकारी है, लेकिन उन्हें हटाने  का जोखिम नहीं लेना चाहती. इसमें मंदिर भी हैं, मस्जिद भी और मजार भी. सैकड़ों ऐसे अवैध धार्मिक स्थल हैं, जो किसी जमीन माफिया के इशारे पर वजूद में आए हैं. पहले छोटी मूर्ति रखी गई, फिर बड़ी मूर्ति स्थापित की गई. फिर साल -दो साल बाद वहां बड़ा मंदिर बना दिया गया. कब्जे की जगह कुछ सौ फीट से शुरु होकर बीघे तक में बदल गई. ऐसे ही मजारों और दरगाहों के लिए भी जमीनों पर सुनियोजित साजिश के साथ कब्जा हुआ है.

इलाहाबाद में तो हाईकोर्ट परिसर में जमीन कब्जा करके मस्जिद बना दी गई थी. हाईकोर्ट ने नौ मंजिला इमारत से सटी इस मस्जिद को हटाने का आदेश दिया है लेकिन अभी तक कोई रास्ता नही निकला है. पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को ऐसे सभी अनाधिकृत धार्मिक ढांचों को गिराने और हटाने का आदेश दिया था. साथ में ये निर्देश भी था कि आइंदा सड़क, पार्क या किसी सार्वजनिक जगह पर किसी तरह की मूर्ति, मंदिर या किसी ढांचे की स्थापना न हो.

कोर्ट का कहना एक बात है, जमीनी हकीकत दूसरी. आप यूपी या बिहार में दो-चार सौ किमी का सफर तय करके देख लीजिए. सड़कों के किनारे वाली सरकारी जमीनों पर आज भी बजरंग बली खड़े होते और बड़े होते दिख जाएंगे.  ऐसे ’मंदिर निर्माता’ लाउडस्पीकर लगाकर हाइवे से गुजरने वाले वाहनों को रोककर जबरन चंदा भी मांगते हैं और ठसक से साथ कब्जे का विस्तार भी करते हैं. गांवों में कोई बाहुबली पंचायत की जमीनों पर कब्जा करके पहले अखंड पाठ, अखंड कीर्तन या भागवत कथा शुरू करवाता है , फिर वहां मंदिर खड़ा कर देता है.  कोई रोकने वाला नहीं. कोई टोकने वाला नहीं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कोई ऐसा राज्य नहीं , जहां सरकारी जमीनों पर कब्जे करके अवैध धार्मिक स्थलों, मंदिरों, मजारों या गिरजाघरों का निर्माण न हुआ हो. रायपुर का एक मामला दो साल पहले बहुत सुर्खियों में आया था , जब सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल और उनके परिजनों द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा करके 2012 में बनाये गये मंदिर और व्यावसायिक कांप्लेक्स को तोड़ने का आदेश दिया था.

गौरीशंकर अग्रवाल ने एक ट्रस्ट बनाकर सैकड़ों हेक्टेयर जमीन हथिया ली थी. उसी में भव्य मंदिर भी था और कई तरह की इमारतें भी. कब्जे वाली जमीन पर बने उस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में खुद सूबे के सीएम रमन सिंह और राज्यपाल भी शामिल हुए हुए थे. मंदिर गिराने के सुप्रीम फैसले के  खिलाफ तमाम हिन्दूवादी संगठनों ने मुहिम छेड़ दी थी.

ऐसी ही खबर पिछले साल बिहार से भी आई थी. लालूपुत्र तेजप्रताप यादव, सीएम नीतीश कुमार के आवास से मात्र 50 कदम की दूरी पर सड़क की घेराबंदी करके सरकारी जमीन पर जबरन शिव मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था. बनारस और मथुरा से पंडित बुलाए गए थे. बड़ा आदमी , ताकतवर नेता या बाहुबली जमीन कब्जा करता है तो बड़ा मंदिर बनवाता है. छोटा आदमी कब्जा करता है तो छोटा मंदिर बनाता है. मंदिरों के पास उन्हीं सरकारी जमीनों पर कारोबार भी शुरु हो जाता है. ढाबे भी बनते हैं. दुकानें भी खुल जाती है.

सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों के हाईकोर्ट ने समय-समय पर केन्द्र और राज्य सरकारों को ऐसी कब्जे वाली सरकारी जमीनों को मुक्त कराने का फरमान जारी किया है(फोटो: द क्विंट) 

सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों के हाईकोर्ट ने समय-समय पर केन्द्र और राज्य सरकारों को ऐसी कब्जे वाली सरकारी जमीनों को मुक्त कराने का फरमान जारी किया है लेकिन उस पर अमल न के बराबर हुआ है. 2006 से अब तक सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारी जमीनों पर बनी धार्मिक इमारतों , मंदिरों और ढांचों को गिराने तक के निर्देश दिए हैं , राज्य सरकारों से एक्शन टेकन रिपोर्ट तलब की है , फिर भी राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानना जरूरी नहीं समझा. पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चार राज्यों- गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और तेलंगाना को सरकारी पार्कों और जमीनों को धार्मिक कब्जों से मुक्त कराने के लिए नोटिस भेजा था.

राज्य सरकारों की लापरवाही और नाकामी पर चोट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि ‘ कब्जे वाली जमीन पर मंदिर बनाना भगवान का अपमान है. किसी भी सूरत में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. आप सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को कोल्ड स्टोरेज में नहीं रख सकते.’  सुप्रीम कोर्ट के इतने सख्त निर्देश के बाद भी सरकारी जमीनों पर बने मंदिरों ,मस्जिदों या मजारों पर बुलडोजर चलाकर उसे खाली कराने का काम किसी राज्य सरकार ने नहीं किया.

सवाल ‘भावनाओं’ का जो है. पांच साल पहले यूपी के गौतम बुद्ध नगर की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल ने अपने इलाके की जमीन को कब्जा करके बन रही मस्जिद की दीवार को गिराने की कोशिश की थी तो उन्हें ही सस्पेंड कर दिया गया था. ऐसे में कोई अधिकारी जोखिम भी क्यों लेना चाहेगा?

इससे पहले भी अप्रैल 2016 में राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था-

‘आपको हर हाल में सरकारी जमीनों पर कब्जे वाले ऐसे धार्मिक ढांचों को गिराना है. हम जानते हैं किआप कुछ नहीं कर रहे हैं. कोई राज्य नहीं कर रहा है. आपको ऐसे गैरकानूनी निर्माणों की इजाजत देने का, उसे बचाए रखने का कोई अधिकार नहीं है. भगवान का इरादा रास्ता रोकने का नहीं. लेकिन आपका है. ये भगवान का भी अपमान है

‘ जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और अरुण मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकारों के रवैये पर गुस्सा जताते हुए उन्हें दो सप्ताह की समय दिया था. पता नहीं सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त आदेश के बाद कितने ढांचे गिराए गए. इसी साल साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे तमाम मामलों को राज्यों की हाईकोर्ट मे भेज दिया है. आसारा यही हैं कि जैसे पहले सरकारों ने अदालती आदेशों को कोल्ड स्टोरेज में रखा है, वैसे ही आगे भी रखेगी.

तो जब पूरे देश में ये हाल है ,कि सुप्रीम कोर्ट तक लाचार है, फिर अनिल विज को अचानक गुरुग्राम के नमाजियों से ही खतरा क्यों दिखने लगा? वजह साफ है. समझिए तो समझ जाएंगे. एक धर्म विशेष के खिलाफ ये तीली है , जब आग बनेगी तो सेंकने में फायदे ही फायदे हैं. इस बात को तो खट्टर से लेकर विज तक और दिल्ली में बैठे बीजेपी के नेता तक समझते हैं. वरना अगर सरकारी जमीनों पर धार्मिक कब्जे की चिंता होती तो हिन्दू -मुसलमान बराबर होते.

(अजीत अंजुमसीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. )

यह भी पढ़ें: देवता आजकल गुस्से में क्यों हैं?हनुमानजी का ये स्टिकर क्या कहता है

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 08 May 2018,02:14 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT