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महीना दिसंबर का था. साल 2000. यानी बात करीब सोलह साल पहले की है. बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली की ठिठुरती ठंड से बचने और साल की छुट्टियां मनाने केरल के खूबसूरत कुमाराकम लेक पर बने रिसॉर्ट में ठहरे थे.
केरल में हो रही बीजेपी राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक से ये जगह बस 225 किलोमीटर दूर है. बीजेपी के दूसरे पीएम नरेंद्र मोदी इस मौके पर उरी हमले के बाद पहली बार पाकिस्तान को जवाब देंगे.
प्रधानमंत्री के कहे हर शब्द पर देश की जनता, पूरा पार्टी कैडर, दुनिया और खुद पाकिस्तान की भी नजरें होंगी. पर फिलहाल बात वाजपेयी की.
कुमाराकम के खूबसूरत रिसॉर्ट में वाजपेयी ने पक्षियों की चहचहाहट और ढलते सूरज की हल्की रोशनी के बीच नीरव शांति में अपनी सरकार का नया लक्ष्य रखा था. नई शताब्दी की शुरुआत में नई सरकार के लक्ष्य का भारत-पाकिस्तान में गर्मजोशी से इसका स्वागत किया गया.
जम्मू कश्मीर की समस्या का जिक्र करते हुए वाजपेयी ने लिखा कि हम पाकिस्तान से किसी भी स्तर पर बात करने को तैयार हैं. यहां तक कि सबसे बड़े स्तर पर भी.
वाजपेयी का इशारा प्रधानमंत्री के स्तर पर शिखर सम्मेलन से था. लेकिन पाकिस्तान अपनी धरती का इस्तेमाल आंतकवादियों के लिए बंद करे और बातचीत का माहौल बनाए. वाजपेयी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए सरकार सभी स्टेक होल्डर्स से बात करेगी. उनका इशारा हुर्रियत से था.
वाजपेयी ने अपने संदेश में एक और बात कही जिसका भारत पाकिस्तान में बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया गया.
वाजपेयी बस लेकर उन्हीं नवाज शरीफ से मिलने 1999 में लाहौर गए थे, जिनके शासनकाल में उरी में सैनिकों पर आंतकवादियों का हमला हुआ है. लाहौर बस यात्रा की गर्माहट खत्म नहीं हुई थी कि वाजपेयी को कारगिल में पाकिस्तान से युद्ध झेलना पड़ा.
कुमाराकम में लिए संकल्प के बाद कारगिल को अंजाम देने वाले मुशर्रफ के साथ वाजपेयी ने जुलाई, 2001 में आगरा में शिखर वार्ता की. इसके बाद दिसंबर 2001 में संसद पर पाकिस्तानी आंतकवादियों का हमला झेला.
संसद पर हुए हमले के बाद वाजपेयी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन पराक्रम किया. लेकिन युद्ध नहीं किया. 30 लाख से ज्यादा सैनिकों, तोपों, मिसाइलों की तैनाती कर वाजपेयी हट गए.
दिसंबर, 2001 में हुए संसद पर हुए हमले के बाद मार्च 2002 की बात है. मशहूर शास्त्रीय संगीतकार पंडित जसराज वाजपेयी से मिलने उनके घर गए हुए थे. इधर-उधर की बातचीत के बाद पंडित जसराज ने वाजपेयी से पूछा, “हम पाकिस्तान को सबक क्यों नहीं सिखाते?”
संसद हमले के बाद वाजपेयी पर पाकिस्तान को सबक सिखाने का बड़ा दबाब था.
वाजपेयी ने युद्ध नहीं किया. बल्कि हमले दर हमले झेलकर भी पाकिस्तान के साथ बातचीत का माहौल बनाया. वाजपेयी शासनकाल में रॉ प्रमुख रहे ए. एस. दुल्लत अपनी किताब कश्मीर वाजपेयी इयर्स में लिखते हैं-
उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पाकिस्तान को सबक सिखाने का वैसा ही दबाव है. पीएम उरी हमले के बाद से मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति और वॉर रूम मीटिंग्स में समय बिता रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी जब सर्जिकल स्ट्राइक और युद्ध चाह रही जनता से केरल रैली में मुखातिब होंगे. तब क्या मोदी को वाजपेयी का कुमाराकम में दिया संदेश याद रहेगा कि भारत-पाक संबंधों को बहाल करने के लिए साहसिक और इनोवेटिव कदम उठाने की जरूरत है?
बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन के मुताबिक राष्ट्रीय परिषद में उरी में मारे गए सैनिकों की शहादत और पाकिस्तान की भूमिका पर प्रस्ताव पारित किया जाएगा. लेकिन सबको इंतजार है प्रधानमंत्री के जबाब का जो देश सुनना चाहता है.
अब तक सरकार ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग थलग करने की रणनीति पर काम किया है, लेकिन यह अलगाव की रणनीति ज्यादा दिन नहीं टिकेगी और प्रधानमंत्री को वाजपेयी के शब्दों में कोई साहसिक कदम उठाने होगें. पर साहसिक कदम युद्ध न समझा जाए.
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