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क्या हाइड्रोजन बम वाले उत्तर कोरिया से पाकिस्तान को फायदा होगा?

चीन और ब्रिक्स के नेता इस चुनौती को लेकर अपने फाइनल डॉक्युमेंट में क्या कहते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

सी उदय भास्कर
नजरिया
Published:
उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में, उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग.
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उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में, उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग.
(फाइल फोटो: AP)

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उत्तर कोरिया ने दुनिया और चीन में ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने पहुंचे कुछ नेताओं को रविवार को अपने छठे कामयाब न्यूक्लियर टेस्ट से चौंका दिया. उसने दावा किया कि ये हाइड्रोजन बम का परीक्षण था. ग्लोबल एजेंसियों ने इस टेस्ट के तकनीकी पैमानों की अभी तक स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की है, लेकिन शुरुआती अनुमान के मुताबिक रिक्टर पैमाने पर टेस्ट की तीव्रता 6.3 मापी गई. इससे उत्तर कोरिया के दावे को मजबूती मिलती दिख रही है. हाइड्रोजन बम में एटॉमिक पार्टिकल्स का फ्यूजन होता है, जबकि न्यूक्लियर बम में एटॉमिक पार्टिकल्स टूटते हैं.

अगर यह मान लिया जाए कि उत्तर कोरिया ने फ्यूजन प्रोसेस की तकनीक में महारथ हासिल कर ली है तो इसका क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर असर हो सकता है. पहली बात तो यह है कि उत्तर कोरिया को अब कमजोर न्यूक्लियर पावर नहीं माना जा सकता. अमेरिका और जापान और दक्षिण कोरिया जैसे उसके सहयोगी देशों को उत्तर कोरिया को अब हाइड्रोजन बम की क्षमता वाला देश मानना होगा, जिसके पास अच्छी मिसाइल तकनीक भी है.

चीन और रूस का द्वंद्व

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उत्तर कोरिया को लेकर अपना सुर बदलना होगा और उसे बातचीत के लिए मनाने की कोशिश करनी होगी.

अमेरिका के लिए हालात 1990 के दशक की शुरुआत जैसे हो गए हैं, जिससे बिल क्लिंटन को जूझना पड़ा था. चीन और कुछ हद तक रूस के लिए अजीब हालात बन गए हैं. दोनों देश अभी ब्रिक्स सम्मेलन (3 से 5 सितंबर तक चलने वाले) में शामिल हो रहे हैं, जिसकी मेजबानी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कर रहे हैं.

हाइड्रोजन बम की क्षमता रखने वाला उत्तर कोरिया अब शायद चीन के रणनीतिक संकेतों पर ध्यान ना दे, जो उसका करीबी पार्टनर रहा है. इससे चीन की परेशानी बढ़ सकती है. वहीं, रूस और अमेरिका अब उत्तर कोरिया को नियंत्रित रखने के लिए चीन से अधिक उम्मीद रखेंगे. साथ ही, जापान और दक्षिण कोरिया में सुरक्षा के लिए अपने दम पर और कदम उठाने को लेकर बहस तेज होगी. दोनों देशों में यह चर्चा जोर पकड़ सकती है कि उन्हें इसके लिए सिर्फ अमेरिका जैसे सहयोगी देशों के भरोसे नहीं रहना चाहिए.

उत्तर कोरिया 1991 में शीत युद्ध खत्म होने के बाद से अमेरिका के लिए चुनौती रहा है. ऐसे में ट्रंप से इस मसले को तुरंत सुलझाने की उम्मीद करना उनके साथ न्याय नहीं होगा.

दक्षिणी कोरियाई सेना के सैनिक सालाना होने वाले उल्की फ्रीडम गार्डियन प्रैक्टिस के दौरान योंगिन, दक्षिण कोरिया, मंगलवार, 29 अगस्त 2017. (फोटो: AP)
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क्या हाइड्रोजन बम की क्षमता रखने वाले उत्तर कोरिया से पाकिस्तान को फायदा होगा?

जनसंहार के हथियार (डब्ल्यूएमडी) को लेकर चीन-उत्तर कोरिया-पाकिस्तान के बीच आपसी तालमेल रहा है. पाकिस्तान की छिपी एटॉमिक क्षमता और आतंकवाद को उसके समर्थन के बीच एक रिश्ता रहा है, जिसकी अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश अनदेखी करते आए हैं. ब्रिक्स सम्मेलन में भी इस सच को स्वीकार नहीं किया जाएगा, जबकि भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका इसे लेकर ऐतराज जता चुके हैं.

पाकिस्तान को क्या उत्तर कोरिया की इस क्षमता से फायदा होगा?

इस मामले में मैं अपने साथ घटी एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं. पूर्वी एशिया में हुए एक हालिया डब्ल्यूएमडी संबंधित सम्मेलन में उत्तर कोरिया केंद्र में था. इस तरह के आयोजन में अनौपचारिक बातचीत से महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं. यहां उत्तरी अमेरिका के एक राजनयिक ने मुझसे जो बात कही, मैं उसका जिक्र यहां कर रहा हूं. कोरियाई भाषा जानने वाले यह राजनयिक 1998 में उत्तर कोरिया गए हुए थे, जब पाकिस्तान ने न्यूक्लियर टेस्ट किए थे. जब राजनयिक उत्तर कोरियाई प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग के लिए रूम में दाखिल हुए, तो वहां के एक हाई रैंकिंग जनरल ने चहकते हुए कहा, ‘हमारे पाकिस्तानी दोस्तों ने एटम बम का सफल परीक्षण कर लिया है.’

इसमें छिपा हुआ संदेश यह था कि इससे उत्तर कोरिया के बम के गोपनीय डिजाइन की सफलता साबित हो गई है. उत्तर कोरिया ने पहला न्यूक्लियर टेस्ट अक्टूबर 2006 में किया था और उसके बाद की घटनाएं इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं. चीन और ब्रिक्स के नेता इस चुनौती को लेकर अपने फाइनल डॉक्युमेंट में क्या कहते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

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