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महिलाएं जंग के मैदान में छक्के छुड़ा सकती हैं, टेस्ट करके तो देखिए

क्या महिलाओं की तरक्की में रोड़ा बनते हैं पुरुष? 

गीता यादव
नजरिया
Updated:
दुनियाभर में महिलाएं हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं, तो सेना का नेतृत्‍व क्यों नहीं कर सकतीं
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दुनियाभर में महिलाएं हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं, तो सेना का नेतृत्‍व क्यों नहीं कर सकतीं
(फोटो: रॉयटर्स)

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दुनिया और भारत के इतिहास में महिला योद्धाओं की एक पूरी श्रृंखला है. जॉन ऑफ आर्क से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, चित्तूर की रानी चेनम्मा, चांद बीवी, गोंड रानी दुर्गावती, झलकारी बाई, उदादेवी पासी जैसी योद्धाओं ने अपना नाम कमाया है. इनके साथ कभी ये सवाल नहीं आया कि वे युद्ध क्षेत्र में कपड़े कैसे बदलती थीं या कि वे योद्धा होने के दौरान गर्भवती हो जातीं, तो क्या होता या कि क्या जवान उनका नेतृत्व स्वीकार करते.

तो आखिर ऐसा क्या है कि जो बात पहले हो सकती थी, वह आज नहीं हो पा रही है? थल सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने ये कहकर सबको चौंका दिया है कि भारतीय सेना के ज्यादातर जवान गांवों से आते हैं और वे महिला अफसरों का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए अभी तैयार नहीं हैं.

उन्होंने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कुछ लॉजिस्टिकल दिक्कतों का भी जिक्र किया. जैसे कि अगर किसी युद्ध क्षेत्र में महिला को कमांड दी गई और इस बीच में अगर वे मातृत्व अवकाश मांगती हैं, तो क्या होगा. साथ ही अगर महिला कमांडर के नेतृत्व में एक टुकड़ी लंबे ट्रैक पर जा रही है, तो महिला अफसर के सोने का बंदोबस्त अलग से करना होगा. या उनके कपड़े बदलने के लिए किसी जगह को घेरकर तैयार करना होगा.

सेना में महिलाओं को शामिल करने में भारत यूरोपीय देशों की तुलना में काफी पीछे है(प्रतीकात्मक फोटो: PTI)

उन्होंने ये भी कहा कि भारतीय समाज मृत महिला सैनिकों के ताबूत को झेलने के लिए तैयार नहीं है.

जनरल रावत ने दरअसल वही कहा है, जो सेना के जनरलों या कहिए कि भारतीय पुरुषों के मन में है, लेकिन वे आम तौर पर इसे कहते नहीं हैं. बेहतर होता कि जनरल रावत भी इस बारे में वही कहते, जो भारत सरकार कहती है.

सेना में महिलाओं को शामिल करना एक ऐसा काम है, जिसमें भारत बेशक पीछे है, लेकिन इस दिशा में लगातार प्रगति हो रही है. वायुसेना में तो अब लगभग 14 परसेंट अफसर महिलाएं हैं.

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भारत सरकार की इस बारे में जो घोषित नीति है, वह कुछ इस प्रकार है:

  1. सेना, नौसेना और वायुसेना में महिलाएं सिर्फ अफसर के तौर पर नियुक्त हो सकती हैं
  2. भारतीय वायुसेना की हर ब्रांच में महिला अफसरों की नियुक्ति होती है. इसमें युद्धक विमान का पायलट होना शामिल है. ऐसी पहली महिला फाइटर प्लेन पायलट यूनिट को 18 जून, 2016 को कमीशन किया गया.
  3. नौसेना में महिला अफसर शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए लॉजिस्टिक्स, लॉ, मेडिकल, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पायलट (मेरीटाइम रिकॉनसंस), नेवल आर्ममेंट इस्पेक्टरेट, नेवल आर्किटेक्चर और एडुकेशन ब्रांच में नियुक्त होती हैं.
  4. थलसेना में महिला अफसर शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए बहाल होती हैं.
  5. सरकार महिला अफसरों की सेवा अवधि बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

लोकसभा में केंद्र सरकार ने एक सवाल के जवाब में सेना के तीनों अंगों में महिला अफसरों की नियुक्त के बारे में ये जानकारी दी गई. इन भर्तियों में मेडिकल कोर में की गई भर्तियां शामिल नहीं हैं.

साल 2015 से 2017 तक सेना में महिलाओं की भर्ती का आंकड़ा

सेना के तीनों अंगों में 1 जुलाई, 2018 तक के आंकड़ों के मुताबिक, महिला अफसरों की कुल संख्या इस प्रकार है.

यह भी दिलचस्प है कि जनरल रावत ने ये बयान ऐसे समय में दिय़ा है, जब देश की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन हैं.

पश्चिमी देशों में ये बहस काफी पहले पूरी हो चुकी है कि महिलाओं को सेना में होना चाहिए या नहीं. वहां की सेना में महिलाओं को अरसे से शामिल किया जाता रहा है. हालांकि युद्धक भूमिकाओं में उनके होने को लेकर बहस वहां भी है.

यूरोप के ज्यादातर देश- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा आदि चूंकि लंबे समय से किसी युद्ध में शामिल नहीं हुए हैं, इसलिए वहां महिलाओं की सैन्य भूमिका संबंधी बहस काफी हद तक शास्त्रीय किस्म की है.

अमेरिका अपने महिला सैनिकों को युद्ध के मोर्चे पर भेजता है और वे वहां मारी भी जाती हैं और युद्धबंदी भी बनाई जाती हैं. इससे न तो देश की, न ही अमेरिकी औरतों की इज्जत खराब होती है. भारत में महिलाओं को मोर्चे पर न भेजने का एक बड़ा तर्क ये होता है कि अगर दुश्मन देश में भारतीय महिला सैनिकों को बंदी बना लिया तो क्या होगा?
(फोटो: पीटीआई)

ऐसी युद्धबंदियों के संरक्षण के लिए वियना कनवेंशन है और फिर यौन शोषण की ही बात है, तो युद्ध के दौरान ऐसा तो पुरुषों के साथ भी हो सकता है. ये एक काल्पनिक स्थिति है और ये मानकर चलना चाहिए कि तमाम सेना युद्ध और युद्धबंदियों से संबंधित नियमों का पालन करेंगी.

और फिर ये क्यों भूलें कि महिलाओं के यौन शोषण का खतरा तो देश के अंदर बहुत ही ज्यादा है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबित, 94.6% फीसदी मामलों में तो यौन उत्पीड़न करने वाले कोई रिश्तेदार या परिचित होते हैं.

साथ ही, भारत की सेना वोलंटियर आर्मी है. यानी भारतीय फौज में शामिल होने वाली या वाला हर शख्स अपनी मर्जी से सेना में आता है और इस जोखिम को समझता है कि इस नौकरी के दौरान उसे युद्ध में भेजा जा सकता है. इस दौरान उसकी मौत हो सकती है या उसे युद्धबंदी बनाया जा सकता है.

अगर कोई महिला अपनी मर्जी से, तमाम जोखिम को जानकर, सेना में आती है, तो किसी को भी उसका पिता बनकर उसके लिए फैसला करने का अधिकार नहीं है. अगर महिलाएं तमाम जोखिम को समझकर और तमाम दिक्कतों का सामना करने के लिए तैयार होकर सेना में शामिल होती हैं, तो सेना में हर तरह की भूमिकाएं उनके लिए खोल देनी चाहिए.

भारत सरकार क्रमिक तरीके से उसी दिशा में बढ़ रही है. सेना, नौसेना और वायुसेना के कई ब्रांच में जवान अगर महिला अफसरों का नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं, तो ये मानने का कोई कारण नहीं है कि युद्धक भूमिकाओं में जवान अपनी महिला अफसर का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे.

महिलाएं फाइटर प्लेन से मिसाइल गिरा सकती हैं, तो बंदूक, तोप और टैंक भी चला सकती हैं. भारतीय सेना को दुनियाभर में आ रहे बदलाव के साथ कदम मिलाते हुए अपने तमाम दरवाजे महिलाओं के लिए खोल देने चाहिए.

(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 18 Dec 2018,06:43 PM IST

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