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जब दस जुलाई की रात हमारा आखिरी विकेट गिरा और वर्ल्ड कप से वापसी का टिकट कटा तभी से मन उचाट था. मन में एक बवंडर मचा था. कुछ लिखकर मन हल्का करने के लिए मन कुलबुला रहा था. लेकिन हर ओर यही शोर था कि खेल है, हार जीत तो होती ही है. ये सब सुनकर बैकफुट पर आ गया...लेकिन 11 जुलाई को कुछ हुआ.
दूसरा सेमिफाइनल चल रहा था. पास में टीवी सेट था. क्रिकेट कमेंट्री और स्टेडियम की जानी-पहचानी आवाजें भी आ रही थीं. लेकिन जानबूझकर उधर नजर नहीं कर रहा था। टीवी स्क्रीन पर देखना ऐसा लग रहा था मानो 'बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना.' लेकिन नजर चली ही गई. कहते हैं न मन जो देखना चाहता है कि आंखें वही देखती हैं.
जब ये हुआ तो फैसला किया लिखूंगा और वही लिखूंगा जो मन में चल रहा है. सही या गलत मैं नहीं जानता...बस इतना जानता हूं दुख बांटने से घटता है....तो बांट रहा हूं.
पहली बात टीम इंडिया के बड़े कद के हिसाब से 240 का छोटा सा टार्गेट था. संभल कर खेलते, आतिशबाजी की क्या जरूरत थी?
यहां हमारा सीना छलनी हुआ जा रहा था और वहां हमारे बल्लेबाज ‘जानलेवा’ स्टंट दिखाने में मशगूल थे. ऐसा लग रहा था कि उन्हें मामले की गंभीरता का अंदाजा ही नहीं.
क्या वाकई? पूरा प्रयास किया था? अफगानिस्तान वाला मैच जिसे हम मखमली केक समझ रहे थे, और जिसे आपने खतरनाक खेल में बदल दिया था, तभी से मिडिल ऑर्डर के फ्लॉप शो पर सवाल उठ रहे थे? आपने क्या किया?
धोनी ने 37 डॉट बॉल खेले. विकेट गिर रहे थे तो संभल कर खेलना सही था. लेकिन दुनिया के इतने बड़े बल्लेबाज क्या इनमें से आधी गेंदों पर भी एक-एक रन नहीं निकाल सकते थे? इतने से ही हमारा रविवार बेकार नहीं शानदार हो जाता. आखिर हम 18 रन से ही तो हारे! और सच बोलना, आपको भी उतना ही दुख है, गलतियों का अहसास तो आपको भी है. मान नहीं रहे वो अलग बात है.
दिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है. लेकिन हमारे लिए क्रिकेट धर्म है तो वर्ल्ड कप ‘धर्म युद्ध’ हुआ. ऐसे लड़ रहे थे आप ये युद्ध? युद्ध में हार का मतलब जानते हैं आप?
इतने पर भी हम चुप हैं. मूक 'दर्शक' बने हुए हैं. पाकिस्तानी 'क्रिकेट विधर्मियों' की तरह हमने आपका साथ नहीं छोड़ा, असली क्रिकेट प्रेमियों की तरह साथ डटे हैं. लेकिन इसका ये मतलब न निकालिएगा कि हमें हार का दुख नहीं, हम चुप हैं क्योंकि हमें आपसे प्यार है, मगर इस प्यार का ऐसा सिला?
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