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Year-Ender: PM मोदी के शासन में RSS के लिए 2023 इतना अहम क्यों रहा?

इस साल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में RSS ने परंपरा और खुद को ढालने के बीच नाजुक संतुलन बनाया.

सायंतन घोष
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Year-Ender: PM मोदी के शासन में RSS के लिए 2023 इतना अहम क्यों रहा?</p></div>
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Year-Ender: PM मोदी के शासन में RSS के लिए 2023 इतना अहम क्यों रहा?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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साल 2023 को भारत में गहन वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों के लिए याद किया जाएगा, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रभावशाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने किया.

हमने RSS के अंदर सक्रिय उपायों (Proactive Measures), रणनीतिक राजनीतिक नियुक्तियों और अभूतपूर्व नीति समर्थन का संगम देखा.

अगर हम 2023 पर नजर डालते हैं, तो साफ हो जाता है कि यह साल एक ट्रांसफॉर्मेटिव फेज का प्रतीक है, जहां RSS ने PM मोदी के नेतृत्व में परंपरा और खुद को ढालने के बीच नाजुक संतुलन बनाया है.

UCC के लिए वकालत: लंबे वक्त से RSS की चाहत

समान नागरिक संहिता (UCC) को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अटूट प्रतिबद्धता RSS की सबसे लंबे समय से चली आ रही मांगों में से एक है. यह कन्वर्जेंस एक आदर्श बदलाव को रेखांकित करता है, क्योंकि समान नागरिक संहिता की सदियों पुरानी आकांक्षा भारत के पॉलिटिकल नैरेटिव का केंद्र बिंदु बन गई है. 2023 में UCC के लिए RSS की मुखर वकालत, नरेंद्र मोदी के समर्थन के साथ, राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैचारिक दृढ़ विश्वास के एक दुर्लभ अलाइनमेंट का प्रतीक है.

यह न केवल RSS के एजेंडे को मजबूत करता है बल्कि एक गहरी राजनीतिक जीत का संकेत भी देता है. पीएम मोदी का साफ समर्थन राजनीतिक मानदंडों से प्रस्थान का प्रतीक है और भारत के गवर्नेंस लैंडस्केप पर RSS के एजेंडे के परिवर्तनकारी प्रभाव को रेखांकित करता है.

सांस्कृतिक रूप से एकीकृत भारत के लिए RSS के नजरिए (औपचारिक रूप से 1951 के पुणे रिजॉल्यूशन में व्यक्त किया गया था) में UCC को एक अहम घटक के रूप में प्रमुखता से दिखाया गया था. यह नजरिया हिंदू राष्ट्र की स्थापना के उनके व्यापक लक्ष्य के जैसा था.

बीजेपी ने उत्तराखंड में एक व्यापक विधायी प्रक्रिया के जरिए UCC के लिए एक विधेयक पेश करके अहम कदम उठाया. मौजूदा वक्त में विधेयक राज्य विधानसभा में एक सेलेक्ट कमेटी द्वारा परीक्षण का इंतजार कर रहा है, जो RSS की ऐतिहासिक खोज में एक उल्लेखनीय प्रगति का प्रतीक है.

हिंदी बेल्ट में सोच-समझकर मुख्यमंत्रियों की नियुक्तियां

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हालिया चुनावी जीत के बाद, बीजेपी ने मुख्यमंत्री के नियुक्तियों की एक रणनीतिक और चौंकाने वाली सीरीज बनाई है.

मध्य प्रदेश में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेता मोहन यादव, राजस्थना में एक ब्राह्मण भजन लाल शर्मा, और छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी नेता विष्णु देव साय ने राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यचकित कर दिया है. बीजेपी की सदस्यता से परे, जो चीज इन नेताओं को एक साथ जोड़ती है, वह RSS के साथ उनका मजबूत संबंध है.

लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का तर्क है कि नरेंद्र मोदी की व्यावहारिक और विकास पर आधारित रणनीति RSS द्वारा परंपरागत रूप से कायम रखी गई. अधिक हठधर्मी और सांस्कृतिक रूप से उन्मुख प्राथमिकताओं के साथ सहज रूप से मेल नहीं खा सकती है.

उदाहरण के लिए, संघ परिवार के बड़े पदाधिकारियों में से एक, RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने पिछले साल मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि देश में गरीबी हमारे सामने एक राक्षस की तरह खड़ी है. यह अहम है कि हम इस राक्षस को मारें. 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं. यह एक ऐसा आंकड़ा है, जिससे हमें बहुत दुखी होना चाहिए.

आर्टिकल 370 खत्म करना RSS की दशकों पुरानी मांग

कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने की सुप्रीम कोर्ट की हालिया पुष्टि भारतीय इतिहास में एक अहम क्षण है, जो RSS के लिए एक वैचारिक जीत का प्रतीक है. यह फैसला संघ की लंबे वक्त से चली आ रही मांग से पूरी तरह मेल खाता है और वैचारिक अभिसरण की दिशा में एक ऐतिहासिक यात्रा को मान्य करता है.

अनुच्छेद 370 पर RSS के रुख की जड़ें भारत की आजादी के बाद के परिदृश्य में गहराई तक फैली हुई हैं. महाराजा हरि सिंह के साथ एमएस गोलवलकर (तत्कालीन RSS सरसंघचालक) की बैठक ने इस मुद्दे में संघ की भागीदारी के शुरुआती चरण को चिह्नित किया. इसी तरह, जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिस पार्टी से बाद में बीजेपी का गठन हुआ, वह भी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के समर्थन में थे.

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काशी विश्वनाथ से कृष्ण जन्मभूमि तक

वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर से संबंधित ज्ञानवापी मस्जिद मामले और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मामले में हालिया कानूनी घटनाक्रम ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक अहम पुनर्गठन के लिए मंच तैयार किया है, जिससे हिंदुत्व की एक नई लहर सामने आई है.

हालांकि इन मामलों के नतीजे अनिश्चित बने हुए हैं. ये ऐतिहासिक स्थल अब कानूनी जांच के दायरे में हैं, सार्वजनिक चर्चा में हिंदुत्व कथाओं की बढ़ती प्रमुखता को दर्शाता है.

RSS के लिए, ये कानूनी लड़ाई भारत में हिंदू पहचान पर जोर देने के उनके लंबे समय से चले आ रहे प्रयासों की पुष्टि का प्रतीक है. फैसले की परवाह किए बिना चल रही कानूनी जांच, देश की सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता पर RSS के एजेंडे के स्थायी प्रभाव के प्रमाण के रूप में कार्य करती है.

चुनावी जीत के बजाय हिंदुत्व का उदय, 2023 में RSS के लिए संतुष्टि का सच्चा स्रोत बना हुआ है.

जातिगत समीकरण: परंपरा से आगे बढ़ना

साल 2023 में पारंपरिक रूप से जातिगत पदानुक्रम (caste hierarchies) पर दृढ़ रहने वाले RSS ने एक परिवर्तनकारी बदलाव का संकेत दिया. संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा जाति-आधारित आरक्षण का समर्थन दर्शाता है कि आरक्षण खत्म करने पर उनका रुख बदल रहा है. हालांकि यह सामाजिक समतावाद (social egalitarianism) को एक साथ अपनाना नहीं है, बल्कि दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को शामिल करने के लिए बीजेपी की नई सोच और एक विकसित रणनीति का प्रदर्शन है.

जबकि RSS अभी भी हिंदू समाज के भीतर पदानुक्रमित (Hierarchical) धारणाओं से जुड़ा हुआ है, आरक्षण की जरूरत की स्वीकृति लाखों लोगों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकताओं को पहचानने की दिशा में एक अहम कदम का संकेत है.

यह बदलाव वास्तविक विकास है या सामरिक पैंतरेबाजी...यह देखना अभी बाकी है, लेकिन इसमें जाति के साथ RSS के रिश्ते को नया आकार देने की क्षमता है, खासकर ऐसे वक्त में जब बीजेपी राज्य चुनाव में जीत के बाद अपने जाति समीकरण को फिर से व्यवस्थित कर रही है.

2023 में RSS का रुख बीजेपी के लिए एक संदेश है कि अगर उचित सम्मान, प्रभावशाली पद और वैचारिक समानता रहने पर यह खुद को ढालने का एक संकेत है.

और मोदी की 2024 की अग्नि में एक सच्चाई धधक रही है: वो और RSS एक साथ जुड़े हैं. मोदी को न केवल बाहरी प्रतिद्वंद्वियों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि बीजेपी के अंदर भी संभावित प्रतिद्वंदियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी पकड़ मजबूत करने और 2024 जीतने के लिए उन्हें RSS की जरूरत है. RSS, मोदी को वो वैचारिक आधार, संगठनात्मक ताकत और सामाजिक प्रभाव प्रदान कर सकता है जिसकी उन्हें जरूरत है.

तो, 2023 सिर्फ एक और अध्याय नहीं था बल्कि यह मोदी के आधार को मजबूत करने में RSS का मास्टरक्लास था.

(लेखक सेंट जेवियर्स कॉलेज (autonomous), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं और एक स्तंभकार है. वह @sayantan_gh पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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