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साल 2023 को भारत में गहन वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों के लिए याद किया जाएगा, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रभावशाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने किया.
हमने RSS के अंदर सक्रिय उपायों (Proactive Measures), रणनीतिक राजनीतिक नियुक्तियों और अभूतपूर्व नीति समर्थन का संगम देखा.
अगर हम 2023 पर नजर डालते हैं, तो साफ हो जाता है कि यह साल एक ट्रांसफॉर्मेटिव फेज का प्रतीक है, जहां RSS ने PM मोदी के नेतृत्व में परंपरा और खुद को ढालने के बीच नाजुक संतुलन बनाया है.
समान नागरिक संहिता (UCC) को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अटूट प्रतिबद्धता RSS की सबसे लंबे समय से चली आ रही मांगों में से एक है. यह कन्वर्जेंस एक आदर्श बदलाव को रेखांकित करता है, क्योंकि समान नागरिक संहिता की सदियों पुरानी आकांक्षा भारत के पॉलिटिकल नैरेटिव का केंद्र बिंदु बन गई है. 2023 में UCC के लिए RSS की मुखर वकालत, नरेंद्र मोदी के समर्थन के साथ, राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैचारिक दृढ़ विश्वास के एक दुर्लभ अलाइनमेंट का प्रतीक है.
सांस्कृतिक रूप से एकीकृत भारत के लिए RSS के नजरिए (औपचारिक रूप से 1951 के पुणे रिजॉल्यूशन में व्यक्त किया गया था) में UCC को एक अहम घटक के रूप में प्रमुखता से दिखाया गया था. यह नजरिया हिंदू राष्ट्र की स्थापना के उनके व्यापक लक्ष्य के जैसा था.
बीजेपी ने उत्तराखंड में एक व्यापक विधायी प्रक्रिया के जरिए UCC के लिए एक विधेयक पेश करके अहम कदम उठाया. मौजूदा वक्त में विधेयक राज्य विधानसभा में एक सेलेक्ट कमेटी द्वारा परीक्षण का इंतजार कर रहा है, जो RSS की ऐतिहासिक खोज में एक उल्लेखनीय प्रगति का प्रतीक है.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हालिया चुनावी जीत के बाद, बीजेपी ने मुख्यमंत्री के नियुक्तियों की एक रणनीतिक और चौंकाने वाली सीरीज बनाई है.
लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का तर्क है कि नरेंद्र मोदी की व्यावहारिक और विकास पर आधारित रणनीति RSS द्वारा परंपरागत रूप से कायम रखी गई. अधिक हठधर्मी और सांस्कृतिक रूप से उन्मुख प्राथमिकताओं के साथ सहज रूप से मेल नहीं खा सकती है.
उदाहरण के लिए, संघ परिवार के बड़े पदाधिकारियों में से एक, RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने पिछले साल मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि देश में गरीबी हमारे सामने एक राक्षस की तरह खड़ी है. यह अहम है कि हम इस राक्षस को मारें. 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं. यह एक ऐसा आंकड़ा है, जिससे हमें बहुत दुखी होना चाहिए.
कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने की सुप्रीम कोर्ट की हालिया पुष्टि भारतीय इतिहास में एक अहम क्षण है, जो RSS के लिए एक वैचारिक जीत का प्रतीक है. यह फैसला संघ की लंबे वक्त से चली आ रही मांग से पूरी तरह मेल खाता है और वैचारिक अभिसरण की दिशा में एक ऐतिहासिक यात्रा को मान्य करता है.
अनुच्छेद 370 पर RSS के रुख की जड़ें भारत की आजादी के बाद के परिदृश्य में गहराई तक फैली हुई हैं. महाराजा हरि सिंह के साथ एमएस गोलवलकर (तत्कालीन RSS सरसंघचालक) की बैठक ने इस मुद्दे में संघ की भागीदारी के शुरुआती चरण को चिह्नित किया. इसी तरह, जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिस पार्टी से बाद में बीजेपी का गठन हुआ, वह भी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के समर्थन में थे.
वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर से संबंधित ज्ञानवापी मस्जिद मामले और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मामले में हालिया कानूनी घटनाक्रम ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक अहम पुनर्गठन के लिए मंच तैयार किया है, जिससे हिंदुत्व की एक नई लहर सामने आई है.
हालांकि इन मामलों के नतीजे अनिश्चित बने हुए हैं. ये ऐतिहासिक स्थल अब कानूनी जांच के दायरे में हैं, सार्वजनिक चर्चा में हिंदुत्व कथाओं की बढ़ती प्रमुखता को दर्शाता है.
चुनावी जीत के बजाय हिंदुत्व का उदय, 2023 में RSS के लिए संतुष्टि का सच्चा स्रोत बना हुआ है.
साल 2023 में पारंपरिक रूप से जातिगत पदानुक्रम (caste hierarchies) पर दृढ़ रहने वाले RSS ने एक परिवर्तनकारी बदलाव का संकेत दिया. संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा जाति-आधारित आरक्षण का समर्थन दर्शाता है कि आरक्षण खत्म करने पर उनका रुख बदल रहा है. हालांकि यह सामाजिक समतावाद (social egalitarianism) को एक साथ अपनाना नहीं है, बल्कि दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को शामिल करने के लिए बीजेपी की नई सोच और एक विकसित रणनीति का प्रदर्शन है.
जबकि RSS अभी भी हिंदू समाज के भीतर पदानुक्रमित (Hierarchical) धारणाओं से जुड़ा हुआ है, आरक्षण की जरूरत की स्वीकृति लाखों लोगों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकताओं को पहचानने की दिशा में एक अहम कदम का संकेत है.
2023 में RSS का रुख बीजेपी के लिए एक संदेश है कि अगर उचित सम्मान, प्रभावशाली पद और वैचारिक समानता रहने पर यह खुद को ढालने का एक संकेत है.
और मोदी की 2024 की अग्नि में एक सच्चाई धधक रही है: वो और RSS एक साथ जुड़े हैं. मोदी को न केवल बाहरी प्रतिद्वंद्वियों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि बीजेपी के अंदर भी संभावित प्रतिद्वंदियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी पकड़ मजबूत करने और 2024 जीतने के लिए उन्हें RSS की जरूरत है. RSS, मोदी को वो वैचारिक आधार, संगठनात्मक ताकत और सामाजिक प्रभाव प्रदान कर सकता है जिसकी उन्हें जरूरत है.
तो, 2023 सिर्फ एक और अध्याय नहीं था बल्कि यह मोदी के आधार को मजबूत करने में RSS का मास्टरक्लास था.
(लेखक सेंट जेवियर्स कॉलेज (autonomous), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं और एक स्तंभकार है. वह @sayantan_gh पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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