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आखिर राहुल गांधी को सर्दी लगती क्यों नहीं? यह सोच सोच कर विपक्षी पसीना बहा रहे हैं. शेक्सपियर के जूलियस सीजर नाटक में कैसियस कहता है: ‘हमारा ये सीजर आखिर कौन सा मांस खाता है कि वह इतना महान हुआ जा रहा है?’ फिलहाल तो विपक्ष और खास कर BJP की यही बहुत बड़ी फिक्र बनी हुई है कि राहुल गांधी क्या खाते-पीते हैं कि उन्हें सर्दी ही नहीं लगती. छः डिग्री सेल्सियस में अटल जी को श्रद्धांजलि देने पहुंच गए.
पांव में चप्पल भी नहीं, और वही सफेद टी शर्ट जो उन्होंने पदयात्रा की शुरुआत से धारण की हुई है वही पहन कर. क्या वह ऐसी किसी खास चीज को ग्रहण करते हैं, भोजन में या किसी तरल या वाष्प के रूप में जो उन्हें भीतर से गर्मी का अहसास दिलाता है? यह सवाल भी किसी बीजेपी नेता ने ही पूछा है. उसने तो यहां तक कह दिया कि मेडिकल जांच करवाई जाए, तो सब सामने आ जायेगा. अब जरा सोचिये, लोग क्या क्या सोच लेते हैं. इधर कांग्रेस राहुल गांधी को तपस्वी, ध्यानी, महात्मा, योद्धा और न जाने क्या का कहे जा रही है. पर विवाद के केंद्र में टी शर्ट का तिलिस्म कायम है.
एनडीटीवी के एक पत्रकार ने भी बहती टी शर्ट, मतलब बहती गंगा में हाथ धोते हुए जयराम रमेश से पूछ लिया कि का राहुल गांधी कोई मेडिटेशन वगैरह तो नहीं करते. उनका अर्थ ये था जब शिमला की ठंड में जहां सभी लबादा ओढ़े हुए थे, वहां भी जनाब उसी सफेद टी शर्ट में? जयराम रमेश हड़बड़ी में कुछ ऐसा बोल गए जो हास्यास्पद भी था और थोडा सस्ता भी.
अब मोटी चमड़ी का इंसान होने का अर्थ है ढीठ या असंवेदनशील होना. यही इसका सामान्य अर्थ है. रमेश ने अपने ही नेता को मोटी चमड़ी वाला या थिक स्किंड कह डाला और किसी ने उनका ध्यान भी इस ओर नहीं बंटाया, यह बड़े ताज्जुब की बात थी. कुछ लोग तो उस घड़ी की प्रतीक्षा में हैं जब राहुल सौरभ गांगुली की स्टाइल में टी शर्ट उतार कर चारों ओर घुमाएंगे और फिर किसी रॉक स्टार की तरह उसे अपने फैन्स के बीच फेंकेगे. उसकी नीलामी से ही पदयात्रा का खर्च निकल आये शायद. पर नहीं, ये थोडा ज्यादा हो गया, क्योंकि पदयात्रा पर तो बताते हैं, रोज एक करोड़ रूपये खर्च हो रहे हैं. खबर तो यह भी है कि खुफिया विभाग के कुछ लोग राहुल गांधी के साथ चल रहे कंटेनर/ट्रक में घुसने की कोशिश में हैं.
मामला वही टी शर्ट का है. एक बन्दा आखिर इतनी अधिक, इतनी अधिक ठंड में बगैर ऊनी कपड़े पहने कैसे चल सकता है. क्या भीतर कोई बहुत टाइट थर्मल पहना हुआ है, या फिर वो किसी ऐसी जड़ी या बूटी का सेवन कर रहे हैं, जो उनके बदन के तापमान को ऊपर रखती है. हिमाचल में कोई जड़ी तो नहीं मिली जीत के साथ? या इलाही ये माजरा क्या है!
पत्रकार महोदय मेडिटेशन के बारे में और थोडा रिसर्च करते तो उन्हें पता चलता कि तिब्बती ध्यान विधियों में एक तुम्मो नाम की विधि भी है. इस विधि में ध्यानी सन्यासी शून्य से नीचे तापमान वाली जगह पर बहुत ही कम कपडे पहन कर बैठ जाता है, उसे बर्फीले पानी में भींगी हुई चादर भी ओढा दी जाती है, एक के बाद एक, तीन चादरें और वह शांत बैठा रहता है. ठंडी चादरें उसके बदन पर ही सूख जाया करती हैं. हो सकता है जल्दी ही लोग यह भी पूछें कि क्या राहुल ने तुम्मो ध्यान सीखा है.
खुद पूछें और कह दें: पूछता है भारत! वैसे के बड़ा मशहूर शेर है जो शायद पंडित नेहरू को भी बहुत पसंद था, और दुर्भाग्य से मुझे शायर का नाम नहीं मिल पा रहा. शेर इस तरह है: तन की उरयानी से बेहतर नहीं लिबास कोई, ये वो जामा है जिसका नहीं सीधा उल्टा. राहुल की सफेद टी शर्ट भी एक तरह से ऐसा लिबास है जिसकी सफेदी के कारण उसका सीधा उल्टा भी किसी को करीब से देख कर ही समझ आयेगा. हो सकता है राहुल गांधी को भी ये शेर पसंद हो.
टी शर्ट चल रही है तब तक चलाएंगे. इसका अर्थ है कि टी शर्ट की भी एक उम्र है. उसकी उम्र बीतेगी तब राहुल उस वक्त के हिसाब से वही पहनेंगे जो उन्हें पहनना चाहिए. ये टी शर्ट एक जवाब भी है पीएम मोदी के परिधान प्रेम का. उन्हें कपड़े बदलना अच्छा लगता है और सबको राहुल से ये शिकायत है कि ये कुछ नहीं बदले. पूरी यात्रा में वही सफेद टी शर्ट. एक तरफ कई बार कपड़े बदलता बड़ा नेता, और दूसरी तरफ एक ही रंग की टी शर्ट में पैदल चलता नेता अपने कपड़े के जरिये अपना बयान दें रहा है. कई लोग गोल मेज सम्मलेन में लन्दन गए गांधी जी से भी तुलना कर रहे हैं राहुल गांधी की.
गांधी जी ब्रिटिश सम्राट से मिलने अपनी धोती और चादर में ही गए थे और जब सम्राट ने पूछा कि क्या उन्हें ठंड नहीं लग रही तो गांधी जी ने कहा कि बादशाह सलामत ने हमारे हिस्से के भी कपड़े जो पहन लिए हैं! गांधी जी ने अपने कपड़ों को लेकर ये भी कहा था कि उनके वस्त्र गरीब, गांव के रहने वाले लोगों की दशा का प्रतीक हैं. वे वही ओढ़ते बिछाते हैं जो उनकी देश वाले.
फिलहाल कांग्रेस के लिए बेहतर होगा कि वह राहुल गांधी की तुलना गांधी जी से न करें. राहुल गांधी ने खुद भी राजस्थान के दौसा में इसके लिए मनाही कर रखी है और कांग्रेस को ये भी याद रखना होगा कि यदि गांधी जी की बातें पूरी तरह मानते तो जिस पार्टी में उनकी जिन्दगी बीत रही है, वह भी नहीं होती, क्योंकि गांधी जी ने आजादी मिलने के बाद कांग्रेस को भंग करने की हिदायत दी थी! अभी हाड़ कंपाती सर्दी में टी शर्ट का मुद्दा गर्म है. देश में अभी बाकी कुछ पीछे चल रहा है. सभी दल जी जान से टी शर्ट पर शोध करें, चर्चा, विवाद, संवाद करें. हो सकता है इसमें बहुत कुछ निकल कर आये!
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