advertisement
श्री श्री केजरीवाल जी,
एक ‘श्री’ से भी काम चल सकता था पर लगता है आजकल दो लगाने से बड़ी से बड़ी समस्यायें सुलझाने की ताकत आ जाती है तो फिलहाल दो ही रखिए. हां तो, मुद्दे पे आते हैं. पता चला है कि आप 40 सेवाओं को दिल्लीवालों के घर के दरवाजे तक पहुंचाने का इरादा कर चुके हैं. अब इरादा किया है तो पूरा भी कर ही लेंगे. भले, बीजेपी से आपकी दूरी है लेकिन इरादों में आप 'अटल' हैं!
वैसे कुछ इरादे और किए थे आपने. उन्हें मेनिफेस्टो की शक्ल में ढाला भी था. सबने ताली भी बजाई थी. झाड़ू पर बटन भी दबाया. सरकार भी बनाई. फिर...फिर काफी कुछ भूल गए आप. बड़े शहरों के घरों में होता है स्टोर-रूम. छोटे शहरों में कमरे में अभी भी होता है 'टांड़'. आपने स्टोर-रूम या टांड़, जहां कहीं भी पार्टी का घोषणापत्र रखा हो, उसे निकाल कर झाड़पोंछ कर, पलट कर देख लीजिए जरा. बहुत सारे इरादे याद आ जाएंगे. जो तब, वादे कहलाते थे.
ये सब इसलिए भी याद दिलाया जा रहा है कि आपसे 40 सेवाओं वाली लिस्ट में कुछ और सेवाएं जुड़वानी हैं.
बड़ा बिल चुकाना पड़ रहा है, कसम से. मतलब, टेलीकॉम बाजार में छिड़ी जंग के बावजूद. ये भी 40 की फेहरिस्त में जोड़कर घर तक पहुंचाने की कृपा करेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी आपकी.
दिल्ली वाले तो हर तरफ से गए. न उनके 15 लाख मिले न आपके 15 लाख सीसीटीवी कहीं दिखाई देते हैं. कानून आपके पास नहीं है, ये बात इतनी बार बताई गई है कि आप किसी दिल्ली वाले बच्चे को सोते में जगाकर भी पूछ लेंगे न तो उठते ही कहेगा...नहीं जी नहीं, कानून तो केंद्र के पास है. लेकिन वादा तो याद है न आपको. दफ्तर से घर लौटते समय रोज भाई लोग आसपास के खंभे पे दीवारों पर झांक कर देख लेते हैं. इस उम्मीद में कि कोई चमचमाता, गोल-गोल घूमता, मोहल्ले पर नजर रखता सीसीटीवी कैमरा लगा होगा. लेकिन कहां जनाब? महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर आपको अब भी चिंता और डर है तो लगवा दीजिए न ये वाले 15 लाख!
स्ट्रीट लाइट से जगमगाने का भी था वादा. इस जरूरी सेवा को भी घर तक पहुंचा दीजिए न. हां, हालात पहले से बेहतर लगते हैं लेकिन अब भी न जाने कितने इलाके हैं जहां अंधेरे का आलम है. अब अंधेरा है तो अंधेरगर्दी भी होगी.
दिल्ली में धुंध ने जान निकाल दी है. अभी कुछ राहत मिली है लेकिन कब तक रहेगी पता नहीं. एक अमेरिकी पर्यावरण एजेंसी तो कह रही है, कई महीने तक रहेगी दिक्कत. खैर, अमेरिकियों पर तो मुझे भी ज्यादा यकीन कभी नहीं रहा. जाने देते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI पंजाबी बाग से लेकर आरके पुरम तक अब भी आंकड़ा 185 और उससे ऊपर ही बना हुआ है यानी सेहत के लिए खराब. अंग्रेजी में Unhealthy.
तो सर, एक सिलिंडर भिजवा दीजिए न, ताजा हवा का. सांस लेने लायक हवा का. प्रॉमिस, एक सिलिंडर एक हफ्ता चला लेंगे. वैसे ये आपके मेनिफेस्टो का हिस्सा नहीं है लेकिन तब तो हवा आपके हक में थी...अब खराब है. कर भी क्या सकते हैं, हवा बदलती रहती है!
तो जनाब, आपसे गुजारिश है कि 40 सेवाओं में ये छिटपुट सेवाएं भी जोड़ दी जाएं और हम सबके घर तक डिलिवर कर दी जाएं!
हर आम दिल्ली वाला
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)