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होलिका दहन होली उत्सव की पहली संध्या को मनाया जाता है. होलिका दहन के अगले दिन रंगवाली होली का उत्सव मनाते हैं. रंगो के इस पावन त्योहार का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है. इस साल होली 10 मार्च को है. इसलिए होलिका दहन 9 मार्च को किया जाएगा. ऐसी मान्यता है कि होली की परिक्रमा करने से रोग, परेशानी और कष्ट दूर होते हैं.
होलिका दहन के दौरान लोग आहूति भी देते हैं. इसके लिए आप नारियल, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का थोड़ा सा हिस्सा और उड़द, गेहूं, मसूर, चना, चावल या जौ भी रख सकते हैं.
संध्याकाल में- 06 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक
भद्रा पुंछ - सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक
भद्रा मुख : सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक
(सोर्स-https://www.drikpanchang.com/ )
होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में होलिका दहन के स्थान पर जाकर पवित्र जल से स्थान को साफ कर लें. इसके बाद अग्नि में उपले और लकड़ी डालकर पूजा करें. इसके बाद कम से कम तीन या सात बार होलिका की परिक्रमा करें. कच्चे सूत के धागे को होलिका में लपेटें. होलिका पर हल्दी से टीका लगाएं. होलिका स्थान पर अबीर और गुलाल से रंगोली बनाएं. ऐसी मान्यता है कि किसान अपनी पहली फसल भगवान को अर्पित करते हैं. इसके बाद ही किसान फसल की कटाई करते हैं.
हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया था कि देवताओं की कोई पूजा नहीं करेगा. धरती पर सिर्फ उसकी पूजा होगी. लेकिन भक्त प्रहलाद ने पिता के आदेश को नहीं माना और भगवान विष्णु की भक्ति लीन में रहा. इस बात से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद की कई बार जान लेने की कोशिश की. अपनी योजना में सफल ना होने पाने के कारण उसने बहन होलिका की मदद ली. होलिका को वरदान मिला था, वह अग्नि से नहीं जलेगी.
अपने भाई की साजिश को पूरा करने के लिए होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान ने भक्त प्रहलाद की सहायता की. इस आग में होलिका तो जल गई और भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ. तब से होलिका में सभी द्वेष भाव और पापों को जलाने का संदेश दिया जाता है.
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