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पूरे भारत में जन्माष्टमी के दिन निकाली जाने वाली झांकियों में हमें राधाकृष्ण के रूप धरे कलाकार दिखते हैं. मंदिरों में कृष्ण और राधा ही जोड़े के रूप में दिखाई देते हैं. आश्चर्य होता है कि इस देश में प्रेम संबंधों को सहजता से स्वीकार न करने वाले लोग राधाकृष्ण की जोड़ी को लेकर इतने उदार कैसे हो जाते हैं. राम के साथ सीता की जोड़ी, विष्णु के साथ लक्ष्मी की और शिव के साथ पार्वती की मूर्तियां होती हैं. लेकिन कृष्ण के साथ उनकी प्रेमिका राधा. राधा और कृष्ण की प्रेमलीला इस देश में मान्य है. इन लीलाओं पर इस देश में गीत हैं, भजन हैं, नृत्य नाटिकाएं हैं. तमाम आख्यान हैं.
कृष्ण प्रेमी हैं. हमारे धार्मिक आख्यानों में राधा के साथ कृष्ण की प्रेम लीलाओं का स्थूल रूप दिखाया जाता है. मसलन एक प्रेमी के तौर पर राधा से प्रेम निवेदन. उनका पीछा करना. उन्हें संदेश देना. उनसे सरोवर के किनारे मिलना. उपवन में उनका आलिंगन करना. भारत में राधाकृष्ण भक्तों को उनकी इन प्रेम लीलाओं में एक खास रस मिलता है. कृष्ण ने राधा से जो प्रेम किया वह इहलौकिक था. दिखता था.
लेकिन कृष्ण ने एक और स्त्री से प्रेम किया. गहरे किया. लेकिन वह दिखता नहीं है. न दिखने का मतलब यह नहीं कि कृष्ण ने चोरी-छिपे यह काम किया. न दिखने वाले इस प्रेम का आशय उस प्लेटोनिक प्रेम से है, जो स्त्री-पुरुषों के दिल में पलता है. दैहिक नहीं दैवीय प्रेम. सखा और सखी का प्रेम. सखा और सखी का यह प्रेम कृष्ण और द्रौपदी के संबंध में दिखता है. यह प्रेम इतना गहरा, इतना एकाकार है कि द्रौपदी का एक नाम कृष्णा भी है.
कुछ अरसा पहले बीजेपी नेता राम माधव ने एक बयान दिया था कि द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी थी. लेकिन सुनती सिर्फ कृष्ण की थी. वह फेमनिस्ट थी. सवाल यह है कि क्या कृष्ण सिर्फ द्रौपदी की सुनती थी. यह हो सकता है. क्योंकि सवाल उठता है कि जब उनके पति उसे जुए में दांव पर लगा चुके थे और उसे भरी सभा में निर्वस्त्र किया जा रहा था तो कृष्ण ने ही उसकी लाज बचाई थी. उस वक्त वह कृष्ण से ही लाज बचाने की गुहार लगा रही थी. क्योंकि जिन पतियों पर उनके संरक्षण का जिम्मा था, वे अपने कर्तव्य में फेल हो चुके थे.
द्रौपदी जिसे कृष्णा कहा जाता है, कृष्ण से गहरे प्रेम करती थी. द्रौपदी ने अपने जीवन का सबसे अंतरंग संबंध कृष्ण के साथ जिया. यह दैहिक संबंध नहीं था. यह प्रेम की वह भाव भूमि थी, जिस पर कृष्ण और द्रौपदी एक धरातल पर खड़े थे. न तो कोई ऊपर और न कोई नीचे. यह दो दोस्तों का अंतरंग संबंध था. द्रौपदी ने अपने सारे अहम फैसलों में कृष्ण को शामिल किया. पांडवों को कई बार द्रौपदी के विचारों के बारे में कृष्ण के जरिये पता चलता था.
दरअसल द्रौपदी महाभारत की महिलाओं में सबसे प्रखर है. वह सबसे ज्यादा सवाल करती है. द्रौपदी एक प्रश्न पूछती नारी है. कृष्ण स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर द्रौपदी के इस नजरिये के सबसे बड़े समर्थक हैं. कृष्ण और द्रौपदी के के बीच संबंध एक बराबरी का संबंध हैं. जहां महिला और पुरुष में जेंडर भेद की कोई दीवार नहीं है. प्रखर समाजवादी विचारक और नेता राम मनोहर लोहिया ने कृष्ण और द्रौपदी के साहचर्य को एक महान संबंध के तौर पर परिभाषित किया था. दोनों के बीच दोस्ती को वह स्त्री-पुरुष के बीच दोस्ती का आदर्श रूप मानते थे.
कृष्ण और द्रौपदी का संबंध एक महिला और एक पुरुष. अराध्य और भक्त के साथ एक प्रेमी-प्रेमिका और सखा-सखी का है जो खुला का संबंध है जो स्वतंत्र है बराबरी का है और लोकतांत्रिक है. द्रौपदी और कृष्ण ने जो संबंध जिया, उसकी सिर्फ मिसाल ही दी जा सकती है. आधुनिक दौर में द्रौपदी और कृष्ण के प्रेम को विचार करने और गौर करने की ज्यादा जरूरत है. क्या स्त्री और पुरुष के बीच आज कृष्ण और द्रौपदी जैसा संबंध नहीं हो सकता.
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