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Mahavir Jayanti 2023: जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव इस साल 3 अप्रैल 2023 को मनाया जाएगा. कई लोगो को कंफ्यूजन हैं कि महावीर जयंती 4 अप्रैल के दिन मनाई जाएगी ऐसे में बता दें इस साल भगवान महावीर की जयंती 3 अप्रैल को मनाई जएगी. इस दिन जैन मंदिरों में भगवान महावीर का अभिषेक, विशेष पूजा-अर्चना व लाडूं चढ़ाया जाता है और इसके बाद अलग-अलग शहरों में भगवान महावीर स्वामी (Mahavir Swami) की शोभायात्रा निकाली जाती है.
महावीर स्वामी का जन्म बिहार के वैशाली कुंड ग्राम में हुआ था. भगवान महावीर को बचपन में 'वर्धमान' नाम से जाना जाता था. इनके पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था.
भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताए, जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं, यह सिद्धांत हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह है.
महावीर स्वामी ने जीवन में कई उपदेश दिए हैं. उनका मानना था कि मनुष्य को कभी भी असत्य के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए और जितने भी जीव इस दुनिया में हैं, उन पर कभी भी हिंसा नहीं करनी चाहिए. हम आपके लिए भगवान महावीर की आरती (Aarti Mahavir Swami) और चालीसा (Shree Mahavir Chalisa) लेकर आए हैं, जिसे आप पढ़ सकते हैं.
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो
ॐ जय महावीर प्रभो
सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी
बाल ब्रह्मचारी व्रत, पाल्यो तपधारी
ॐ जय महावीर प्रभो
आतम ज्ञान विरागी, समदृष्टि धारी
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी
ॐ जय महावीर प्रभो
जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो
हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परचार्यो
ॐ जय महावीर प्रभो
इह विधि चाँदनपुर में, अतिशय दर्शायो
ग्वाल मनोरथ पूर्यो, दूध गाय पायो
ॐ जय महावीर प्रभो
अमरचंद को सपना, तुमने प्रभु दीना
मंदिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना
ॐ जय महावीर प्रभो
जयपुर-नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी
एक ग्राम तिन दीनो, सेवा-हित यह भी
ॐ जय महावीर प्रभो
जो कोर्इ तेरे दर पर, इच्छा कर आवे
होय मनोरथ-पूरण, संकट मिट जावे
ॐ जय महावीर प्रभो
निशि-दिन प्रभु-मंदिर में, जगमग-ज्योति जरे
हम सेवक चरणों में, आनंद-मोद धरें
ॐ जय महावीर प्रभो
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो
ॐ जय महावीर प्रभो
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो
ॐ जय महावीर प्रभो
शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार।
जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी।
वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा।
शांति छवि और मोहनी मूरत, शान हँसीली सोहनी सूरत।
तुमने वेश दिगम्बर धारा, कर्म-शत्रु भी तुम से हारा।
क्रोध मान अरु लोभ भगाया, महा-मोह तुमसे डर खाया।
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता।
तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीर रण राग तू हितोपदेश।
तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा।
भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें।
महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावे।
काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी।
ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला।
अग्नि दावानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो।
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे।
हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने कीना निस्तारा।
जनम लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब प्रजा सगरी।
सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला के आँखों के तारे।
छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी।
पंचम काल महा-दुखदाई, चाँदनपुर महिमा दिखलाई।
टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया।
सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुँचा एक फावड़ा लेके।
सारा टीला खोद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया।
जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा।
ठंडा हुआ तोप का गोला, तब सब ने जयकारा बोला।
मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया।
बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने को ठहराई।
तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी।
ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया।
पहिले दिन बैशाख बदी के, रथ जाता है तीर नदी के।
मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते।
स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का बहु मान बढ़ाया।
हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही।
मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर।
तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ।
चालीसे को चन्द्र बनावे, बीर प्रभु को शीश नवावे।
सोरठा
नित चालीसहि बार, बाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने।।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।
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