Home Zindagani बिहार की ‘कुर्ताफाड़ होली’ के बारे में सुना है आपने?
बिहार की ‘कुर्ताफाड़ होली’ के बारे में सुना है आपने?
होली खेलने के तौर-तरीके अमूमन एक जैसे ही होते हैं, लेकिन बिहार की ‘कुर्ताफाड़ होली’ अपने-आप में बेहद खास है.
अमरेश सौरभ
जिंदगानी
Updated:
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होली खेलने वाली टोलियों में जोगीरा सारारारारा से लेकर रंग बरसे भीगे तक... सब चलता है
(फोटो: iStock)
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वैसे तो होली आने के पहले से ही हर किसी का मन होलियाने लगता है, लेकिन होली के दिन रंग-गुलाल 'खेलने' का उन्माद चरम पर होता है. ज्यादातर जगहों पर होली के तौर-तरीकों में थोड़ा अंतर पाया जाता है. बिहार की होली की बात भी कुछ जुदा है. 'कुर्ताफाड़' होली वाला तत्व इसे बेहद खास बना देता है.
बिहार की होली की खास-खास बातों पर डालिए एक नजर:
शहरों की होली की खासियत
सुबह-सुबह पक्के रंगों से होली खेली जाती है
धूल-मिट्टी का इस्तेमाल इच्छा या उपलब्धता के आधार पर
आम तौर पर परिचितों को ही रंग लगाए जाते हैं
अनजान राहगीरों को बख्शने का चलन, पर इसकी गारंटी नहीं
'कुर्ताफाड़' होली सिर्फ शाम ढलने तक ही
नए कपड़े फाड़ने पर रोक, कपड़े बदलकर आने का पूरा टाइम दिया जाता है
परिचित महिलाओं को लिमिट में रहकर अबीर लगाए जा सकते हैं(फोटो: iStock)
'कुर्ताफाड़' होली के नियम और शर्तें
आम तौर पर ऐसी होली युवकों के बीच ही होती है
ग्रुप के लोग आपस में ही एक-दूसरे के कुर्ते फाड़ते हैं
कुर्ता फाड़ने के लिए किसी की इजाजत नहीं लेनी होती, लेकिन ये होता है मूड देखकर
ज्यादातर लोग बुरा नहीं मानता, क्योंकि यही 'चलन में' होता है
कुर्ता या शर्ट फटने की आशंका से लोग सुबह पुराने कपड़ों में ही निकलते हैं
कुर्ता फाड़ते वक्त सामान्य शिष्टाचार का भी खयाल रखा जाता
फटे कपड़ों में टोली बनाकर गली-सड़कों पर घूमने से होता है फकीरी और मस्ती का अहसास
शाम के वक्त क्या खास
शाम को एक-दूसरे को अबीर लगाने का चलन
बड़ों के पैर पर अबीर डालकर आशीर्वाद लिए जाते हैं
बच्चों और समान उम्र के लोगों को चेहरे पर अबीर लगाए जाते हैं
परिचित महिलाओं को लिमिट में रहकर अबीर लगाए जा सकते हैं
अश्लील भोजपुरी गीतों पर इस दिन कोई रोक नहीं होती(फोटो: iStock)
गांवों की होली की खासियत
गांवों में ज्यादातर सुबह से लेकर दोपहर तक धूल-मिट्टी, गोबर आदि एक-दूसरे लगाए जाते हैं
दोपहर में स्नान के बाद भी रंग और अबीर साथ-साथ लगाए जाते हैं
नए कपड़ों पर भी पक्के रंग होली खेलने का चलन
फगुआ यानी होली के परंपरागत गानों की धूम
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गाने-बजाने में क्या-क्या
होली खेलने निकली टोलियों में ढोल-झाल पर गीत-संगीत
जोगीरा सारारारा से लेकर रंग बरसे भीगे तक... सब कुछ
भक्तिभाव वाले गीतों में:
अवध में राम खेले होली
होली खेले रघुबीरा
अश्लील भोजपुरी गीतों पर इस दिन कोई रोक नहीं
अश्लील गीतों के नमूने:
चल गे छोरी गंगा नहाए
होली में बुढ़वो देवर लागे
अमूमन दोपहर में स्नान के बाद भी रंग और अबीर साथ-साथ लगाए जाते हैं(फोटो: iStock)
खाने में क्या-क्या खास
होलिका दहन की रात में बने चावल-कढ़ी आदि होली के सुबह भी खाने का चलन
मान्यता है कि ये खाने से सालोंभर मन-मिजाज में तरावट बनी रहती है
सुबह से लेकर रात तक पूआ-पूड़ी, दहीबड़े, छोले आदि व्यंजन
दहीबड़े पर इमली की चटनी के साथ काले नमक का विशेष इस्तेमाल
पीने में क्या-क्या
कुछ जगहों में भांग से बनी ठंढई की ज्यादा डिमांड
चाय-कॉफी, कोल्डड्रिंक, ठंडा पानी, और क्या...
वैधानिक चेतावनी: बिहार में शराब पूरी तरह बैन है
तो प्रेम से बोलिए, बुरा न मानो होली है...
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