Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagani Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 मकर संक्रांति: पानीपत के युद्ध में मराठों की हार की दास्तान

मकर संक्रांति: पानीपत के युद्ध में मराठों की हार की दास्तान

मकर संक्रांति के दिन पानीपत के में हजारों मराठा मारे गए थे, अफगान सेना ने बच्चों व औरतों को गुलाम बनाया था.

कीर्ति फडतारे पांडेय
जिंदगानी
Updated:
अहमद शाह अब्दाली ने अफगान कबाइलियों का नेतृत्व किया. उसने उन्हें इस झूठ के नाम पर बरगलाकर अपनी सेना में शामिल किया, कि उसकी मुहिम काफिरों के खिलाफ जिहाद है. 
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अहमद शाह अब्दाली ने अफगान कबाइलियों का नेतृत्व किया. उसने उन्हें इस झूठ के नाम पर बरगलाकर अपनी सेना में शामिल किया, कि उसकी मुहिम काफिरों के खिलाफ जिहाद है. 
(फोटो: Sikhnet)

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मकर संक्रांति का त्योहार जहां देश भर में तिल-गुड़ की मिठास, खिचड़ी के स्वाद, पूजा-पाठ और पवित्र स्नान जैसे तौर-तरीकों के साथ मनाया जाता हैं, वहीं महाराष्ट्र के लोगों के लिए मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जिसमें मिठास तो है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा इतिहास में दर्ज एक ऐसी कड़वी घटना का दर्द है, जिसे याद कर मराठी समुदाय आज भी भावविभोर हो जाता है. मकर संक्रांति के ही दिन पानीपत के तीसरे युद्ध में हजारों मराठा मारे गए थे, और अफगान सेना ने बच्चों और औरतों को गुलाम बनाया था.

14 जनवरी 1761, पानीपत, हरियाणा

भारत के इतिहास में यह तारीख मकर संक्रांति के त्योहार को सुनहरे अक्षरों में दर्ज कर देती, अगर इस दिन मराठा सेना ने अफगान कबाइली योद्धा अहमद शाह अब्दाली ( जिसे दुर्रानी भी कहा जाता था ) की दुश्मन सेना को हरा दिया होता. लेकिन इसके बजाय, मराठाओं के लिए यह एक नरसंहार और बड़े नुकसान का दिन बन गया.

पानीपत के ऐतिहासिक तीसरे युद्ध की एक पेंटिंग (फोटो: विकिपीडिया)

'डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं'

मशहूर मराठी किताब 'पानीपत' के लेखक विश्वास पाटिल ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि चूंकि युद्ध का वह समय दक्षिणायन का समय था, इसलिए सूर्य की किरणें सीधे भूख से बेहाल मराठा सैनिकों और उनके घोड़ों की आंखों पर पड़ रही थीं. दक्षिणायन मकर संक्रांति पर होने वाली एक खगोलीय घटना है, जिसमें सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. अफसोस की बात है, इस दिन मराठा सेना का विनाश हो गया.

मराठों में किसान और व्यापारी वर्ग के लोग शामिल थे, जो आमतौर पर मानसून और दशहरा (सर्दियों के आने से पहले) तक खेती करते थे. उन्होंने अपने तलवार की धार को तेज किया था, और मातृभूमि की रक्षा के लिए जंग लड़ने निकले पड़े.

इस बीच, अब्दाली ने जिहाद के नाम पर एक बड़ी सेना को इकठ्ठा कर लिया था. उस दिन दोनों सेनाओं में करीब छह घंटे तक युद्ध चला और इसमें एक लाख से ज्यादा (लगभग आधे ) सैनिकों की मृत्यु हो गई.

यहीं से मराठी कहावत- "डेढ़ लाख बांगड्या फुटल्या" या हिंदी में "डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं" की उत्पत्ति हुई, जिसका शाब्दिक अर्थ है कि उस दिन जंग में मारे गए सैनिकों की मौत का मातम मनाने के लिए डेढ़ लाख चूड़ियां टूटीं थीं.

एक मराठा सैनिक का स्केच जो पानीपत में लड़ने के लिए गया था. इतिहास दर्शाता है कि उत्तर भारत के ठंड में पतले कपड़े पहने सैनिकों को कितनी दिक्कतें हुई होंगी (फोटो: विकिपीडिया)
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पानीपत की हार से भाषा को हुआ फायदा

  • चूंकि यह संक्रांति का दिन था, जो मराठाओं के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ बनकर टूटा, इसलिए इस घटना के बाद से किसी व्यक्ति पर होने वाले किसी भी बड़े आपदा को "संक्रांत कोसल्लानी" कहा जाने लगा, मराठी में जिसका मतलब है कि संक्रांति उसके/उनके ऊपर आपदा की तरह टूट पड़ा.
  • हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि मराठी संस्कृति के मुताबिक, संक्रांति के दिन काले रंग के कपड़े पहने जाते हैं, क्योंकि इस दिन सर्दी के चरम अवस्था पर सूरज की गर्मी को अवशोषित करने का यह एक बेहतर माध्यम होता है. एक और विचारधारा के तहत यह भी तर्क दिया जाता है कि इस दिन 'अशुभ' काला रंग पहनने से बुराइयां, नकारात्मकता और विपदाएं उनसे दूर होंगी, क्योंकि 250 साल से भी ज्यादा समय पहले मकर संक्रांति के दिन ही मराठियों पर विपदाओं का कहर टूटा था.
  • वॉटरलू ऑफ इंडिया: पानीपत में शक्तिशाली और अपराजित मराठों का भारी नुकसान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है. पानीपत की तीसरी जंग 'वॉटरलू' के युद्ध का भारतीय समकक्ष माना जाता है. "पानीपत ज्हाले" कहावत का मतलब है - वो स्थिति, जिसमें एक बड़ा नुकसान हुआ है.
  • ब्रिटिश राज के लिए मार्ग प्रशस्त: उस दौर में मराठा फौज शायद केवल उन दो असली भारतीय सैन्य शक्तियों में से एक थी, जो ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने में सक्षम थी. लेकिन पानीपत की हार की वजह से मराठा फौज की ताकत कमजोर हो गयी, और 50 साल बाद एंग्लो-मराठा युद्धों में ब्रिटिश फौज को गंभीर चुनौती नहीं दे पायी. उस समय के ब्रिटिश इतिहासकारों सहित कई इतिहासकारों ने तर्क दिया है कि अगर पानीपत में मराठा शक्ति कमजोर नहीं हुई होती, तो ब्रिटिशों को भारत में कभी भी मजबूती से पांव जमाने का मौका नहीं मिल पाता.
  • रुडयार्ड किपलिंग की कविता "With Scindia To Delhi" के लिए प्रेरणा: हालांकि इस युद्ध को दोनों पक्षों के लिए वीरता और पराक्रम के दृश्य के रूप में भी याद किया जाता है. जंग के बाद मराठा सेना के सेनापति सदाशिव भाऊ का मृत शरीर लगभग 20 मृत अफगान सैनिकों के बीच में मिला था. संताजी वाघ के मृत शरीर में चालीस से ज्यादा घाव पाए गए. पेशवा के वारिसों (सदाशिव भाऊ, पेशवा बाजीराव-प्रथम के भतीजे और विश्वास, पेशवा बाजीराव-प्रथम और काशीबाई के पोते) की बहादुरी को अफगानों द्वारा भी स्वीकार किया गया था. यशवंतराव पवार भी बेहद पराक्रम से लड़े और बहुत से अफगानों की हत्या की. जंग में उन्होंने अब्दाली के वजीर के पोते अताईखान के हाथी के ऊपर चढ़कर उसे मार डाला था.
  • "आमचा विश्वास पानीपतात गेला": इस मुहावरे में 'विश्वास' शब्द बाजीराव के 17 वर्षीय बहादुर पोते और भरोसे, दोनों अर्थों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि विश्वास महाभारत के बहादुर योद्धा अभिमन्यु की तरह युद्ध में मारा गया था, और चूंकि मराठों की हार के बाद उनका यह विश्वास भी टूट गया था कि मराठों को कभी हराया नहीं जा सकता, इसलिए इस मराठी कहावत के मुताबिक: 1761 की लड़ाई में हमारा विश्वास मारा गया.
पानीपत की तीसरी लड़ाई से पहले मराठा साम्राज्य का विस्तार (फोटो: विकिपीडिया)

अंदरूनी लोग बनाम बाहरी आक्रमणकारी, हिंदू बनाम मुसलमान नहीं

तोपखाने और तोप-युद्ध में महारथ रखने वाले बहादुर योद्धा इब्राहिम खां गार्दी मुस्लिम वीर भी मराठा सेना की ताकत का हिस्सा थे. अफगान आक्रमणकारी अब्दाली से भारत की उत्तरी सीमाओं और दिल्ली की रक्षा के लिए, और अब्दाली से लोहा लेने के लिए मराठा सेना उत्तर की ओर 1,200 से 1,400 किमी की दूरी तय करके पहुंची थी. लेकिन उत्तर भारत के अप्रत्याशित कड़ाके की ठंड, एक लंबे समय तक सैन्य अभियान में शामिल रहने, खाद्य रसद की कमी और अपने काफिले में तीर्थ यात्रा के लिए जा रहे साथ मौजूद लगभग 60 हजार नागरिकों के रक्षा की जिम्मेदारी के साथ मराठा सेना इस बड़े युद्ध के लिए तैयार नहीं थे.

बहादुर मराठा जनरल इब्राहिम खां गार्दी, जिन्होंने 10,000 सैनिकों और तोपखाने का नेतृत्व किया (फोटो: ट्विटर)

जंग के खलनायक


नजीबुद्दौला भारतीय था, जो आक्रमणकारी अफगान सेना में शामिल हो गया था. वह नजीब खान के नाम से भी जाना जाता था और वह रोहिल्ला कबीले से थे. वह बिजनौर जिले के नजीबाबाद शहर का संस्थापक था.
नजीब पहले मुगल सेना में सैनिक के रूप में सेवा कर चुका था, लेकिन बाद में अहमद शाह अब्दाली से जाकर मिल गया. लेखक विश्वास पाटिल नजीब की तुलना शेक्सपियर के 'ओथेलो' में खलनायक 'इआगो' से करते हैं.

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Published: 09 Jan 2018,10:21 PM IST

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