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पद्मश्री से सम्मानित धावक मिल्खा सिंह एथलेटिक्स में दुनियाभर में भारत का परचम लहराने के लिए जाने जाते हैं. साल 2013 में उनके जीवन पर आधारित फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' रिलीज हुई, जिसने युवाओं को उनके जीरो से हीरो बनने की कहानी के बारे में बताया.
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान में हुआ था. भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उनके माता-पिता की मौत हो गई थी. इसके बाद वो भारतीय सेना में एथलीट के रूप में शामिल हो गए थे.
1956, 1960 और 1964 में ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने के अलावा 1958 और 1960 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता है.
मिल्खा सिंह, जिन्हें दुनिया ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से जानती है, आइए उनकी तीन यादगार रेस के बारे में जानते हैं.
साल 1958 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान मिल्खा सिंह एक अपरिचित नाम था. उन्हें कोई नहीं जानता था. लेकिन ऐसा 440 मीटर की फाइनल रेस से पहले तक था.
पंजाब के एक साधारण लड़के ने बिना किसी प्रॉपर ट्रेनिंग के साउथ अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को पछाड़ते हुए इतिहास रच दिया. मिल्खा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया.
यही नहीं, तब से 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में विकास गौड़ा के गोल्ड जीतने तक मिल्खा इकलौते भारतीय एथलीट गोल्ड मेडलिस्ट (पुरुष) थे.
मिल्खा सिंह ने ओलंपिक गेम्स में दूसरी बार अपनी उपस्थिति साल 1960 में दर्ज की थी. ये उनकी काफी चर्चित रेस रही. इस रेस में फ्लाइंग सिख ब्रांज मेडल से चूक गए थे. खास बात ये है कि 400 मीटर की इस रेस में मिल्खा उसी एथलीट से हारे थे, जिसे उन्होंने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में हराकर गोल्ड जीता था. तीसरे स्थान पर रहकर साउथ अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस ने ब्रांज जीता था.
इस रेस में 250 मीटर तक मिल्खा पहले स्थान पर भाग रहे थे. लेकिन इसके बाद उनकी गति कुछ धीमी हो गई और बाकी के धावक उनसे आगे निकल गए.
साल 1960 में मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट कंपीटशन में भाग लेने से मना कर दिया था. असल में वो दोनों देशों के बीच के बंटवारे की घटना को नहीं भुला पाए थे. इसलिए पाकिस्तान के न्योते को ठुकरा दिया था. हालांकि बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें समझाया कि पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है. इसके बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया.
पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट में मिल्खा सिंह का मुकाबला अब्दुल खालिक से हुआ. यहां मिल्खा ने अब्दुल को हराकर इतिहास रच दिया. इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि से नवाजा. तभी से मिल्खा फ्लाइंग सिख के नाम से जाने जाने लगे.
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