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स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को लोग जितना जानते हैं उससे कहीं अधिक गहराई उनमें थी. देश के लिए उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम में बहुत गहरा है. जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री के साथ भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक रहे डॉ राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गांधी की तरह ही देश के लिए वकालत छोड़ दी थी.
प्रसाद की पुण्यतिथि पर आइए डालते हैं उनके जीवन और करियर पर एक नजर:
बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में एक बड़े संयुक्त परिवार में उनका जन्म हुआ. उनके पिता महादेव सहाय पारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे जबकि उनकी मां कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं.
5 साल की उम्र से प्रसाद को एक मौलवी ने पारसी, हिन्दी और गणित की शिक्षा दी. बाद में उन्हें छपरा जिला स्कूल भेज दिया गया. उसके बाद प्रसाद ने अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ पटना की आरके घोष एकेडमी में पढ़ाई की. जब वे सिर्फ 12 साल के थे, तो उनकी शादी राजवंशी देवी से कर दी गयी.
कलकत्ता यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए हुई प्रवेश परीक्षा में प्रसाद ने पहला स्थान हासिल किया और उन्हें 30 रुपये महीने की छात्रवृत्ति दी गयी. उन्होंने 1902 में प्रेसिडेन्सी कॉलेज में दाखिला लिया.
शुरू में उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई की और उनके शिक्षकों में जे.सी बोस और प्रफुल्ल चंद्र रॉय शामिल थे. बाद में, प्रसाद ने अपना ध्यान कला (आर्ट्स) की पढ़ाई पर केंद्रित किया.
अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नील की खेती कराए जाने के खिलाफ किसानों की बगावत का समर्थन करने के लिए 1917 में महात्मा गांधी चम्पारण पहुंचे. गांधी ने किसानों और अंग्रेजों के दावों के बारे में तथ्यों का पता लगाने की जिम्मेदारी डॉ प्रसाद को दी और चंपारण बुलाया. गांधी से प्रभावित प्रसाद ने आंदोलन को अपना पूरा समर्थन दिया.
ब्रिटिश सरकार में वे दो बार जेल गये- पहली बार 1931 में नमक सत्याग्रह के दौरान और बाद में 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन हुआ.
1946 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में प्रसाद खाद्य और कृषि मंत्री नियुक्त किए गये. जल्द ही वे 11 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा के अध्यक्ष चुन लिए गये. 1946 से 1949 तक वे संविधान सभा के अध्यक्ष रहे और उन्होंने भारत का संविधान तैयार करने में मदद की.
देश के राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने पूरे विश्व की यात्रा की और दूसरे देशों के साथ मजबूत राजनयिक सम्बंध बनाए. वे देश के एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने 1952 और 1957 में लगातार दो कार्यकाल पूरे किए.
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