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Dushyant Kumar Birth Anniversary: "चौतरफा संकट का मुकाबला साहित्य से करना होगा"

महाकवि दुष्यंत कुमार की 89वीं जयंती

क्विंट हिंदी
जिंदगी का सफर
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<div class="paragraphs"><p><strong>Dushyant Kumar Birth Anniversary</strong></p></div>
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Dushyant Kumar Birth Anniversary

Image-Ajay tomar

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1970 के दशक में जब गजल के शहंशाह दुष्यंत कुमार की गजलों ने हिंदी काव्य का आसमान छुआ था, वह दशक भारत में लोकतांत्रिक संकट के चरम का दशक था. क्या आज का दौर भी सामाजिक-सांस्कृतिक संकट के चरम का दौर है? यदि ऐसा है तो इस युग को भी एक नए दुष्यंत कुमार को तलाशना होगा और तभी कसौटी पर चढ़ी गजल अपने वजूद को साबित कर सकेगी. यह और लगभग इसी जैसी अभिव्यक्ति आज आगरा में जमा हुए गज़लगो और साहित्यकारों ने व्यक्त की. मौका था महाकवि दुष्यंत कुमार की 89 वीं जयंती के अवसर पर होने वाले रंगारंग समारोह में विचार गोष्ठी का.

समारोह का आयोजन सांस्कृतिक संस्था 'रंगलीला', 'प्रेमकुमारी शर्मा स्मृति समारोह समिति' और 'छाँव फाउंडेशन' ने संयुक्त रूप से किया था. गोष्ठी का उदघाटन करते हुए लखनऊ से आये वरिष्ठ गजलगों ओमप्रकाश 'नदीम' ने कहा कि "यूं तो आज का संकट बहुआयामी है और हर क्षेत्र में नज़र आता है लेकिन इसमें सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति का संकट है. लेकिन आज की ग़ज़ल इन तमाम संकटों से पलायन नहीं कर रही बल्कि प्रतिरोध के अपने स्वरों को मुखरित कर रही है.

  • कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अनिल शुक्ल ने कहा कि संकट चौतरफा है तो मुक़ाबला भी साहित्य को हर हाल में करना होगा.ग़ज़ल इसमें सबसे मज़बूत हथियार है.

  • विचार गोष्ठी में बोलते हुए वरिष्ठ ग़ज़लगो अशोक रावत ने कहा कि ग़ज़ल के समक्ष जो चुनौतियां हैं उनका मुक़ाबला करने में वह पूर्णतः सक्षम है.

  • वरिष्ठ साहित्यकार अरुण डंग ने कहा कि अकेले ग़ज़ल का ही नहीं यह समूचे साहित्य के संकट का युग है।

  • वरिष्ठ समीक्षक अखिलेश श्रोत्रिय ने इसे इक्कीसवीं सदी के सबसे गहन साहित्यिक संकट का युग क़रार दिया.

  • गोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए युवा आलोचक प्रियम अंकित ने हाल में आगरा में घटी ‘बुकर पुरस्कार’ से नवाज़ी गयी हिंदी कथाकार गीतांजलिश्री के कार्यक्रम के स्थगन की 'दुर्घटना' का हवाला देते हुए इसे संकट के युग से जोड़ा.

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कर्यक्रम की शुरुआत में ग़ज़ल और साहित्य की दीर्घकालीन सेवा करने के उपलक्ष्य में अशोक रावत का अभिनन्दन किया गया। वरिष्ठ समीक्षक अखिलेश श्रोत्रिय और दुष्यंत कुमार के पुत्र कर्नल अपूर्व त्यागी ने उन्हें एक मेमेंटो और शॉल प्रदान किया।

दुष्यंत कुमार की ख्याति बेशक ग़ज़ल और काव्य के क्षेत्र में मानी जाती है लेकिन उन्होंने एक उपन्यास और चुनिंदा कहानियों का भी सृजन किया है जिससे कम लोग ही परिचित हैं. इन्हीं में से एक कहानी 'मड़वा उर्फ़ माड़े' को आज यहां 'रंगलीला' ने अपनी सुप्रसिद्ध और अलौकिक रंग परम्परा 'कथावाचन' परम्परा में प्रस्तुत किया। अनिल शुक्ल के निर्देशन में इसकी प्रस्तुति युवा अभिनेत्री मन्नू शर्मा ने दी। उपस्थित दर्शकों ने इसे खूब सराहा.

इस अवसर पर देर शाम तक चले कवि सम्मलेन और मुशायरे में इक़बाल मसूद, संजीव गौतम, चांद 'अकबराबादी', सत्यप्रकाश शर्मा, सुधांशु 'साहिल', सुश्री कांची सिंघल आदि ने अपनी रचनाओं से दर्शकों/ श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया.

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