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हिंदी सिनेमा के सबसे मशहूर संगीतकारों में से एक एसडी बर्मन का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था, लेकिन उनके संगीत में मिट्टी की सोंधी महक महसूस होती थी. एसडी की पुण्यतिथि पर हम जमीन से जुड़ी उनकी आवाज को याद कर रहे हैं. इसके अलावा हम उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर जिंदगी के कुछ पन्ने भी खोल रहे हैं, जिनमें सिनेमा के एक शानदार युग की स्मृतियां हैं और उनके संगीत की मिठास भी.
एसडी की परवरिश बांग्लादेश में हुई थी और वह अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनके पिता त्रिपुरा के राज परिवार से ताल्लुक रखते थे और मां मणिपुर की राजकुमारी थीं. जब एसडी दो साल के थे, तभी उनकी मां की मृत्यु हो गई थी. 25 साल की उम्र में उन्होंने कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर गायक के तौर पर अपनी पेशेवर जिंदगी की शुरुआत की.
इसके बाद कोलकाता के बालीगंज में मकान बनवाया और 1938 में मीरा दासगुप्ता से विवाह रचा लिया. मीरा एक सामान्य परिवार से थीं इसलिए एसडी के घरवालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. पर एसडी ने परिवार को नहीं, मीरा को चुना. उन्होंने घरवालों से अपना रिश्ता तोड़ दिया और राज परिवार की मिल्कियत से अपना हक भी छोड़ दिया. एसडी के बेटे राहुल देव बर्मन का जन्म 1939 में हुआ. उनके अधिकतर गीतों के संगीत तैयार करने में बीवी और बेटा, दोनों उनकी मदद किया करते थे.
फिल्मिस्तान के शशधर मुखर्जी के कहने पर एसडी 1944 में मुंबई आ गए. शशधर चाहते थे कि एसडी अशोक कुमार की दो फिल्मों शिकारी (1946) और आठ दिन (1946) का संगीत दें. लेकिन कुछ ही सालों में मायानगरी मुंबई से एसडी का मोहभंग हो गया.
1970 में आराधना फिल्म में अपनी सुरीली आवाज के लिए एसडी को सर्वेश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. उनके संगीत की यह खास बात थी कि वह अपनी धुन से एक मूड तैयार किया करते थे. वह सीन पर बहुत ध्यान देते थे. इस बात पर भी ध्यान देते थे कि उस सीन में हीरो और हीरोइन क्या कर रहे हैं. फिल्म में किसी खास क्षण में कोई गीत क्यों गा रहा है. वह एक समय में बहुत से गाने बनाने में विश्वास नहीं रखते थे. जो भी गाना बनाते थे, उस पर बारीकी से काम करते थे. उनका नियम था कि साल में चार फिल्मों से ज्यादा काम नहीं करना.
एसडी बर्मन अच्छे स्पोर्ट्समैन थे. संगीत की दुनिया में कदम रखने से पहले से टेनिस खेलते थे. फुटबॉल और मोहन बागान के भी फैन थे अपनी किताब के अंतिम अध्याय में सत्य सरन लिखती हैं कि जब अपने अंतिम दिनों में एसडी कोमा में चले गए थे, तो सिर्फ इस खबर को सुनकर उन्होंने कुछ प्रतिक्रिया दी थी कि मोहन बागान की टीम जीत गई है!
एक किस्सा यह भी है कि किस तरह गुरुदत्त ने दूसरे विश्वयुद्ध के समय एसडी और उनकी बीवी को अमेरिका जाने से रोका था. उस दौरान हर तरफ जापान विरोधी माहौल था और गुरुदत्त उनसे मजाक किया करते थे, ‘आप मत जाएं. आप जापानी जैसे दिखते हैं, लोग आपको छोड़ेंगे नहीं’ और उन्होंने अपने टिकट लगभग कैंसिल कर दिए थे.
आप एसडी बर्मन के संगीत का आनंद ताउम्र उठा सकते हैं, उसके बिना हिंदी सिनेमा एक कोरा कागज है. बेशक, एसडी अद्वितीय और अविस्मरणीय हैं.
(इस आर्टिकल को क्विंट के आर्काइव्स से लिया गया है। सबसे पहले यह 31 अक्टूबर 2015 को पब्लिश किया गया था। एसडी बर्मन की पुण्यतिथि पर इसे दोबारा पब्लिश किया गया है)।
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