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जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं... इस खूबसूरत गाने में संगीत देने वाले कल्याणजी वीरजी शाह हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार रहे हैं. बॉलीवुड में कल्याणजी और आनंदजी की जोड़ी को एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह देखा जाता रहा है.
70 के दशक में ये जोड़ी संगीत की दुनिया में बेहद लोकप्रिय रही. इस जोड़ी ने बॉलीवुड में पूरे एक दौर को अपने मधुर संगीत से संवारा. बचपन से ही संगीतकार बनने का सपना देखने वाले इन दोनों भाइयों ने कभी किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली.
कल्याणजी का जन्म गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी मे 30 जून, 1928 को हुआ. युवा होने पर अपने सपनों को पूरा करने कल्याणजी मुंबई आ गए. कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी के नाम से अपना आर्केस्ट्रा ग्रुप शुरू किया. इसके बाद मुंबई और बाहरी इलाकों में अपने म्यूजिक शो करने लगे.
इसी दौरान दोनों भाई सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, हेमंत कुमार, नौशाद और रवि जैसे संगीतकारों के संपर्क में आए. बस यहीं से शुरू हुआ संगीत का सफर.
बतौर संगीतकार सबसे पहले साल 1958 मे फिल्म सम्राट चंद्रगुप्त में कल्याणजी को संगीत देने का मौका मिला. इस फिल्म में कल्याणजी ने नागिन बीन बजाई थी. ये धुन इतनी लोकप्रिय हुई कि हर नाग-नागिन फिल्म में इस बीन की धुन का इस्तेमाल होने लगा. साल 1960 में कल्याणजी ने आनंदजी के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत देना शुरू किया.
यही नहीं, साल 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' में 'नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं', 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले' जैसे रूमानी गीतों को संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया था.
साल 1968 में आई फिल्म ‘सरस्वती चंद्र’ के लिये कल्याणजी-आनंदजी को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर के लिए नेशनल अवॉर्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इसके अलावा साल 1974 में आई फिल्म ‘कोरा कागज’ के लिये भी कल्याणजी-आनंद जी को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड दिया गया.
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