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बचपन में टेस्ट क्रिकेटर बनने की बेहद ख्वाइश रखने फैज साहब 1984 में नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित हुए. फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को अमृतसर के पास काला कादिर नाम के कस्बे में हुआ था. उन्हें 1962 का लेनिन पीस प्राइज मिला था.
1984 से 33 साल पहले की एक सुबह चार बजे का दृश्य
9 मार्च 1951 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एक बयान जारी किया, ‘अभी कुछ देर पहले पाकिस्तान के दुश्मनों की एक साजिश पकड़ी गयी है, जिस साजिश के इल्जाम में फैज साहब समेत चौदह मर्द और एक औरत को गिरफ्तार कर लिया गया.’
खैर, इस इल्जाम से वो बरी हो गए, पर उनके ऊपर हर वक्त नजर रखी जाने लगी.
दूसरे युद्ध के समय फैज साहब सेना में शामिल हुए और कर्नल के पद तक पहुंचे. लेकिन युद्ध के बाद वे फौज से इस्तीफा देकर पहले वाले पेशे अध्यापन में लौट आये.
मैट्रिक करने के बाद फैज साहब सिआलकोट में कॉलेज में दाखिल हुए, जहां प्रोफेसर युसूफ सलीम चिस्ती ने उनको शायरी करने के लिए प्रेरित किया. उनका पहला शेर यहीं हुआ-
आगे की पढ़ाई के लिए वो गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर गए, तो वो वहां पर सीधे अल्लामा इकबाल के पास ले जाए गए. पिता ने उन्हें अल्लामा के चरणों में बैठा दिया और कहा कि ‘मैं बेटा आपके पास लेकर आया हूं’ . अल्लामा इकबाल साहब के साथ का उनको बेहद फायदा मिला.
1931 में फैज साहब के पिता की मृत्यु हो गयी, जिसका उनपर गहरा प्रभाव पड़ा. तीन दिन कमरे में बंद रहे. अब उनपर परिवार की जिम्मेदारी आ गयी थी. फैज को बचपन में क्रिकेटर बनने का बेहद शौक था. लेकिन फैज क्रिकेटर न बने, अलबत्ता उस्ताद होकर अमृतसर आ गए . अमृतसर में पहली बार उनमें राजनीतिक चिंगारी फूटी.
प्रगतिशील लेखक संघ की नींव 1936 में जब लखनऊ में रखी गयी थी, जिसमें प्रेमचंद सभापति थे , उसमें फैज भी शामिल हुए थे, डॉ. रशीद जहां और शाहजादा महमूद जफर के साथ 1941 में उनकी पहली किताब नक्शे फरियादी आई.
पिता की मौत के 11 साल बाद 1942 में उन्होंने एक ब्रिटिश लड़की ऐलिस से शादी की. ऐलिस और फैज की प्रेमकहानी अमृतसर में शुरू हुई थी. दोनों को शेक्सपियर के प्रति उनका लगाव करीब लाया था.
बकौल ऐलिस, छोटी सी बारात थी. तीन आदमी थे. एक तो फैज साहब और उनके छोटे भाई और एक दोस्त. तो पहले ही मैंने फैज से पूछा... आप अंगूठी ले आए ? उन्होंने कहा ‘जरूर लेकर आया हूं.’ मैंने कहा तुम्हारे पास पैसे कहां थे? तो वो कहने लगे, मैंने कर्ज लिया है. खैर वापस तो देना नहीं मुझे. तो मैंने कहा साइज का पता था तो कहने लगे- ‘हां’ . शाम को दावत थी. बहुत बड़ी दावत थी और एक मुशायरा भी हुआ था.
बांग्लादेश बनने के बाद एक बार फैज साहब कलकत्ता हवाई अड्डे पर उतर गए. उनके पास वीजा नहीं था. सुरक्षा अधिकारियों ने रोक लिया. एयरपोर्ट इंचार्ज ने फैज साहब का नाम पता चलने पर सीएम ऑफिस में फोन लगाकर आगे की कार्यवाही का आदेश मांगा. वहां से हिदायत दी गई कि फैज साहब से बातें करते रहो, उनको लगना नहीं चाहिए कि उनको डिटेन किया गया है.
कुछ देर में मुख्यमंत्री ज्योति बसु खुद उनके पास एयरपोर्ट तक चलकर आए और उनसे कहा कि आप सिर्फ पाकिस्तान के ही नहीं बल्कि इस पूरे उपमहाद्वीप के हैं.
पासपोर्ट अधिकारी को ज्योति बाबू ने कहा-
इस आदमी को पासपोर्ट की जरूरत नहीं है, इनकी शक्ल पासपोर्ट है.
उनकी बेटी के मुताबिक-
अपना पूरा जीवन एक अच्छी दुनिया के लिए संघर्ष के नाम करने वाले फैज साहब के कुछ शेर-
फैज साहब ने बेहद रोमांटिक शायरी भी कही-
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