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फैज अहमद फैज : देवानंद और दिलीप कुमार लेते थे जिनके ऑटोग्राफ

फैज साहब 1984 में नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित हुए

मानस भारद्वाज
जिंदगी का सफर
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फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को अमृतसर के पास काला कादिर कस्बे में हुआ
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फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को अमृतसर के पास काला कादिर कस्बे में हुआ
(फोटो: आर्णिका काला/ द क्विंट)

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बचपन में टेस्ट क्रिकेटर बनने की बेहद ख्वाइश रखने फैज साहब 1984 में नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित हुए. फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को अमृतसर के पास काला कादिर नाम के कस्बे में हुआ था. उन्हें 1962 का लेनिन पीस प्राइज मिला था.

1984 से 33 साल पहले की एक सुबह चार बजे का दृश्य

सुबह का वक्त था, हम ऊपर वाले फ्लैट में रहते थे. मैं सो कर उठी और बरामदे की तरफ देखने लगी. तभी अचानक मेरी नजर 50 हथियारबंद आदमियों पर पड़ी. तो मैंने फैज से कह दिया, ये कोई रेड हो रही है. किसलिए ? तो उन्होंने कहा मुझे नहीं पता...1951 में पंजाब में इलेक्शन हो रहे थे... तो हमने सोचा कि किसी वजह से गिरफ्तार करने आए हैं...हमारा फ्लैट ऊपर था...तो हमने नीचे आकर दरवाजा खोल दिया.
ऐलिस, फैज की पत्नी 

9 मार्च 1951 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एक बयान जारी किया, ‘अभी कुछ देर पहले पाकिस्तान के दुश्मनों की एक साजिश पकड़ी गयी है, जिस साजिश के इल्जाम में फैज साहब समेत चौदह मर्द और एक औरत को गिरफ्तार कर लिया गया.’

खैर, इस इल्जाम से वो बरी हो गए, पर उनके ऊपर हर वक्त नजर रखी जाने लगी.

एक बार जब उनका ड्राईवर नहीं आया तो वो खुद गाड़ी चला रहे थे. वे रास्ता भूल गए. उनके पीछे हमेशा जासूस लगे रहते थे. फैज साहब ने गाड़ी रोकी और पीछे वाली गाड़ी के पास गए, जो उनका पीछा कर रही थी और उनसे पूछा कि तुमको पता है हम कल कहां गए थे? तो उन्होंने कहा- हां पता है, तो फैज साहब ने कहा अच्छा, फिर आगे-आगे चलो और रास्ता बताओ.

इस घटना से करीब 18 साल पहले...

दूसरे युद्ध के समय फैज साहब सेना में शामिल हुए और कर्नल के पद तक पहुंचे. लेकिन युद्ध के बाद वे फौज से इस्तीफा देकर पहले वाले पेशे अध्यापन में लौट आये.

इससे करीब 17 साल पहले...

मैट्रिक करने के बाद फैज साहब सिआलकोट में कॉलेज में दाखिल हुए, जहां प्रोफेसर युसूफ सलीम चिस्ती ने उनको शायरी करने के लिए प्रेरित किया. उनका पहला शेर यहीं हुआ-

फैज का पहला शेर

(ग्राफिक्सः Quint Hindi)

आगे की पढ़ाई के लिए वो गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर गए, तो वो वहां पर सीधे अल्लामा इकबाल के पास ले जाए गए. पिता ने उन्हें अल्लामा के चरणों में बैठा दिया और कहा कि ‘मैं बेटा आपके पास लेकर आया हूं’ . अल्लामा इकबाल साहब के साथ का उनको बेहद फायदा मिला.

1931 में फैज साहब के पिता की मृत्यु हो गयी, जिसका उनपर गहरा प्रभाव पड़ा. तीन दिन कमरे में बंद रहे. अब उनपर परिवार की जिम्मेदारी आ गयी थी. फैज को बचपन में क्रिकेटर बनने का बेहद शौक था. लेकिन फैज क्रिकेटर न बने, अलबत्ता उस्ताद होकर अमृतसर आ गए . अमृतसर में पहली बार उनमें राजनीतिक चिंगारी फूटी.

प्रगतिशील लेखक संघ की नींव 1936 में जब लखनऊ में रखी गयी थी, जिसमें प्रेमचंद सभापति थे , उसमें फैज भी शामिल हुए थे, डॉ. रशीद जहां और शाहजादा महमूद जफर के साथ 1941 में उनकी पहली किताब नक्शे फरियादी आई.

‘नक्शे फरियादी’ का शेर

(ग्राफिक्सः Quint Hindi)
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पिता की मौत के 11 साल बाद 1942 में उन्होंने एक ब्रिटिश लड़की ऐलिस से शादी की. ऐलिस और फैज की प्रेमकहानी अमृतसर में शुरू हुई थी. दोनों को शेक्सपियर के प्रति उनका लगाव करीब लाया था.

बकौल ऐलिस, छोटी सी बारात थी. तीन आदमी थे. एक तो फैज साहब और उनके छोटे भाई और एक दोस्त. तो पहले ही मैंने फैज से पूछा... आप अंगूठी ले आए ? उन्होंने कहा ‘जरूर लेकर आया हूं.’ मैंने कहा तुम्हारे पास पैसे कहां थे? तो वो कहने लगे, मैंने कर्ज लिया है. खैर वापस तो देना नहीं मुझे. तो मैंने कहा साइज का पता था तो कहने लगे- ‘हां’ . शाम को दावत थी. बहुत बड़ी दावत थी और एक मुशायरा भी हुआ था.

बकौल गुलजार साहब...

उनको ये मान लेना कि वो पकिस्तान के शायर हैं ये सही नहीं है. अव्वल तो वो उर्दू जुबान के शायर हैं. और उर्दू जुबान के सबसे बड़े शायर हैं अपने दौर के, और उसके अलावा वो सरासर हिन्दुस्तानी हैं.

जब ज्योति बसु ने मांगी माफी

बांग्लादेश बनने के बाद एक बार फैज साहब कलकत्ता हवाई अड्डे पर उतर गए. उनके पास वीजा नहीं था. सुरक्षा अधिकारियों ने रोक लिया. एयरपोर्ट इंचार्ज ने फैज साहब का नाम पता चलने पर सीएम ऑफिस में फोन लगाकर आगे की कार्यवाही का आदेश मांगा. वहां से हिदायत दी गई कि फैज साहब से बातें करते रहो, उनको लगना नहीं चाहिए कि उनको डिटेन किया गया है.

कुछ देर में मुख्यमंत्री  ज्योति बसु खुद उनके पास एयरपोर्ट तक चलकर आए और उनसे कहा कि आप सिर्फ पाकिस्तान के ही नहीं बल्कि इस पूरे उपमहाद्वीप के हैं.

पासपोर्ट अधिकारी को ज्योति बाबू ने कहा-

इस आदमी को पासपोर्ट की जरूरत नहीं है, इनकी शक्ल पासपोर्ट है.

उनकी बेटी के मुताबिक-

फैज साहब एक बार हिन्दुस्तान आ रहे थे. तो उनसे घर के बच्चों ने कहा कि आप वहां से दिलीप कुमार और देव आनंद का ऑटोग्राफ लेकर आना. जब फैज साहब हिन्दुस्तान से वापस पाकिस्तान पहुंचे तो बच्चों ने उनसे पूछा आप ऑटोग्राफ लाए. तो उन्होंने बेहद मासूमियत से शर्मिंदा होते हुए कहा- मैं उनके पास गया तो उन्होंने मेरे ऑटोग्राफ ले लिए.

अपना पूरा जीवन एक अच्छी दुनिया के लिए संघर्ष के नाम करने वाले फैज साहब के कुछ शेर-

(ग्राफिक्सः Quint Hindi)
(ग्राफिक्सः Quint Hindi)

फैज साहब ने बेहद रोमांटिक शायरी भी कही-

(ग्राफिक्सः Quint Hindi)
(ग्राफिक्सः Quint Hindi)

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