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कोई कैसे पंडित बिरजू महाराज बनता है, ये पंडित बिरजू महाराज के संघर्ष के दिनों से भी पता चला है. पंडित Birju Maharaj ऐसे घर में पैदा हुए जहां उन्हें किसी चीज की किल्लत नहीं थी, लेकिन फिर वक्त बदला. बुरा वक्त आया, लेकिन सारी मुसीबतें भी बिरजू महाराज से कथक के प्रति उनके प्यार को कम नहीं कर पाईं.
राज्य सभी टीवी को दिए एक इंटरव्यू में पंडित बिरजू महाराज ने कहा था, "एक समय तो हमारे घर में चार-चार घोड़े, बघ्घी सब था. लेकिन धीरे-धीरे वे खत्म होते गए. मैंने डिब्बे देखे बड़े-बड़े, जिसमें नौ लाख का हार, तीन लाख का हार. तब मां ने कहा था, बेटा इसमें सबकुछ था और अब इसमें कुछ नहीं है. यहां तक हुआ कि हम लोग कर्जदार हो गए. तब अम्मा से मैंने कहा था कि मां मैं जो भी होगा दाल-रोटी खाऊंगा, लेकिन रियाज करूंगा. वह नहीं छोड़ूंगा."
हिंदी फिल्मों को लेकर बिरजू महाराज क्या सोचते थे, इसे लेकर इंटरव्यू में उनसे सवाल किया गया था, तब उन्होंने कहा, "सत्यजीत दादा. बहुत ही ग्रेट आदमी थे. उन्होंने वही प्यार दिया, जो मुझे स्टेज पर मिलता है. फिल्म की शूटिंग के दौरान अमजद भाई (अमजद खान) कहने लगे कि मुझे नचाओगे क्या? मुझे पिस्तौल बगैरह दे दो. मैंने कहा कि आप वाजिद अली शाह बने हो तो आप को कुछ मूमेंट तो करना पड़ेगा. तब उन्होंने कहा, अच्छा सिखा दो भाई. तो बड़ा मीठा-मीठा माहौल रहा."
उन्होंने इंटरव्यू में कहा, "मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि ये फिल्म का काम हो रहा है. मुझे लगा कि ठीक है ये भी एक प्रोग्राम की जगह है. इसके अलावा मैंने दिल तो पागल है और देवदास जैसी फिल्मों के साथ काम किया. देवदास, जिसमें शुरू में मेरी आवाज है. दो लाइन मैंने गाई थी उसमें. फिर कविता कृष्णमूर्ति ने गाया. तो फिल्में बहुत कम की हैं. लेकिन मेरा यही कहना रहता था कि अगर हीरोइन पूरे कपड़े पहनेगी, अच्छा अभिनय, आंखों से बात करेगी, पूरी बॉडी को हिलाकर नहीं बल्कि आंखों से बात करेगी, आंखों की पलकों से बात करेगी, जो वहीदा जी, मीना कुमारी और मधुबाला में था, तब तो मैं कुछ करूंगा. तो इस तरह से मेरी शर्त रही कि जब इस तरह का मौका मिलेगा तो मैं जरूर करूंगा."
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