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क्रिकेट में यूं तो कई नामचीन कोच हुए हैं, लेकिन रमाकांत आचरेकर सबसे अलग थे, जिन्होंने खेल को सचिन तेंदुलकर के रूप में उसका ‘कोहिनूर' दिया.
आचरेकर का इसी साल 2 जनवरी को मुंबई में 87 साल की उम्र में देहांत हो गया था. वो क्रिकेट कोचों की उस जमात से ताल्लुक रखते थे, जो अब कम ही नजर आती है. जिसने मिडल क्लास परिवारों के बच्चों को सपने देखने की कुव्वत दी और उन्हें पूरा करने का हुनर सिखाया.
आधी बाजू की सूती शर्ट और सादी पतलून पहने आचरेकर देव आनंद की ‘ज्वैल थीफ ' मार्का कैप पहना करते थे. उन्होंने शिवाजी पार्क जिमखाना में अस्सी के दशक में 14 साल के सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का ककहरा सिखाया. भारत की 1983 वर्ल्ड कप जीत के बाद वो दौर था, जब देश के शहर-शहर में क्रिकेट कोचिंग सेंटर की बाढ़ आ गई थी.
आचरेकर और बाकी कोचों में फर्क ये था कि जिसे योग्य नहीं मानते थे, उसे वह क्रिकेट की तालीम नहीं देते थे. तेंदुलकर और उनके बड़े भाई अजित ने कई बार बताया है कि आचरेकर कैसे पेड़ के पीछे छिपकर तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखते थे, ताकि वह खुलकर खेल सकें.
क्रिकेट की किंवदंतियों में वो कहानी भी शुमार है कि कैसे आचरेकर स्टंप के ऊपर एक रुपये का सिक्का रख देते थे और तेंदुलकर से शर्त लगाते थे कि वह बोल्ड नहीं हों, ताकि वो सिक्का उसे मिल सके. तेंदुलकर के पास आज भी वो सिक्के उनकी अनमोल धरोहरों में शुमार हैं.
अपने स्कूल की सीनियर टीम को एक फाइनल मैच खेलते देखने के चलते जब तेंदुलकर ने एक मैच नहीं खेला, तो आचरेकर ने उन्हें करारा तमाचा जड़ा था. तेंदुलकर ने कई मौकों पर आचरेकर के उन शब्दों को दोहराया है,‘‘तुम पवेलियन से ही ताली बजाओ. इसकी बजाए लोगों को तुम्हारा खेल देखने के लिए आना चाहिए.''
बचपन में तेंदुलकर कई बार आचरेकर के स्कूटर पर बैठकर स्टेडियम पहुंचे.
अस्सी और नब्बे के दशक में शिवाजी पार्क जिमखाना पर क्रिकेट सीखने वाले हर छात्र के पास आचरेकर से जुड़ी कोई कहानी जरूर है. चंद्रकांत पंडित, अमोल मजूमदार, प्रवीण आम्रे, अजित अगरकर, लालचंद राजपूत सभी बता सकते हैं कि ‘गुरु' क्या होता है और वो समय कितना चुनौतीपूर्ण था.
तेंदुलकर ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर क्रिकेट को अलविदा कहते हुए कहा था,‘‘सर ने मुझसे कभी नहीं कहा ‘वेल प्लेड', क्योंकि उनको लगता था कि मैं आत्ममुग्ध हो जाऊंगा. अब वो मुझे कह सकते हैं कि मैंने कैरियर में अच्छा किया, क्योंकि अब मुझे जीवन में कोई और मैच नहीं खेलना है.''
ये आचरेकर का जादू था कि दुनिया जिसके फन का लोहा मानती है, वो क्रिकेटर उनसे एक बार तारीफ करने को कह रहा था.
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