ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

पूर्वांचल में PM मोदी का इम्‍तिहान,अखिलेश-माया की राह भी नहीं आसान

लखनऊ की कुर्सी पूर्वांचल के रास्ते ही मिलती है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये कहावत आम है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

लखनऊ की कुर्सी पूर्वांचल के रास्ते ही मिलती है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये कहावत आम है. त्रिकोणीय मुकाबले में उलझी यूपी की चुनावी जंग आखिरकार पूर्वांचल तक आ पहुंची है, जहां 14 जिलों की 89 सीटों पर 4 और 8 मार्च को वोटिंग होगी.

यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी में बीजेपी के अच्छे दिनों का इम्‍तिहान है तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर साल 2012 का प्रदर्शन दोहराने का दबाव. उधर बहुजन समाज पार्टी का हाथी भी डी-एम (दलित-मुस्लिम) गठजोड़ के सहारे वापसी की कोशिशों में जुटा है. खास बात है कि पांच फेज की वोटिंग के बाद भी किसी पार्टी की हवा नहीं दिखती.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हर चुनाव में पलटती है हवा

दलित, पिछड़े, ब्राह्मण, ठाकुर, मुसलमान और न जाने कितने जातीय समीकरणों में उलझा पूर्वांचल हर चुनाव में रुख बदलता है. अगर 28 जिलों की 150 सीटों की बात करें तो 2007 में पूर्वांचल ने 79 सीटें बीएसपी की झोली डालकर उसे सूबे की सत्ता तक पहुंचा दिया. लेकिन 2012 में हवा पूरी तरह पलट गई. समाजवादी पार्टी के हिस्से पूर्वांचल की 85 सीटें आईं और बीएसपी 25 पर सिमट गई.



लखनऊ की कुर्सी पूर्वांचल के रास्ते ही मिलती है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये कहावत आम है.

अगर बाकी बचे दो फेज को 2012 के विधानसभा चुनावों की नजर से देखें तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है.

0

साल 2014 में फिर बदली तस्वीर

हालांकि करीब दो साल बाद यानी साल 2014 के लोकसभा चुनाव की मोदी लहर में सब कुछ बह गया. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की आजमगढ़ सीट छोड़कर बीजेपी ने पूर्वांचल की तमाम लोकसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया. 2017 में जीत के लिए बीजेपी कार्यकर्ता 2014 की ही मिसाल दे रहे हैं लेकिन इस बार तस्वीर दूसरी है.

बनारस बना मूंछ का बाल

पीएम नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी यानी बनारस बीजेपी की मूंछ का बाल बन गया है. वाराणसी की आठ विधानसभा सीटों में से फिलहाल तीन ही बीजेपी के पास हैं. इस बार पार्टी पर तमाम आठ सीट जीतने का दबाव है लेकिन टिकट बंटवारे पर मचा घमासान पार्टी के लिए भारी साबित हो रहा है.

वाराणसी साउथ सीट पर सात बार के विधायक श्यामदेव राय चौधरी उर्फ दादा का टिकट कटने से रोष को हवा मिली है. बीजेपी का गढ़ समझी जाने वाली वाराणसी कैंट और वाराणसी नॉर्थ सीट पर भी पार्टी मुश्किल में दिख रही है. कई बीजेपी नेताओं का कहना है कि बनारस में जीत जरूरी है क्योंकि अगर जीत भी गए तो बनारस के बिना रस नहीं आएगा.

वाराणसी में 8 मार्च को वोटिंग है. करीब आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री तो वहां पहले से ही हैं लेकिन आखिरी दौर के प्रचार के लिए पीएम मोदी खुद भी 4 तारीख को वाराणसी पहुंच जाएंगे. 5 मार्च को भी वो वाराणसी के तमाम इलाकों में प्रचार करेंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीजेपी के दिग्गजों पर जिम्मेदारी

पूर्वांचल की अहमियत को देखते हुए यहां के कई सांसदों को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली. मौजूदा चुनाव के नतीजे कलराज मिश्र (देवरिया), मनोज सिन्हा (गाजीपुर), महेंद्रनाथ पांडेय (चंदौली), बीजेपी के सहयोगी अपना दल की अनुप्रिया पटेल (मिर्जापुर), सरीखे मंत्रियों के प्रभाव की परख होंगे. बीजेपी के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर के आसपास दर्जनभर जिलों पर असर है लेकिन वो हिन्दू युवा वाहिनी की बगावत से जूझ रहे हैं.

ध्रुवीकरण शबाब पर

‘श्मशान-कब्रिस्तान’ बयान के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भले ऐसा कुछ न कहा हो लेकिन पूर्वांचल के ज्यादातर इलाकों में ध्रुवीकरण की कोशिशें शबाब पर हैं. राम-राम हरे हरे, कमल खिले घरे-घरे और देशद्रोही पर कार्रवाई, अबकी बार दो-तिहाई के नारे हर गली-कूचे में सुनाई दे जाते हैं. बीजेपी जानती है कि अगर दलित और गैर यादव हिंदू वोट बैंक में बीजेपी की सेंध ना लगी तो सिर्फ अगड़ों के सहारे तो जंग जीतने से रहे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मायावती को डॉन का सहारा

राजनीति की माया देखिये कि साल 2012 मेंचढ़ गुंडन की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर का नारा देने वाली मायावती को इस बार बाहुबली मुख्तार अंसारी से हाथ मिलाना पड़ा है. हत्या के आरोप में जेल काट रहे मुख्तार मऊ सीट से हाथी पर चढ़कर ताल ठोंक रहे हैं. मऊ के आसपास चार जिलों की 28 सीटों पर मुख्तार और उनके परिवार का असर माना जाता है. मायावती सांस रोककर इस असर के आंकलन में जुटी हैं.

इसके अलावा वो शुरुआत से ही मुस्लिम वोट बैंक साधने में जुटी हैं. वो अपनी हर सभा में कहती हैं कि मुस्लिम सपा को वोट देंगे तो वोट बरबाद हो जाएगा. पूर्वांचल में मायावती का दलित वोट अगर मुस्लिम वोट के साथ मिल गया तो नतीजों की तस्वीर पलट सकती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नोटबंदी का असर

गंगा, सरयू, राप्ती, गंडक नदियों से घिरा पूर्वांचल के इलाके में गरीबी और बेरोजगारी बिखरी पड़ी है. दिल्ली, मुंबई जैसे इलाकों से जिन दिहाड़ी मजदूरों को अपने गांव लौटना पड़ा, उनकी तादाद इस इलाके में सबसे ज्यादा है. लेकिन हैरानी की बात है कि नोटबंदी के असर का सही मूल्यांकन कोई पार्टी नहीं कर पा रही.

बीजेपी नोटबंदी को अपने पक्ष में बता रही है लेकिन असल में पार्टी नहीं जानती की इसका असर क्या होगा. इसी तरह विपक्ष नोटबंदी को बीजेपी के गले की हड्डी बता रहा है लेकिन उसे भी नहीं पता कि वोटर नोटबंदी के साथ है या खिलाफ.

अखिलेश के मन में भी डर

पिछली बार मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को इकतरफा वोट दिया था, लेकिन इस बार हालात वैसे नहीं हैं. जौनपुर, गाजीपुर, गोरखपुर, मऊ, आजमगढ़ के गांव-देहात में घूमने पर पता चलता है कि विकास की तस्वीरें लखनऊ, नोएडा, आगरा तक ही सिमटी हैं. उनकी झलक तक पूर्वांचल के अंदरूनी इलाकों में नहीं दिखती. काम बोलता है का नारा पूर्वांचल के लोगों के गले नहीं उतर रहा.

बीएसपी और सपा के साथ बीजेपी की भी मुस्लिम वोटर पर पैनी नजर है. क्योंकि अगर मुस्लिम बीएसपी और सपा में बंटा तो फायदा बीजेपी को ही होगा. कांग्रेस की कोई खास मौजूदगी पूर्वांचल में नहीं दिखती लेकिन कुछ सीटों पर साइकिल के साथ कांग्रेस का हाथ सवर्ण वोट बीजेपी से खींचकर गठबंधन के पाले में डाल सकता है.

ये भी पढ़ें

यूपी चुनाव फेज-6: पूर्वांचल की सीटों पर उम्मीदवारों का लेखा-जोखा

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×