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PM मोदी ने तो काले धन पर नकेल कसी, फ्लैट की डिलवरी में देरी क्यों?

रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर ब्लैकमनी को व्हाइट करने वालों में है बेनामी संपत्ति कानून का खौफ. 

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आज से दो-चार साल पहले आपने जो फ्लैट बुक कराया था और जिसके पजेशन के लिए आप एक-एक दिन गिन रहे हैं, उसमें देरी के लिए ‘बेनामी कानून’ भी जिम्‍मेदार है? संसद से पास होने और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद सरकार इस कानून को जल्द से जल्द लागू करने की कोशिश में है.

इसका सबसे ज्यादा असर उन बिल्डरों पर हो रहा है, जिन्हें कंस्ट्रक्शन के लिए खास किस्म के इनवेस्टर्स से पैसा मिला करता था.

ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि कुछ भ्रष्ट नेता, अफसर और दूसरे लोग इन बिल्डरों को प्रोजेक्ट बनाने के लिए ब्लैकमनी देते रहे हैं. बेनामी एक्ट में ऐसे लोगों के लिए सजा बढ़ा दी गई है, इसलिए इन लोगों ने बाजार से कन्नी काट ली है. इसकी कीमत कौन चुका रहा है? क्या आप भी उनमें से एक हैं?

प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म लियासेज फोरास के मुताबिक, देश के 8 बड़े शहरों में 25.3 लाख अंडर-कंस्ट्रक्शन घरों में से 2 पर्सेंट में 4 साल से अधिक, 4 पर्सेंट में तीन से चार साल, 9 पर्सेंट में दो से तीन साल, 19 पर्सेंट में एक से दो साल और 36 पर्सेंट में एक साल तक की देरी हो चुकी है. सिर्फ 31 पर्सेंट ही फ्लैट्स ऐसे हैं, जिनके साथ यह प्रॉब्लम नहीं है.

प्रॉपर्टी प्राइस का क्या?

क्या बेनामी कानून में बदलाव से घरों के दाम भी कम होंगे? जब भी रेगुलेटरी बदलाव होते हैं, तो कहा जाता है कि इनसे प्रॉपर्टी सस्ती होगी. लेकिन ऐसा शायद ही होता है. मुंबई हो या एनसीआर, पिछले कुछ साल में इन इलाकों में फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) बढ़ाते वक्त यह दुहाई दी गई कि इससे घर सस्ते होंगे, लेकिन इसका फायदा सिर्फ बिल्डरों को मिला.

इसलिए अगर बेनामी कानून से जमीन के दाम घटने और आखिरकार उसका फायदा ग्राहकों को मिलने की उम्मीद आपने लगाई थी, तो उसे भूल जाइए. यह एक झुनझुना है और कुछ नहीं.

रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर ब्लैकमनी को व्हाइट करने वालों में है बेनामी संपत्ति कानून का खौफ. 
(फोटोः istock)

बेनामी एक्ट में क्या बदला?

बेनामी का मतलब यह होता है कि संपत्ति किसी और के नाम पर हो और उसे खरीदने का पैसा कहीं और से आया हो. हालिया संशोधन के बाद उन सौदों को भी बेनामी माना जाएगा, जिनमें फर्जी नाम दिए गए हैं. जिस इंसान के नाम पर डील हुई है, अगर वह सौदे की जानकारी से इनकार करता है, तो भी मामला बेनामी का बनेगा. इसके अलावा जिस शख्स ने पैसा दिया है और उसका अता-पता मालूम नहीं है, तो भी डील बेनामी मानी जाएगी.

पहले इस अपराध के लिए तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था. कानून में संशोधन के बाद सजा को बढ़ाकर सात साल तक कर दिया गया है. वहीं, बेनामी संपत्ति के मामले में अब प्रॉपर्टी के मार्केट प्राइस का 25 पर्सेंट तक जुर्माना लगाया जा सकता है.

रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर ब्लैकमनी को व्हाइट करने वालों में है बेनामी संपत्ति कानून का खौफ. 
(फोटोः istock)

इस कानून से कुछ मामलों में छूट भी दी गई है. अगर प्रॉपर्टी पत्नी या बच्चे के नाम पर है, जिसके लिए पैसा कहां से आया है, यह पता है, तो उसे बेनामी नहीं माना जाएगा. भाई-बहन या रिश्तेदारों के साथ मिलकर कोई प्रॉपर्टी खरीदी गई है और उसके लिए पैसा कहां से आया है, इसकी जानकारी है, तो वह सौदा भी लीगल माना जाएगा. हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली जैसे मामलों में परिवार के दूसरे सदस्य के नाम पर प्रॉपर्टी होल्ड की जा सकती है. इसमें भी खरीदी गई प्रॉपर्टी के लिए पैसा कहां से आया, इसकी जानकारी जरूरी है.

बेहाल प्रॉपर्टी बाजार

बेनामी कानून में जो बदलाव किए गए हैं, उनका लॉन्ग टर्म में प्रॉपर्टी बाजार पर और बुरा असर पड़ेगा. सबसे अधिक चोट उन छोटे बिल्डरों पर पड़ेगी, जो ब्लैकमनी के दम से बाजार में टिके हुए थे. फंडिंग के इस रास्ते के बंद होने के बाद उनके लिए मार्केट में टिकना दुश्वार हो जाएगा. वैसे भी रियल एस्टेट इंडस्ट्री पिछले एक दशक में सबसे बुरे दौर का सामना कर रही है.

ऑनलाइन रियल एस्टेट एडवाइजर प्रॉप टाइगर की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल से जून 2016 के बीच मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, नोएडा, गुड़गांव, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता और अहमदाबाद में बिल्डरों के पास इतने फ्लैट्स हैं, जिन्हें बेचने में कम से कम तीन साल का समय लगेगा, जबकि नॉर्मल इनवेंटरी 8-12 महीनों की मानी जाती है. हालांकि, इन तीन महीनों में इन शहरों में होम सेल्स पिछले साल अप्रैल से जून के मुकाबले 8 पर्सेंट बढ़ी है.

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