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नोटबंदी से सब्‍जि‍यों के दाम धड़ाम, सबसे ज्यादा टमाटर की गई ‘लाली’

देशभर में प्याज 2016 में 650 रु से 1500 रु प्रति क्विंटल रहा. 2015 में ये रेट 3027 रु से 5600 रु प्रति क्विंटल था

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नोटबंदी का असर खेती-किसानी पर भी जमकर पड़ा है. किसानों की फसल तो इस बार अच्छी हो गई, लेकिन उन्हें इसके अच्छे पैसे नहीं मिल रहे.

कर्नाटक में कोलार जिले के टोंडला गांव के किसान सुनील कुमार का कहना है कि उन्हें इस साल 3 लाख रुपये के नुकसान उठाना पड़ा है.

नोटबंदी के बाद आलम यह रहा कि सुनील ने ट्रांसपोर्टेशन पर भी खर्च करना सही नहीं समझा और नवंबर के अंत में उन्होंने अपनी टमाटर की सारी फसल उखाड़ दी. उनका कहना है कि इस बार टमाटर की इतनी पैदावार हुई है कि इसके रेट भी 80% तक नीचे आ गए.

कर्नाटक का कोलार सब्‍ज‍ियों के उत्‍पादन के मामले में प्रदेश में पहले स्‍थान पर है. साथ ही यह एशिया में दूसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी है.
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टमाटर पर सबसे ज्यादा असर

60 से लेकर 85% तक दाम गिरने से जहां कर्नाटक और तमिलनाडु में टमाटर किसानों पर बुरा असर पड़ा है, वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के प्याज किसानों का भी यही हाल है.



देशभर में प्याज 2016 में 650 रु से 1500 रु प्रति क्विंटल रहा. 2015 में ये रेट 3027 रु से 5600 रु प्रति क्विंटल था

चेन्नई में टमाटर के दाम नवंबर, 2016 में 750रु/क्विंटल रहे, जबकि 2015 में ये रेट 4900रु/क्विंटल थे. उधर देशभर में प्याज 2016 में 650 रु से 1500 रु प्रति क्विंटल रहा, जबकि 2015 में यह 3027 रु से 5600 रु प्रति क्विंटल था.

नासिक में भारत की सबसे बड़ी थोक मार्केट लासलगांव एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी में 5 से 7 रु प्रति किलोग्राम प्याज बिका. वहीं हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक दिल्ली के मार्केट में मटर का व्यापार 10 साल के सबसे निचले स्तर पर हुआ.

टमाटर का बुरा हाल देश की दूसरे इलाकों में भी देखने को मिला था. छत्तीसगढ़ में ट्रैक्टरों और ट्रक पर टमाटर लादकर लाया गया और उन्हें सड़क पर फेंक दिया गया. यही हाल नासिक, हैदराबाद और दूसरे सब्जी उगाने वाले क्षेत्रों का रहा.

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बारिश अच्छी रही, लेकिन नोटबंदी के कारण नहीं मिला फायदा

हॉर्टिकल्चर प्रोड्यूसर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग और प्रोसेसिंग सोसाइटी के मैनेजर बेल्लूर कृष्णा का कहना है कि इस बार बारिश अच्छी हुई, लेकिन कर्नाटक के सब्जी उगाने वाले क्षेत्रों को इससे फायदा नहीं मिला. नोटबंदी की वजह से फसलों पर फर्क पड़ा और रेट काफी नीचे चले गए.

नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड के डायरेक्टर ब्रजेंदर सिंह का कहना है कि फल और सब्जियों में ज्यादातर ट्रांक्जेशन कैश में किया जाता है, इसलिए नोटबंदी ने असर तो डाला है. सिंह ने यह भी कहा कि मौसम इस बार अच्छा था, जिससे बंपर फसल हुई. लेकिन मार्केट में इससे सप्लाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गई और मार्केट में कैश था नहीं.

(स्रोत: IndiaSpend)

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