8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का बम फोड़ने के बाद 93 दिनों पर इस बात पर बहस हो रही है कि इसने अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया या उसे नई दिशा दी.
बेहद सतर्क और सुरक्षित बजट पेश कर मोदी और जेटली ने माना कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक और झटका बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. इससे एक बार फिर यह साबित होता है कि सिस्टम से 86 पर्सेंट नोट को बाहर निकालना बिना सोचे-समझे उठाया गया कदम था. अब छोटा-सा झटका भी भारत की अर्थव्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. इसलिए इसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया, ताकि वह खुद वह ठीक होने के रास्ते पर चल सके. मोदी और जेटली अब छाछ भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं.
नोटबंदी से पहले की खुशनुमा तस्वीर
बजट में सभी आंकड़े 31 अक्टूबर तक के दिए गए हैं. जाहिर है, इसमें नोटबंदी से हुई तबाही की तस्वीर ही नहीं मिलती है. अब आंकड़ों पर नजर डालते हैं.
- फिस्कल डेफिसिट 3.2 पर्सेंट
- रेवेन्यू डेफिसिट 2 पर्सेंट
- लगातार 2 साल टैक्स में 17 पर्सेंट की बढ़ोतरी
- सरकार ने 50 हजार करोड़ कम कर्ज लिया
शुक्र है कि यह टैक्स बढ़ाओ और खर्च करो वाला बजट नहीं है.
अब जानते हैं कि इस बजट में अच्छा क्या हुआ है?
1. मोदी और जेटली को शाबाशी मिलनी चाहिए कि डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, यहां तक कि सर्विस टैक्स में भी बढ़ोतरी नहीं हुई, जिसका पहले अंदेशा था.
2. अच्छा है! FIPB को आखिरकार हटा लिया गया है. देर आए, दुरुस्त आए. लेकिन यह और भी अच्छा होता, अगर पूरी तरह से गैर नियंत्रित एफडीआई होती. वैसे एफडीआई के सिर्फ चार पायदान ही मायने रखते हैं. 26 पर्सेंट, 51 पर्सेंट, 76 पर्सेंट और 100 पर्सेंट. और सभी पायदानों के अपने-अपने नियम तय हों. इसके अलावा सभी बंदिशें खत्म हो जानी चाहिए. शर्तों को मानने वालों को खुद-ब-खुद मंजूरी मिलनी चाहिए.
3. ज्यादातर सरकारी कंपनियों में लोगों की हिस्सेदारी बढ़ेगी. उन्हें शेयर बाजार में लिस्ट किया जाएगा. इनमें इंश्योरेंस और रेलवे की कंपनियां भी शामिल हैं. साफ तौर पर कहें तो, यह एक-चौथाई ही रिफॉर्म है. मेरे हिसाब से पूरी तरह से निजीकरण सुधार का बेहतर तरीका होता, लेकिन कुछ नहीं से कुछ तो बेहतर है.
इससे पारदर्शित बढ़ेगी और शेयर होल्डर के दबाव में इन कंपनियों का प्रदर्शन भी बेहतर होगा. छोटी कंपनियों को मिलाकर एक बड़ी कंपनी बनाने का आइडिया भी अच्छा है.
4. आधारभूत ढांचों के लिए जोर दिया जा रहा है. इसमें सस्ते घर बनाने का भी आइडिया शामिल है. हम पहले ही देख चुके हैं कि ये सब महज इरादे बनकर रह जाते हैं. इसलिए इनका मनचाहा असर दिख नहीं पाता है.
अब कुछ निराशाएं और चूक
आईसीयू में पड़ी अर्थव्यवस्था को सावधानी से हैंडल किया गया, लेकिन कुछ और साहसिक कदम उठाए जा सकते थे.
1. बैंकों के पुन: पूंजीकरण के लिए महज 10 हजार करोड़ रुपये? इन्फ्रास्ट्रक्चर का बजट 20 पर्सेंट बढ़ाया गया. मेरी समझ में एक बड़ा हिस्सा बैंकों की बैलेंसशीट दुरुस्त करने पर लगाया जाना चाहिए था. मान लीजिए, अगर ऐसा होता, तो दुरुस्त बैलेंसशीट के साथ बैंक तेजी से कर्ज देते और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को इससे बल मिलता. दुरुस्त बैलेंसशीट और सरकारी कर्ज में कमी की वजह से ब्याज दर में कमी होती और निजी निवेश और कंजम्पशन को बल मिलता. यह वाकई एक बड़ी चूक रही.
2. पार्टियों को मिलने वाले चंदे पर और सख्ती की जरूरत थी. नकद चंदे को 20 हजार से घटाकर 2000 करने से पार्टियों के लिए फंड जुटाना 10 गुना ज्यादा मुश्किल हो गया है. लेकिन इसका भी तोड़ निकाल लिया जाएगा. मेरे हिसाब से पार्टियों को अगर आरटीआई और जरूरी ऑडिटिंग के दायरे में लाया जाता, तो वह ज्यादा बड़ा कदम होता.
3. भगोड़े अपराधियों की सम्पत्ति जब्त करने वाला आइडिया फिलहाल सिर्फ एक विचार ही है और इसमें और डीटेल की जरूरत है.
4. शुक्र है कि सरकार ने अपनी गलती मानी और एफपीआई पर टैक्स लगाने के सर्कुलर को वापस लिया.
5. और अंत में, सभी कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर इसे 25 पर्सेंट करने की जरूरत थी (शायद 20 पर्सेंट). इस एक फैसले से यह ड्रीम बजट हो सकता था.
समय बड़ा बलवान है
और अंत में, मोदी जी और जेटली जी का धन्यवाद, यह मानने के लिए कि नोटबंदी से देश के गरीबों और असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को झटका लगा. धन्यवाद, यह समझने के लिए कि मरीज की सेहत नाजुक है. धन्यवाद, उसे कुछ और झटके न देने के लिए. धन्यवाद, उसे अकेला छोड़ देने के लिए, क्योंकि समय सब घाव भर देता है.
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