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सोने में पैसा लगाना है, तो जानिए सालभर में कितना रिटर्न मिलेगा

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का ये अनुमान है कि 2017 में भी भारत में सोने की मांग में नरमी बनी रहेगी.

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वैसे तो बजट में सोने को लेकर कोई ऐसा ऐलान नहीं हुआ, जिसका बड़ा असर इसकी मांग पर दिखे, लेकिन गोल्ड डिमांड के मामले में साल 2017 भी कमोबेश 2016 की ही तरह रहने वाला है. बजट में वित्तमंत्री ने सोने पर इंपोर्ट ड्यूटी में कोई कटौती नहीं की, जिसकी काफी उम्मीद ज्वेलर्स को थी.

खास बात यह है कि भारत में सोने पर 10 परसेंट इंपोर्ट ड्यूटी लगती है. यह भी देश में सोने की ऊंची कीमतों की एक वजह है. तभी तो दुनिया में सोने के दूसरे सबसे बड़े कंज्यूमर देश भारत में 2016 में सोने की खपत 7 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई.

वैसे ऊंची इंपोर्ट डयूटी के अलावा नवंबर के महीने में सरकार की नोटबंदी और इसके पहले एक सीमा से ज्यादा गोल्ड खरीदने पर पैन को अनिवार्य करने के ऐलान ने भी सोने की मांग को काफी चोट पहुंचाई.

2016 में दुनियाभर में सोने की डिमांड में 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि भारत में इसमें 21 प्रतिशत की गिरावट आई. 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद सिर्फ उसके बाद वाले एक हफ्ते को छोड़कर साल के अंतिम 6 हफ्तों तक सोने की मांग में गिरावट बनी रही. 
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कुल मिलाकर, साल 2016 में भारत में सोने की मांग 676 टन की रही, जबकि 2015 में ये 857 टन रही थी. (देखें ग्राफिक्स) 2009 में 642 टन के बाद पिछले सात सालों में ये देश में सोने की सबसे कम डिमांड है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का ये अनुमान है कि 2017 में भी भारत में सोने की मांग में नरमी बनी रहेगी.
(ग्राफिक्‍स: क्‍व‍िंट हिंदी)
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अगर हम इसे कीमत के आधार पर देखें, तो 2016 में सोने की डिमांड 27.2 बिलियन डॉलर की रही, जबकि इसके पहले 2015 में ये 32 बिलियन डॉलर थी, यानी कीमत के आधार पर मांग में 15 परसेंट की कमी. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि साल 2016 में सोने की कीमत भारत में मांग कम होने के बावजूद 10 परसेंट बढ़ी.

ये भी ध्यान देना जरूरी है कि न सिर्फ देश में सोने में निवेश घटा, बल्कि गहनों की मांग भी घटी. जहां गोल्ड की इन्वेस्टमेंट डिमांड 2015 के 195 टन से घटकर 161 टन रह गई, वहीं गहनों के लिए इसकी डिमांड 2015 के 662 टन से घटकर 2016 में 514 टन ही रह गई.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का ये अनुमान है कि 2017 में भी भारत में सोने की मांग में नरमी बनी रहेगी. काउंसिल के मुताबिक, भारत में पिछले 25 सालों का अनुभव ये बताता है कि अगर लोगों की इनकम में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है, तो सोने की खपत भी इसी प्रतिशत से बढ़ जाती है. हालांकि इस नियम का फायदा तभी मिलता है, जब सोने की कीमत या उस पर लगने वाले टैक्स में तेज बढ़ोतरी न हो, और न ही इसके इस्तेमाल या स्टोरेज को लेकर सरकार कोई नया नियम बनाए.

लेकिन जिस तरह से देश में गोल्ड के इस्तेमाल और ज्वेलरी सेक्टर को रेगुलेट करने के नियम बनाए जा रहे हैं, उससे इसकी खपत में नरमी बने रहने के पूरे आसार हैं. 

काउंसिल ने 2017 में देश में सोने की खपत का दायरा 650-750 टन रहने का अनुमान लगाया है. साथ ही निवेश के लिए सोने की मांग 250 टन तक रहने का भी अनुमान काउंसिल को है.

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अब आपके मन में ये सवाल आ रहा है कि किस आधार पर वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल भारत में निवेश के लिए गोल्ड की खपत बढ़ने का अनुमान लगा रही है? दरअसल, माना जा रहा है कि दुनिया में बदले राजनीतिक हालात, जिसमें अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना और ब्रेक्जिट जैसी घटनाएं शामिल हैं, में अनिश्चितताएं बढ़ गई हैं. जब भी राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ती है, तो सोने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ जाता है.

जानकारों का अनुमान है कि इस साल के अंत तक सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत में 6 परसेंट तक की बढ़ोतरी हो सकती है. इस वक्त सोने का अंतरराष्ट्रीय भाव 1225 डॉलर प्रति औंस है, जिसके दिसंबर तक 1300 डॉलर तक जाने का अनुमान है.

दूसरी ओर, भारत में जानकार इस साल के अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपये के 70 के पार जाने का भी अनुमान लगा रहे हैं. ऐसे में सोने के घरेलू भाव भी बढ़ने तय हैं. ऐसे में अगर आप इस वक्त सोने में पैसे लगाते हैं, तो साल भर में आपको करीब 10 परसेंट तक का रिटर्न मिल सकता है.

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