ADVERTISEMENTREMOVE AD

NPA की हकीकत: बैंकों के डूबते कर्ज का हर किसी की जिंदगी पर असर

पिछले 24 महीनों में बैंकों के एनपीए दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गए हैं.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

‘बैड डेट’, ‘एनपीए’ या ‘स्ट्रेस लोन’ जैसे शब्द आजकल आम आदमी की जुबान पर भी आ गए हैं. और ये तथ्य देश के बैंकिंग सेक्टर की डरावनी असलियत को बताने के लिए काफी है. दरअसल, पिछले कुछ सालों में बैंकों के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए इतनी तेजी से बढ़े हैं कि अब इन पर चर्चा सिर्फ बैंकों के बोर्डरूम में नहीं, बल्कि घरों के ड्राइंग रूम तक में होने लगी है.

दिसंबर 2016 तक देश के 43 बैंकों का एनपीए 7.33 लाख करोड़ रुपये था, जिनमें निजी बैंकों के मुकाबले सार्वजनिक बैंकों की हिस्सेदारी कई गुना ज्यादा थी. अगर इसमें ‘रिस्ट्रक्चर्ड लोन’ भी जोड़ दिए जाएं, तो कुल रकम 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है. चिंता की बात ये है कि पिछले 24 महीनों में बैंकों के एनपीए दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गए हैं.

कब माना जाता है कि कर्ज डूब गया

बैंकिंग शब्दावली में, जब कोई कर्ज लेने वाला तीन महीने से ज्यादा समय तक अपनी किस्त नहीं चुकाता, तो उसका कर्ज एनपीए घोषित कर दिया जाता है. बैलेंस शीट ठीक दिखाने और एनपीए के दाग से बचने के लिए बैंक अक्सर मोटे कर्जों को रिस्ट्रक्चर कर देते हैं. एनपीए और रिस्ट्रक्चर्ड लोन को जोड़ कर जो रकम बनती है उसे ‘स्ट्रेस लोन’ (ऐसा कर्ज जो संकट में हो) या ‘बैड लोन’ कहा जाता है.

जब कर्ज की रकम और उसका ब्याज वापस मिलने की कोई संभावना नहीं रहती, तब बैंक ऐसे कर्ज को राइट ऑफ कर देते हैं यानी बट्टे-खाते में डाल देते हैं. साफ-साफ कहें तो कर्ज माफ कर दिया जाता है. हालांकि ऐसा करने में भी बैंकों को रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

RBI के नए दिशा-निर्देश

कर्ज को एनपीए घोषित करने के आरबीआई के नए दिशा-निर्देशों के बाद सभी बैंकों के लिए मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं. दरअसल, आरबीआई ने सभी बैंकों को कहा है कि वो अब स्टैंडर्ड एसेट्स के लिए प्रोविजनिंग 0.4% से ज्यादा करें. आरबीआई ने हालांकि अपनी तरफ से कोई सीमा नहीं तय की है.



पिछले 24 महीनों में बैंकों के एनपीए दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गए हैं.
(फोटो: द क्विंट)

फिलहाल बैंकों को कृषि ऋण और एमएसएमई कर्ज के लिए 0.25%, कॉरपोरेट लोन के लिए 0.40% और रियल एस्टेट सेक्टर को लोन के लिए 1% की प्रोविजनिंग करनी पड़ती है. आरबीआई की फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार पांच सेक्टरों- इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टील, टेक्सटाइल्स, पावर और टेलीकॉम- में ही बैंकों के स्ट्रेस लोन का 60% है. लेकिन इस बार आरबीआई ने बैंकों को टेलीकॉम सेक्टर के कर्जों पर खास हिदायत दी है.

एसोचैम-केपीएमजी की एक स्टडी के मुताबिक देश के टेलीकॉम ऑपरेटरों पर कुल मिलाकर 3.80 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.

दिखने लगा है असर

रिजर्व बैंक की नई गाइडलाइंस को मानते हुए दो प्राइवेट बैंकों ने अपने नतीजे घोषित किए हैं और उन पर दबाव साफ दिख रहा है. चौथी तिमाही में इंडसइंड बैंक की नेट इंटरेस्ट इनकम और मुनाफा दोनों बढ़े तो हैं, लेकिन ज्यादा प्रोविजनिंग की वजह से बाजार की उम्मीदों से कमजोर रहे. बैंक ने प्रोविजनिंग की रकम पिछली तिमाही के 217 करोड़ रुपये के मुकाबले इस तिमाही में 430 करोड़ रुपये रखी है.

पिछली तिमाही के मुकाबले बैंक का ग्रॉस एनपीए 8.6% बढ़कर 1.055 करोड़ रुपये रहा, वहीं नेट एनपीए 9.5% बढ़कर 439 करोड़ रुपये रहा. इसी तरह यस बैंक का ग्रॉस एनपीए भी चौथी तिमाही में 1005.9 करोड़ रुपये के मुकाबले 2018.5 करोड़ रुपये रहा. वहीं नेट एनपीए 342.5 करोड़ रुपये के मुकाबले 1072.3 करोड़ रुपये रहा है.

0

गंभीर हो सकते हैं हालात

रेटिंग एजेंसी इकरा ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2016-17 के अंत तक बैंकों का ग्रॉस एनपीए 9.7%-10% बढ़ सकता है, वहीं 2017-18 के अंत तक इसमें 9.9%-10.3% की बढ़ोतरी की आशंका है.

वैल्यू के हिसाब से देखें तो ये रकम साढ़े सात से साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये के आसपास बैठती है. ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस ने अनुमान जताया है कि आने वाले वक्त में सरकारी बैंकों की कमाई में 5-15% तक की गिरावट आ सकती है, जबकि निजी बैंकों की कमाई 1-2% तक गिर सकती है.

एनपीए में बढ़ोतरी का असर अब नए कर्जों पर पड़ने लगा है. पैसे की दिक्कत के चलते बैंक काफी सतर्कता बरतते हुए लोन दे रहे हैं. वैसे भी बाजार में निजी निवेश काफी समय से कमजोर चल रहा है. हालत ये है कि आज बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ पिछले 30 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ सरकारी बैंकों को पटरी पर आने या लाने के लिए कम से कम चार लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी.

इस एनपीए की समस्या को गहराते हुए देखकर सरकार ‘बैड बैंक’ खोलने पर भी विचार कर रही है, जिसे कॉरपोरेट जगत के पास फंसे कर्जों से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. हालांकि ये कदम भी कितना कारगर साबित होगा, इस पर कोई एक राय नहीं बन पाई है. साफ है कि अभी लंबे समय तक भारतीय बैंकों के लिए एनपीए का जिन्न बोतल में वापस जाता तो नहीं दिख रहा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×