जेनेरिक दवाओं पर खोजी पत्रकार केथेरीन एबेन की नई किताब ‘Bottle of Lies’ ने भारतीय दवा कंपनियों की मुश्किलें और बढ़ा दी है. इससे पहले से ही प्राइस कंट्रोल और बढ़ते कंपीटिशन से जूझ रही ये कंपनियां वहां और दवाब में आ जाएंगी. इस किताब के मुताबिक अमेरिकी मार्केट में अपनी दवाएं बेचने वाली भारतीय कंपनियां इन्हें बनाने में खराब तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं. इससे अमेरिकी मरीजों को खराब क्वालिटी की दवाएं मिल रही हैं.
किताब का दावा, जेनेरिक दवा जहर के समान
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक कैथरीन और दिनेश ठाकुर की किताब में कहा गया है कि जेनेरिक दवाएं अमेरिकी मरीजों के लिए जहर के समान है. इस किताब में भारतीय कंपनी रैनबैक्सी का जिक्र किया गया है, जिस पर अमेरिका में मरीजों के हितोंं की अनदेखी करने और दवाओं की गुणवत्ता से समझौता करने के आरोप लगे था. यह मामला कई साल तक अमेरिकी अदालतों में चला था. इस मामले से अमेरिका में भारत की दवा कंपनियों की प्रतिष्ठा को खासा धक्का लगा था. रैनबैक्सी को 50 करोड़ डॉलर का जुर्माना देना पड़ा था. बाद में सन फार्मा ने रैनबैक्सी को खरीद लिया था.
मुनाफा घटने से परेशान भारतीय कंपनियों की मुश्किलें और बढ़ेंगी
अमेरिकी में जेनेरिक दवाएं बेचने वाली भारतीय कंपनियों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है. ट्रंप प्रशासन दवाओं की कीमत करने का प्रेशर बनाए हुए है. साथ ही
यूएस फेडरल ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन यानी USFDA के कड़े मानकों और बढ़ते कंपीटिशन ने उनका मार्जिन और मुनाफा घटा दिया है. ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक नोमुरा की मार्च रिपोर्ट में पिछले तीन साल में अमेरिका में भारतीय दवाओं की बिक्री 30 फीसदी घट गई है.
ऐसे माहौल में कैथरीन एबेन और दिनेश ठाकुर की किताब भारतीय कंपनियों को और बदनाम करेगी. ठाकुर ने कहा कि यह किताब जेनेरिक दवाओं की सच्चाई बयां करती है. उन्होंने अमेरिका में सुरक्षित जेनेरिक दवाओं के लिए अमेरिकी संसद में सुनवाई की भी अपील की है.
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