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इकनॉमी सुधारनी है सरकार, तो इन 4 दिग्गज एक्सपर्ट की सुनने की दरकार

भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने के लिए 4 विशेषज्ञों की राय

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इकनॉमी को पटरी पर लाना है तो उसे एक ही ग्रीन सिग्नल चाहिए...सरकारी खर्च, ब्याज दरों में कमी, और नौकरी. अर्थव्यवस्था की नब्ज पहचानने वाले देश के चार दिग्गज एक्सपर्ट ने यही सलाह दी है. एक ने तो कहा है कि अगर अब और देर कर दी तो बहुत देर हो जाएगी.

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अब आक्रामक होने का वक्त'

हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के चेयरमैन संजीव मेहता का मानना है कि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार को अब जागना होगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि महंगाई तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में जरूरी है कि ब्याज दर को कम किया जाए. समय आ गया है कि आर्थिक स्थिति को लेकर आक्रामक रवैया अपनाया जाए. मेहता ने सोमवार को Ficci प्रेसिडेंट संगीता रेड्डी के साथ बातचीत में अपनी राय सामने रखी.

देखा जाए तो सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा रुचि दिखा रही है. हाल ही में मनरेगा के तहत 40,000 करोड़ रुपये का आवंटन ग्रामीण भारत को मिला है. मगर सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि शहरी तबका भी रोजगार की तलाश में है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के मुताबिक, मई-अगस्त के बीच 6.6 मिलियन लोगों ने रोजगार गंवाया है. एमएसएमई सेक्टर के तो आंकड़े भी मौजूद नहीं हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि वित्तीय वर्ष 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था में 10% या उसका ज्यादा की गिरावट आएगी, जबकि जून तिमाही के लिए इस आंकड़े के 23.9% रहने का अनुमान है.

परिस्थिति इससे भी ज्यादा दूभर होने का इंतजार न करने के साथ ही सरकार को रोजगार के लिए अब निवेश करना शुरू करना चाहिए. त्योहार का महीना करीब है. इसे लेकर कंज्यूमर कंपनियों में आशा जगी है.

ब्याज दर में गिरावट की जरूरत

नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने भी सोमवार को AIMA की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सरकार को ब्याज दर कम करने की सलाह दी है. उनके मुताबिक, आर्थिक प्रोत्साहन पर जोर देने के साथ फास्ट बैंकिंग की व्यवस्था होनी चाहिए. उन्होंने सरकार को, पीएसयू के प्राइवेटाइजेशन और सड़क-रेलवे को मोनेटाइज करने की सलाह दी है.

जाहिर है कि देश की आर्थिक स्थिति महामारी से पहले ही डगमगा चुकी थी. ऐसे में सरकार को अब पुरानी गलती दोबारा दोहरानी नहीं चाहिए.

बैंकों को रिकैपिटलाइज करना होगा वरना एनपीए की मार झेलनी होगी. देश बहुत हद तक खेती पर निर्भर है पर उसमें 4% से ज्यादा ग्रोथ की उम्मीद भी नहीं. इसलिए सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर फोकस करना जरूरी है. पड़ोसी देश के साथ व्यापार का तालमेल जारी रखना होगा लेकिन चीन पर भरोसा नहीं कर सकते. भारत को यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन करना चाहिए. इसके अलावा पनगढ़िया का मानना है कि 6-7% मुद्रास्फीति को संभाला जा सकता है.

इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करे सरकार

एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने सोमवार को AIMA की ओर से आयोजित वेबिनार में कहा कि सरकार को अब इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना शुरू कर देना चाहिए. अगर पूंजी से कोई खर्च नहीं हो रहा और न ही आर्थिक निवेश तो ऐसी स्थिति आनी लाजमी है. बिजनेस टायकून्स को निवेश के लिए आगे आना होगा. अगर हम बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन में निवेश करते हैं तो अपने आप ही आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. इन्फ्रास्ट्रक्चर रोजगार के साथ उत्पादन भी मजबूत करता है. लेकिन लोग फिलहाल निवेश से डर रहे हैं. इसके लिए तो पहले COVID का डर मन से निकालना होगा. मुद्रास्फीति पर उन्होंने कहा कि डिमांड कम है इसलिए सप्लाई चैन भी कमजोर है. इसमें अगर सुधार किया जाए तो स्थिति पटरी पर लौट आएगी.

बेरोजगारी बन रही चुनौती

CMIE के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ महेश व्यास ने बेरोजगारी पर अपनी चिंता व्यक्त की है. लेबर पार्टिसिपेशन रेट (एलपीआर) पर नजर डालें तो अगस्त में 40.96%, सितंबर में 40.7%, और फिर 40.3% आंकड़ा सामने आया. यहां से देखा जा सकता है कि लेबर पार्टिसिपेशन में कमी है. बेरोजगारी और लेबर रेट दोनों को लेकर हालत खराब है. यह स्थिति और भी दूभर होने वाली है, जिसके दो मुख्य कारण हैं -

  • पहला तो सरकार इस समय भी निवेश के बजाए राहत कोष को भरने में ज्यादा केंद्रित है
  • दूसरी ओर प्राइवेट सेक्टर न विस्तार करने के मूड में है न ही निवेश

लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी कोई सुधार नहीं हो रहा है. इससे देश की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ सकती है. सरकारी तंत्र को कोई रिकवरी प्लान बनाने की जरूरत है.

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