OYO होटल्स एंड होम के एक होटल पर 16 लाख बकाया संबंधी विवाद में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) का फैसला OYO के लिए थोड़ी राहत लेकर आया है. OYO रूम्स की इस सब्सिडियरी पर दिवालियापन की कार्यवाही के लिए कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (COC) के बनने पर रोक लगा दी गई है. आइए समझते हैं इस विवाद को, क्या है दोनों पक्षों की दलील और NCLT ने किस आधार पर लिया था इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने का फैसला-
बता दें कि OYO ने NCLT के फैसले को लेकर NCLAT में 7 अप्रैल को अपील दायर की थी
NCLAT ने क्या फैसला दिया?
कंपनी की तरफ से जारी किए गए स्टेटमेंट के अनुसार कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) के बनाए जाने पर अभी रोक लगा दी गई है.
इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के अंतर्गत इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया में CoC एक अहम भूमिका निभाता है. इस बॉडी में कंपनी के सारे फाइनेंशियल क्रेडिटर्स होते हैं. इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया में कंपनी को दिवालियापन की स्थिति से निकाले जाने के लिए CoC में अहम फैसले लिए जाते हैं. क्रेडिटर्स को उनके द्वारा दिए गए डेट (debt) के अनुपात में वोटिंग अधिकार मिलता है.
क्या है विवाद?
गुड़गांव बेस्ड येलो वाइट रेजीडेंसी होटल और OYO होटल्स एंड होम प्राइवेट लिमिटेड (OHHPL) के बीच एक एग्रीमेंट था जिसके अंतर्गत OYO को येलो वाइट होटल चलाने और मैनेज करने का एकाधिकार दिया गया. इस एग्रीमेंट के अनुसार हर महीने की 10 तारीख या उससे पहले OYO होटल्स को इसके बदले में 4.5 लाख का 'बेंचमार्क रेवेन्यू' देना होता. इस भुगतान को लेकर ही दोनों कंपनियों में तनातनी है. शुरुआती परख के बाद नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने OYO होटल्स पर दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करने के आदेश दिए थे और कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी.
येलो होटल्स का क्या पक्ष?
येलो वाइट रेजीडेंसी होटल के मालिक राकेश यादव के अनुसार OYO होटल्स का उन पर जुलाई और दिसंबर 2019 के बीच के 'बेंचमार्क रेवेन्यू' के तौर पर कुल करीब 16 लाख का बकाया है. राकेश यादव के अनुसार OYO होटल्स से कई बार बात करने की कोशिश के बाद भी उनकी बात नहीं सुनी गई और इस भुगतान को नहीं किया गया.
OYO की तरफ से क्या कहा जा रहा है?
कंपनी कहती है कि येलो होटल पर उसका कोई बकाया नहीं है. OYO यह भी कहती है कि उसने अपना यह बिजनेस एक दूसरी सब्सिडियरी माय प्रेफर्ड ट्रांसफॉर्मेशन एंड हॉस्पिटैलिटी लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया था. राकेश यादव को भी इस बात की जानकारी दी गई थी. ऐसे में अगर कोई विवाद है तो पिटीशन उस कंपनी के खिलाफ फाइल की जानी चाहिए थी. कंपनी के अनुसार OYO और राकेश यादव के बीच पहले से भी विवाद है.
कंपनी ने इस मामले को कामकाजी डेट (operational debt) की नजर से देखे जाने को लेकर कहा कि इमूवेबल प्रॉपर्टी (immovable property) से जुड़ा मामला इंसोल्वेसी एंड बैंकरप्सी कोड के अंतर्गत ऑपरेशनल डेट की श्रेणी में नहीं आता है.
OYO होटल्स ने इसे कॉन्ट्रैक्चुअल विवाद बताया था और अपील दायर की थी जिसके बाद अब NCLAT का यह फैसला आया है.
NCLT ने मामले को स्वीकार करते हुए क्या कहा था?
NCLT अहमदाबाद OYO होटल्स के पक्ष से संतुष्ट नहीं दिखा और इंसॉल्वेंसी की प्रक्रिया आगे बढ़ी. पिटीशन पर विचार करते हुए NCLT की तरफ से कहा गया कि राकेश यादव यह समझाने में सफल हुए कि OYO पर ऑपरेशन (operation) आधारित डेट है और कंपनी द्वारा इसे नहीं चुकाया जा रहा है.
ट्रिब्यूनल ने OYO द्वारा दिए गए बिजनेस ट्रांसफर लेटर को जांचा और पाया कि हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति का नाम और पद अंकित नहीं है. NCLT के अनुसार भले ही राकेश यादव के नाम वो लेटर जारी हुआ, लेकिन फिर भी इससे यह नहीं पता चलता कि दोनों पक्ष के बीच पहले वाले एग्रीमेंट में कुछ बदला और दोनों पक्ष के बीच में पहले से कोई विवाद नहीं था. यह भी पता चला कि पिटीशन दायर करने वाले पक्ष पर OYO द्वारा विभिन्न तरीकों से दबाव भी डालने की कोशिश की गई.
इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार 30 मार्च को OYO के खिलाफ क्रेडिटर्स (creditors) को शिकायत दायर करने का 15 अप्रैल तक समय दिया गया था.
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